चाईबासा : एक ओर हरियाली को लेकर सरकार की ओर से कई कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर पश्चिमी सिंहभूम में 35 हजार हेक्टेयर भूमि बंजर पड़ी है. इस बंजर भूमि की प्यास कभी बुझ पायेगी इसमें भी संशय है.
क्योंकि कृषि विभाग के पास बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने की फिलहाल कोई योजना नहीं है. आलम ये है कि बंजर भूमि किस वर्ग की है अब तक इसका भी निर्धारण नहीं हो सका है. विभाग के पास वैसी जमीन के लिए तो योजना है जहां तीन से चार साल के बीच खेती का कार्य नहीं किया गया है.
लेकिन, जहां हरियाली कभी हुई ही नहीं है वहां के लिए कोई योजना ही नहीं है. चूंकि बंजर भूमि के वर्ग का निर्धारण नहीं होने के कारण संबंधित विभाग अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहा.
क्या है भूमि वर्ग का निर्धारण
भूमि निर्धारण के आठ चरण हैं. पहला एक से चार तक कृषि विभाग तथा पांचवे वर्ग में उद्यान विभाग तथा छह से सातवां वर्ग वन विभाग का है. यानि जिस जगह बंजर भूमि एक से चार तक की श्रेणी में आती है उस भूमि को विकसित करने का काम कृषि विभाग का है. और पांचवे वर्ग की भूमि उद्यान तथा छठे से आठवे वर्ग की भूमि को विकसित करने की जिम्मेवारी वन विभाग की होती है.
सचिव की योजना पर हो पहल तो बने बात
जल संसाधन विभाग के सचिव संतोष सतपथी की योजना पर पहल होगी तो इसकी तस्वीर कुछ और होगी. सतपथी ने अपने चाईबासा के दौरे के दौरान यह घोषणा की कि थी किसी भी विभाग की ओर से कम से कम 50 एकड़ जमीन पर सिंचाई के लिए योजना बनायी जाती है तो उसे स्वीकृति देकर शीघ्र राशि मुहैया करायी जायेगी. उदाहरण के लिए उन्होंने कहा था कि शिक्षा विभाग भी इसके लिए योजना तैयार करता है तो वह मान्य होगा.
– मनोज कुमार –