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सिख समुदाय ने सबसे पहले किया था रावण दहन

गुमला: शांति, सद्भाव व सर्वधर्म के बीच गुमला में रावण दहन की 58 वर्ष पुरानी अद्भुत परंपरा रही है. रंग-बिरंगी गगनचुंबी आतिशबाजी के बीच असत्य पर सत्य की अनूठी झलक पेश की जाती है. इसको देखने के लिए गुमला जिले के शहर समेत सुदूरवर्ती क्षेत्रों के हजारों की संख्या में लोगों का जनसैलाब उमड़ता है. […]

गुमला: शांति, सद्भाव व सर्वधर्म के बीच गुमला में रावण दहन की 58 वर्ष पुरानी अद्भुत परंपरा रही है. रंग-बिरंगी गगनचुंबी आतिशबाजी के बीच असत्य पर सत्य की अनूठी झलक पेश की जाती है. इसको देखने के लिए गुमला जिले के शहर समेत सुदूरवर्ती क्षेत्रों के हजारों की संख्या में लोगों का जनसैलाब उमड़ता है. पंजाबी बंधुओं की पहल पर वर्ष 1959 पर पहली बार रावण दहन की शुरुआत हुई. 30 वर्ष पूर्व 20 फीट ऊंचे रावण का दहन किया जाता था. लेकिन अब 50 फीट से ऊंचे रावण दहन का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है.

परमवीर अलबर्ट एक्का स्टेडियम में 50 फीट ऊंचे रावण का दहन शाम साढ़े छह बजे किया जायेगा. प्रबुद्ध लोग बताते है कि बाजारटांड़ निवासी स्व भाल सिंह व पंजाबी बंधुओं के प्रयास से रावण व कुंभकरण के पुतला दहन की नींव रखी गयी. उस समय एक लकड़ी के ठेले में रावण का पुतला रख कर शहर का भ्रमण कराया जाता था. प्रत्येक व्यवसायी समिति को 25 पैसे की सहयोग राशि देते थे. 40 से 50 रुपये में धूमधाम से रावण दहन किया जाता था.

इसके बाद बैद्यनाथ साहू, वीरेंद्र झा व अन्य लोगों ने रावण दहन की कमान संभाली. बाजारटांड़ की जमीन का अतिक्रमण हो गया. इसके बाद दो जगहों पर रावण दहन होने लगा. महावीर चौक स्थित पुराना बस पड़ाव (वर्तमान में पटेल चौक) के समीप रावण दहन किया जाने लगा. इसके बाद सर्वसम्मति से कचहरी परिसर में एक ही जगह पर रावण दहन की परंपरा शुरू हुई. 1984 में तत्कालीन डीसी द्वारिका प्रसाद सिन्हा ने स्टेडियम में रावण दहन की अनुमति दी. तब से निरंतर रावण दहन की परंपरा कायम है.

गुमला में इन स्थानों पर होता है रावण दहन: गुमला शहर के परमवीर अलबर्ट एक्का स्टेडियम में 6.30 बजे रावण दहन होगा. इसमें हजारों की भीड़ उमड़ती है. परंपरा के अनुसार नगर भ्रमण के बाद मां दुर्गा पहले स्टेडियम पहुंचती है. इसके बाद रावण दहन होता है. रावण दहन के तुरंत बाद मां की प्रतिमा का तालाब व नदी में विसर्जन किया जाता है.
अरमई डुमरडीह व करौंदी में 6.30 बजे रावण दहन होगा. डुमरडीह में पूर्वी क्षेत्र के लगभग 20 से 25 हजार लोगों की भीड़ उमड़ती है. वहीं करौंदी में 10 हजार की भीड़ जुटती है. यहां पर भी परंपरा के अनुसार रावण दहन के तुरंत बाद प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है.
मुरकुंडा गांव में उवि मैदान में शाम छह बजे रावण दहन होगा. मां की मूर्ति का पहले गांव में भ्रमण कराया जाता है. मां दुर्गा भ्रमण के बाद जैसे मैदान के पास पहुंचती है, रावण दहन किया जाता है.
सिसई प्रखंड में ब्लॉक मैदान में 6.00 बजे रावण दहन होता है. यहां पर मेला लगता है. इसमें 20 से 25 हजार लोग मेला देखने आते हैं. भरनो प्रखंड के भी लोग यहां आते है.बसिया प्रखंड में धर्मशाला के समीप मैदान में शाम 6.00 बजे रावण दहन होता है. यहां मेला भी लगता है. परंपरा के अनुसार रावण दहन के बाद मां की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है. कामडारा प्रखंड के लोग यहां रावण दहन देखने आते है.

चैनपुर प्रखंड में मंदिर परिसर के समीप रावण दहन रात 7.30 बजे होता है. मेला जैसा माहौल रहता है.10 हजार लोगों की भीड़ उमड़ती है. डुमरी प्रखंड के लोग यहां रावण दहन देखने आते है.
रायडीह प्रखंड के मांझाटोली शंख मोड़ के समीप रावण दहन होता है. यहां से छत्तीसगढ़ चंद दूरी पर है. इस कारण यहां झारखंड व छत्तीसगढ़ राज्य के लोगों का जुटते है. यहां10 हजार से अधिक भीड़ उमड़ती है.

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