खरसावां.
दक्षिण कोरिया के कोरियन विश्वविद्यालय और कोरिया राष्ट्रीय संग्रहालय से तीन सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल गुरुवार को सरायकेला पहुंचा. प्रतिनिधिमंडल में शामिल सोह्युन चो, क्यूंग वूक जेओन और सू ह्वान पार्क ने श्री जगन्नाथ आर्ट स्कूल का दौरा कर छऊ मुखौटा निर्माण की पारंपरिक विधियों को जाना. शोधकर्ता सू ह्वान पार्क इस कला पर विशेष रूप से अध्ययन कर रहे हैं. उन्होंने वरिष्ठ कलाकार गुरु सुशांत महापात्र और कलाकार सुमित महापात्र से मुलाकात कर मुखौटा निर्माण की बारीकियों को समझा और यहां की उत्कृष्ट शिल्पकला की सराहना की. साथ ही कई मुखौटे अपने साथ भी ले गए.चार पीढ़ियों से विरासत को जीवित रखा है महापात्र परिवार
सरायकेला के महापात्र परिवार ने पीढ़ी दर पीढ़ी छऊ मुखौटा निर्माण की इस परंपरा को जीवित रखा है. गुरु सुशांत महापात्र देश-विदेश में छऊ मुखौटा कलाकार के रूप में विख्यात हैं. उनके बड़े पिताजी प्रसन्न कुमार महापात्र ने वर्ष 1925 में सरायकेला शैली के लिए पहला आधुनिक मुखौटा तैयार किया था. सुशांत महापात्र ने महज आठ वर्ष की उम्र में मुखौटा निर्माण का प्रशिक्षण प्राप्त करना शुरू किया. कुछ ही वर्षों में इस कला में निपुण हो गए. अब उनके पुत्र सुमित महापात्र इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. जबकि चौथी पीढ़ी के रैशव महापात्र (9 वर्ष ) भी यह कला सीख रहे हैंदेश-विदेश में बिखेरी पहचान
गुरु सुशांत महापात्र द्वारा बनाए गए छऊ मुखौटे की प्रदर्शनी न्यूयॉर्क, बर्लिन, वियना जैसे अंतरराष्ट्रीय शहरों के साथ दिल्ली, मुंबई और कोलकाता में भी लग चुकी है. उनके द्वारा निर्मित मुखौटे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भी भेंट किये जा चुके हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

