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यूपी चुनाव : मुलायम के वोट कैसे पायेंगे अखिलेश

!!लखनऊ से राजेंद्र कुमार!! इस चुनाव में अखिलेश को परीक्षा होगी. पिता मुलायम सिंह के बिना अखिलेश यादव चुनाव में कितनी सफलता पाते हैं? इसका पता चलेगा. राजनीतिक विश्लेषक अंशुमान शुक्ल का कहना है कि चार अक्तूबर 1992 को मुलायम द्वारा गठित की गयी सपा अपने गठन के बाद से लगातार आगे बढ़ती रही. पार्टी […]

!!लखनऊ से राजेंद्र कुमार!!

इस चुनाव में अखिलेश को परीक्षा होगी. पिता मुलायम सिंह के बिना अखिलेश यादव चुनाव में कितनी सफलता पाते हैं? इसका पता चलेगा. राजनीतिक विश्लेषक अंशुमान शुक्ल का कहना है कि चार अक्तूबर 1992 को मुलायम द्वारा गठित की गयी सपा अपने गठन के बाद से लगातार आगे बढ़ती रही. पार्टी को राज्य का प्रमुख दल बनाने में मुलायम सिंह ने कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्होंने मुसलिम यादव वोटबैंक को पार्टी का बेस वोट बना दिया. समाजवादी पार्टी का कानून बंटवारा हो गया. अखिलेश और मुलायम सिंह की राहें जुदा जुदा गयीं. चुनाव में साइकिल का चुनाव चिह्न अखिलेश को मिल गया. चुनाव आयोग ने साइकिल पर अखिलेश की मुहर लगा दी.

सपा पर अखिलेश पहले ही अपने पिता और पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव को अध्यक्ष पद से हटाकर कब्जा जमा चुके थे. जिससे खफा होकर मुलायम सिंह ने चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया था, जहां अखिलेश के पक्ष में चुनाव आयोग ने फैसला सुनाया. अब देखना है कि मुलायम सिंह के नाम पर मिलनेवाला सपा का वोटबैंक अखिलेश कैसे पाते हैं? यानी मुलायम सिंह की मेहनत से तैयार किया गया मुसलिम – यादव वोटबैंक. अब विस चुनावों के परिणाम से ही यह पता चलेगा, पर यूपी के तमाम राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी और उसके सिंबल पर भले ही अखिलेश का कब्जा हो गया है, पर मुलायम सिंह द्वारा तैयार किया गया वोटबैंक अखिलेश को हासिल करना आसान नहीं होगा.

वर्ष 2012 के चुनावों में भी सपा की सफलता में अखिलेश के साथ मुलायम सिंह की भी अहम भूमिका थी. मुलायम के नाम पर ही वर्ष 2012 का विस चुनाव पार्टी ने लड़ा था पर चुनाव परिणाम आने के बाद मुलायम ने बेटे को मुख्यमंत्री बना दिया. अखिलेश के शासनकाल में हुआ मुजफ्फरनगर दंगा बदनुमा दाग है. इसके अलावा भी सांप्रदायिक हिंसा की तमाम घटनाएं हुईं. राज्य की खराब कानून व्यवस्था को लेकर अखिलेश सरकार को अदालतों से भी फटकार मिली. बसपा सुप्रीमो मायावती ने कई बार खराब कानून व्यवस्था को लेकर राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की. अब तो मायावती

मुजफ्फरनगर में हुए दंगे और कैराना व बुलंदशहर में हुई आपराधिक घटनाओं को लेकर अखिलेश को दागी तक कहने से गुरेज नहीं करती. अखिलेश सरकार पर आरोप लगाते हुए मायावती मुसलिम समाज को अपने खेमे में लाने का प्रयास कर रही हैं. मायावती की चुनौती अखिलेश के लिए गंभीर है. मुलायम के बिना मुसलिम पूरा का पूरा अखिलेश के साथ नहीं खड़ा होगा. यह अखिलेश जानते हैं, इसीलिए वह कांग्रेस के साथ गंठबंधन करके चुनाव लड़ेंगे. जबकि मुलायम ने कांग्रेस को दूर रखकर ही यूपी में हर चुनाव लड़ा. अखिलेश का कांग्रेस से गंठबंधन करके चुनाव लड़ना उन लोगों को खलेगा जो अब तक मुलायम के साथ खड़े होकर भाजपा से लड़ते रहे हैं. मुलायम के समर्थक अखिलेश के साथ खड़े होने हिचक रहें हैं.

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