Rourkela News. लाठीकटा ब्लॉक अंतर्गत 16 ग्राम पंचायतों के आदिवासी महुआ फूल संग्रह कर आजीविका चलाते हैं. मार्च और अप्रैल के महीनों में परिवार के सभी सदस्य सुबह-सुबह ही इन महुआ फूलों को इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं. लेकिन हर कोई फूलों को केवल अपने ही खेत में लगे पेड़ों से ही इकट्ठा करता है. अन्य लघु वनोपज की तरह इसके लिए कोई सरकारी समर्थन मूल्य निर्धारित नहीं किया गया है. इसलिए महुआ फूल की खरीद और बिक्री की कीमतें व्यापारियों द्वारा निर्धारित की जाती हैं. यह बदलता रहता है. बाजारों और गांवों में इसकी कीमत अलग-अलग होती है. कुछ स्थानों पर इसे वजन के हिसाब से बेचा जाता है, जबकि कुछ स्थानों पर इसे डिब्बा के हिसाब से बेचा जाता है.
मनमाने तरीके से दाम तय करते हैं दलाल
लाठीकटा ब्लॉक की लाठीकटा, बोलानी, डोलाकुदर, बिरडा, बिरकेरा, हाथीबंधा, जलदा, मुंडाजोर, रामजोड़ी, सुइडीही आदि ग्राम पंचायतों के लोग महुआ के फूलों को इकट्ठा करते हैं और उन्हें 4-5 दिनों तक सुखाते हैं. कुछ लोग महुआ से शराब बनाने के अलावा विभिन्न प्रकार के पीठा और मिठाइयांं भी तैयार करते हैं. कुछ लोग तो गांव में आने वाले दलालों को ही इसे बेच देते हैं. ये दलाल कम कीमत पर महुआ खरीदकर पड़ोसी राज्यों में निर्यात कर रहे हैं. वहीं कुछ शराब भट्टी के मालिक इसे नाममात्र मूल्य पर खरीद लेते हैं. जिससे महुआ फूल के संग्रहकर्ताओं को उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है.
सरकारी मंडी स्थापित होने से मिलेगा उचित मूल्य
भगतटोला के राजू केरकेट्टा बताते हैं कि हमें महुआ फूल का सही दाम नहीं मिल रहा है. अगर सरकार ने रागी, मंडुआ या धान की तरह महुआ फूल के लिए मंडी स्थापित किया होता, तो हमें उचित मूल्य मिलता. वहीं कुलामुंडा गांव के एक अन्य व्यक्ति ने भी कहा कि उन्हें उनकी मेहनत के मुकाबले कम कीमत मिल रही है. उन्होंने सरकार से अनाज मंडी की तरह महुआ फूल संग्राहकों के लिए भी मंडी स्थापित करने और कीमतें तय करने की मांग की, ताकि उन्हें उचित मूल्य मिल सके. बोलानी के सरपंच अर्जुन एक्का ने कहा कि महुआ फूल खरीदने को लेकर सरकार के नियम हैं, लेकिन लोग उनका पालन नहीं कर रहे हैं. सरकारी स्तर पर इसका कोई लेखा-जोखा या मूल्य निर्धारण नहीं है. इसलिए, यदि जागरूकता बढ़ेगी, तो किसानों को सही कीमत मिलेगी और सरकार को राजस्व भी मिलेगा.
वन विभाग से लेकर पंचायत समितियों को सौंप दी गयी जिम्मेदारी
पानपोष रेंजर ज्ञानेंद्र लीमा ने बताया कि पहले वन विभाग के पास कीमतें निर्धारित करने और प्रत्येक वर्ष कितना संग्रह किया गया, इसका हिसाब रखने का अधिकार था. अब इन फूलों को एकत्र करने की जिम्मेदारी पंचायत समितियों को सौंप दी गयी है. वे टीडीसीसी (ट्राइबल डवलपमेंट कंज्यूमर कंसाइन) लाइसेंस प्रदान करेंगे तथा समिति के माध्यम से मूल्य निर्धारित करके संग्रहण की जिम्मेदारी ली जायेगी. महुआ फूलों की कीमत हर साल घटती-बढ़ती रहती है.
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