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शब -ए -मेराज में मुहम्मद (स.) की मुलाकात हुई थी अल्लाह से

चक्रधरपुर : अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद सल्लल्लाह अलैह व सल्लम की मुलाकात अल्लाह से हुई थी. इसी मुलाकात की रात को शब ए मेराज कहते हैं. इस वर्ष यह रात 27 रज्जब अर्थात 24 अप्रैल को है. अरबी में शब का अर्थ रात और मेराज का अर्थ सीढ़ी अथवा मुलाकात है. इस रात को […]

चक्रधरपुर : अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद सल्लल्लाह अलैह व सल्लम की मुलाकात अल्लाह से हुई थी. इसी मुलाकात की रात को शब ए मेराज कहते हैं. इस वर्ष यह रात 27 रज्जब अर्थात 24 अप्रैल को है. अरबी में शब का अर्थ रात और मेराज का अर्थ सीढ़ी अथवा मुलाकात है. इस रात को रसूल की अल्लाह से मुलाकात की रात भी कहते हैं.

कुरआन पाक की सुर ए असरा की पहली आयत में इसका जिक्र है. जिसका अर्थ है…वह अल्लाह पाक है जो रातों रात अपने बंदे को मसजिद ए हरम से मसजिद एक अक्सा तक ले गया, जिसके आसपास हमने बरकतें दे रखी है, ताकि हम अपनी कुदरत की चंद निशानियां उसको दिखला सकें.
मेराज का वाक्या मक्का में सन् 10 नबवी में हुआ था. यानि नबुवत के दसवें साल मेराज हुई थी. आप(स.) ने जब मेराज की रात गुजारने के बाद अपनी उम्मत से दूसरी सुबह मेराज का जिक्र किये तो लोग हैरत में पड़ गये. कुछ ने मजाक उड़ाना शुरू किया, लेकिन इमान लाने वाले मुसलमानों ने इसे कबूल किया. सबसे पहले हजरत अबूबकर सिद्दीक (रजि) ने इसकी पुष्टि की और उसी दिन से सिद्दीक का लकब पाये. अमीर माविया (रजि) ने इसे सही कहा,
क्योंकि उन्होंने रसूल अल्लाह के मेराज के सफर के दौरान देखा था. हजरत आयशा (रजि) उस वक्त आप (स.) की निकाह में नहीं थी, लेकिन आप ने कहा मेराज रूहानी थी. आप(स.) मेराज की रात मसजिद ए हरम में आराम फरमा रहे थे. वहीं से हजरत जिब्रैल अमीन ने बुराक की सवारी में आप को मसजिद ए अकसा तक ले गये. जहां अल्लाह ने अपनी कई निशानियां दिखायी और फरमाया यह लोगों की आजमाइश का जरिया है. इमाम हसन बुसरा ने मेराज की हदीस लिखे हैं.
वह कहते हैं कुरआन में मेराज से संबंधित आयतें नाजिल हुई हैं. इस्लाम के मानने वालों का कहना है कि अल्लाह से रसूल की मुलाकात शारीरिक तौर पर हुई थी. उनका मानना था कि यदि अगर सपना में मेराज हुई होती तो मुसरेकीन इससे इंकार नहीं करते और कमजोर इमान वाले मुसलमान फितने में नहीं पड़ते. कुरआन पाक से साबित होता है कि रात के वक्त अल्लाह ने अपने नबी (स.) को मसजिद ए हरम से लेकर मसजिद एक अक्सा में अपनी निशानियां दिखायी.
मेराज का सफर मक्का से शुरू हुआ और चंद मिनटों में मदीना तक पहुंच गया. वहां नमाज अदा करने के बाद कोहे तूर देखे, जहां मूसा (अ) अल्लाह से बात किया करते थे. ईसा (अ.) की पैदाइस स्थल बाबूलहम, बैतुल मुकद्दस, मसजिद ए अक्सा देखे.
मसजिद ए अक्सा में सभी नबियों की इमामत आप (स.) ने की. फिर पहले आसमान पर फरिश्ते व हजरत आदम (अ.) से मिले. दूसरे आसमान पर हजरत ईसा (अ.) व हजरत यहया (अ.), तीसरे में यूसूफ (अ.), चौथे में हजरत इदरीस (अ.), पांचवें में हजरत हारुन (अ.) छठे आसमान पर हजरत मूसा (अ.) से मुलाकात हुई. यहां मुसा (अ.) ने बशारत दी कि कयामत के दिन आप ही अपनी उम्मत की बक्शीश करवायेंगे. सातवें आसमान पर सबसे अधिक फरिश्ते मिले. यहां बैतुल मामूर नाम की एक खूबसूरत मसजिद थी,
जहां हजरत इब्राहीम (अ.) मिले. यहां एक बहुत बड़ा पेड़ सिदरतुल मुनतहा था. यहीं से जन्नत आप (स.) ने देखा. फिर दोजख देखे, जफरफ नामक स्थान पर हजरत इसराफील (अ.) सूर लेकर खड़े थे. अरश ए मोअल्ला पर सिर्फ नूर ही नूर था. जहां आप (स.) की अल्लाह पाक से मुलाकात व बात हुई. यहीं पांच वक्त की नमाज फर्ज हुआ. आप (स.) ने अल्लाह से अपनी उम्मत की बख्शीश का वादा लिये. हजरत इजराइल (अ.) से भी मुलाकात हुई. इसके बाद फिर आप (स.) की मेराज के सफर से वापसी हुई.

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