खरसावां.खरसावां की ऑर्गेनिक हल्दी झारखंड के साथ देश-दुनिया के लोगों की सेहत सुधारने को तैयार है. अब देश-विदेश के बाजार में खरसावां की हल्दी पहुंचेगी. खरसावां टर्मरिक’ के नाम से इस उत्पाद को देश-विदेश के घरों तक पहुंचाने के साथ ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर भी ऑनलाइन बिक्री शुरु कर दी गयी है. शुरुआती दौर में सीमित मात्रा में पैकिंग की जा रही है. भविष्य में मांग बढ़ने के साथ ही उत्पादन बढ़ाने पर जोर रहेगा. खरसावां हल्दी् की बिक्री इ-कॉमर्स प्लेटफॉर्म अमेजन व भारत सरकार के ओपन इ-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ओएनडीसी पर शुरू हो गयी है. देश-विदेश के लोग अब घर बैठे ‘खरसावां हल्दी’ की खरीदारी कर सकेंगे.
अबतक 15 मीट्रिक टन हल्दी की हो चुकी है प्रोसेसिंग.
जानकारी के अनुसार, अब तक 15 मीट्रिक टन हल्दी की प्रोसेसिंग कर ली गयी है. खरसावां हल्दी की पैकिंग से लेकर मार्केटिंग की व्यवस्था ‘एजुकेटर एक्स्ट्राऑर्डिनेयर लिमिटेड’ द्वारा किया जा रहा है. ‘खरसावां हल्दी’ का ट्रेडमार्क व फूड सेफ्टी लाइसेंस मिल गया है. खरसावां हल्दी का जीआइ टैग प्राप्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है. खरसावां के खेलारीसाई में हल्दी प्रोसेसिंग यूनिट लगायी गयी है. इस परियोजना पर करीब एक करोड़ रुपये की लागत आयी है.किसान और महिलाओं को मिलेगा लाभ.
हल्दी प्रोसेसिंग यूनिट की शुरुआत से करीब 800 हल्दी उत्पादक किसान और महिला समितियों को सीधा लाभ मिलेगा. इस यूनिट में हल्दी प्रोसेसिंग का कार्य मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा किया जाएगा. अब तक किसान हल्दी की गांठ से पाउडर बनाकर स्थानीय हाट-बाजारों में बेचते थे, लेकिन अब उन्हें अपनी उत्पादित हल्दी की प्रोसेसिंग और मार्केटिंग के लिए एक बेहतर प्लेटफॉर्म मिलेगा. इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी और स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को भी रोजगार मिलेगा.
खरसावां-कुचाई क्षेत्र में बड़े पैमाने पर होती है हल्दी की खेती.
खरसावां के रायजेमा से लेकर कुचाई के गोमियाडीह तक पहाड़ियों की तलहटी में बसे गांवों में हल्दी की परंपरागत और जैविक खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. यहां के आदिवासी समुदाय के लोग बिना रासायनिक उर्वरकों के प्राकृतिक तरीके से हल्दी उपजा रहे हैं. यहां लगभग 4 किलो हल्दी की गांठ से 1 किलो हल्दी पाउडर तैयार होता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है