वर्ष 2014-16 में मानव तस्करी के 309 मामलों में मात्र 13 में दर्ज हुई प्राथमिकी
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थाने में दर्ज नहीं होती एफआइआर, प िसंहभूम में मानव तस्करी बना व्यापार
वर्ष 2014-16 में मानव तस्करी के 309 मामलों में मात्र 13 में दर्ज हुई प्राथमिकी इस वर्ष मात्र दो मामलों में हुई एफआइआर, थाने के चक्कर लगाते हैं अभिभावक सीडब्ल्यूसी की अनुशंसा पर भी पुलिस नहीं करती कार्रवाई, बढ़ा तस्करों का मनोबल चाईबासा : मानव तस्करी में पश्चिमी सिंहभूम का राज्य में दूसरा स्थान है. […]
इस वर्ष मात्र दो मामलों में हुई एफआइआर, थाने के चक्कर लगाते हैं अभिभावक
सीडब्ल्यूसी की अनुशंसा पर भी पुलिस नहीं करती कार्रवाई, बढ़ा तस्करों का मनोबल
चाईबासा : मानव तस्करी में पश्चिमी सिंहभूम का राज्य में दूसरा स्थान है. जिले में ह्यूमन ट्रैफिकिंग का आंकड़ा साल दर साल बढ़ता जा रहा है. विगत तीन वर्षों की तुलना में इस साल जिले में मानव तस्करी के अधिक मामले सामने आये हैं. वर्ष 2014 से 2016 के बीच ह्यूमन ट्रैफिकिंग तथा अन्य कारणों के शिकार 309 बच्चों को बाल कल्याण समिति ने उनके घर पहुंचाया.
309 में से सिर्फ 13 मामले में ही प्राथमिकी दर्ज हुई. इस साल अक्तूबर तक 162 बच्चों को मानव तस्करों के चंगुल से छुड़ाकर तथा अन्य कारणों से घरों से गायब हुए बच्चों को उनके घर तक पहुंचाया.
162 में से अब तक मात्र दो मामलों में ही प्राथमिकी दर्ज हुई है. मानव तस्करी इकाई में वर्ष 2015 से अब तक 30 मामले ही दर्ज हुए हैं. 309 और 162 के आंकड़ों को जोड़ दें तो, 471 में से कम से कम 80 फीसदी बच्चे मानव तस्करी के शिकार रहे हैं. पुलिस ने मामले की जांच पड़ताल में तत्परता दिखाई होती तो, मानव तस्करी की घटनाओं में कमी आती. मानव तस्करी के मामलों में नहीं के बराबर एफआइआर दर्ज होने के कारण इसने धीरे-धीरे व्यापार का रूप ले लिया है.
पुलिस जल्द दर्ज नहीं करती एफआइआर
ह्यूमन ट्रैफिकिंग के शिकार बच्चों को बाल कल्याण समिति की मदद से खोज कर उनके घर तक पहुंचाया जाता है. ऐसे मामलों में बाल कल्याण समिति की ओर से संबंधित थाना व मानव तस्करी निवारण इकाई में एफआइआर दर्ज करने की अनुशंसा की जाती है. इसके बावजूद पुलिस द्वारा मामला दर्ज नहीं किया जाता.
कई बार अभिभावक खुद जाकर मामला दर्ज कराना चाहते हैं, मगर पुलिस जल्दी सुनवाई नहीं करती, जिससे वे थक-हारकर चुप बैठ जाते हैं.
क्या कहता है नियम : सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार भूले हुए बच्चे हों या ह्यूमन ट्रैफिकिंग के शिकार बच्चे, सभी की ह्यूमन ट्रैफिकिंग एक्ट के तहत प्राथमिकी दर्ज करनी है. इस जिले में हालांकि लोग अपने बच्चों के खोने की भी प्राथमिकी दर्ज नहीं कराते. पुलिसिया चक्कर से बचने व जागरुकता की कमी से अभिभावक भी प्राथमिकी दर्ज कराने में रुचि नहीं लेते.
सात प्रखंडों में ट्रैफिकिंग के सर्वाधिक मामले : चक्रधरपुर अनुमंडल के सोनुवा, बंदगांव, गोइलकेरा, मनोहरपुर, गुदड़ी व आनंदपुर प्रखंडों में ह्यूमन ट्रैफिकिंग के सर्वाधिक मामले सामने आते हैं. इन प्रखंडों में मानव तस्कर सबसे अधिक सक्रिय हैं.
मानव तस्करी इकाई की स्थापना के बाद से अबतक दर्ज हुए केवल 30 मामले
केस स्टडी-1
मानव तस्कर की गिरफ्तारी नहीं हो रही
झींकपानी के नवागांव की एक युवती ह्यूमन ट्रैफिकिंग की शिकार हुई थी. मामले में गोइलकेरा की मरियम नाम की युवती पर ट्रैफिकिंग कराने का केस दर्ज हुआ, लेकिन पुलिस ने उसको गिरफ्तार नहीं किया. अब मरिमय पीड़िता के परिजनों को धमका रही है. मामला बाल कल्याण समिति में भी आया है.
केस स्ट्डी-2
पुलिस दर्ज नहीं कर रही मामला
वर्ष 2016 के अप्रैल में सोनुवा के अर्जुनपुर का एक युवक ह्यूमन ट्रैफिकिंग का शिकार हुआ था. उसके बाद से युवक का पता भी नहीं चल पाया है. इस मामले में बंडामुंडा के शंकर दास के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करायी गयी. आरोपी शंकर दास को युवक के परिवार व गांव वालों ने पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया, जिसके बाद पुलिस ने उसे एक सप्ताह के अंदर पीड़ित युवक को घर लाने का आदेश दिया,
लेकिन उसके बाद से आरोपी शंकर और शिकार युवक में से किसी का पता नहीं चल रहा है. परिजन इस मामले में केस दर्ज कराना चाह रहे हैं, लेकिन पुलिस केस दर्ज नहीं कर रही है. मामला बाल कल्याण समिति में आया है.
इस साल ट्रैफिकिंग के शिकार बच्चे
माह संख्या
जनवरी 8
फरवरी 7
मार्च 11
अप्रैल 23
मई 17
जून 16
जुलाई 30
अगस्त 17
सितंबर 22
अक्तूबर 22
मानव तस्करी मामले में थाना में एफआइआर दर्ज नहीं होती है तो सीधे मेरे पास आयें. जांच में अगर थाना प्रभारियों द्वारा मानव तस्करी मामले में एफआइआर नहीं करने की बात सिद्ध हो गयी तो थाना प्रभारियों पर कड़ी कार्रवाई होगी.
अनीश गुप्ता, पुलिस अधीक्षक, पश्चिमी सिंहभूम
मानव तस्करी संबंधी मामलों में पुलिस तत्परता से कार्रवाई करे. बच्चा कहीं चला गया होगा, इसमें समय व्यर्थ न गवांकर थाना में एफआइआर करें. बच्चे के गुम होने पर 1098 पर फोन कर सूचना दें. ट्रैफिकिंग करनेवालों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई होने से इस पर रोक लगेगी.
ज्योत्स्ना तिर्की, अध्यक्ष बाल कल्याण समिति.
लोगों में जागरूकता की कमी के कारण ट्रैफिकिंग के मामले में एफआइआर नहीं हो रही है. लोग थाना जाते ही नहीं हैं. मानव तस्कर बच्चों के दिमाग में इतना खौफ भर देते हैं कि बच्चे काउंसिलिंग के दौरान कई बार अपना बयान बदल देते हैं. इस कारण भी मानव तस्कर कार्रवाई से बच जाते हैं.
विकास दोदराजका, बाल संरक्षण कार्यकर्ता
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