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पहाड़ों का काला पानी पीते हैं लोग

हाल बड़ा केस चिपड़ी पहाड़ पर बसे गांव का एक तरफ सरकार आदिम जनजाति के विकास की बात करती है, लेकिन पतना प्रखंड में हकीकत कुछ और ही नजर आ रही है. वहीं आज भी पतना प्रखंड के कई पहाड़िया गांव में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. हालत यह है कि ग्रामीणों को झरना […]

हाल बड़ा केस चिपड़ी पहाड़ पर बसे गांव का

एक तरफ सरकार आदिम जनजाति के विकास की बात करती है, लेकिन पतना प्रखंड में हकीकत कुछ और ही नजर आ रही है. वहीं आज भी पतना प्रखंड के कई पहाड़िया गांव में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. हालत यह है कि ग्रामीणों को झरना के दूषित पानी से प्यास बुझानी पड़ रही है. वहीं बुनियादी सुविधाओं का भी घोर अभाव है.
पतना : आजादी के 67 साल बाद भी पतना के शहरी पंचायत के आदिम जनजाति पहाड़ियों की स्थिति जस की तस बनी हुई है. जमीन से 50 मीटर की उंचाई पर जीवन यापन कर रहे शहरी पंचायत के बड़ा केसचिपड़ी पहाड़ के पहाड़िया आज भी झरना का दूषित पानी पीने को विवश हैं. इस पहाड़ी पर कुल 54 घर हैं. जिसमें लगभग 400 लोग लोग रहते हैं. सभी मुलभूत सुविधाओं के वंचित हैं. लोग पहाड़ के बगल में ही निकलने वाले झरना का दूषित पानी पीने को विवश हैं. दूषित पानी पीने के कारण पहाड़िया जनजाति के लोग अक्सर बीमार पड़ जाते हैं. पहाड़ी पर बसे ये पहाड़िया जनजाति स्वास्थ्य सुविधा के लाभ से भी महरूम है. जिस कारण ये असमय ही काल के गाल में समा जाते हैं. दो माह के दरमियान उक्त पहाड़ी में तीन पहाड़िया बच्चों की अज्ञात बीमारी से मौत हो गयी थी.
पूरे गांव में मात्र छह लोग हैं मैट्रिक पास
केसचिपड़ी पहाड़ के 400 की जनसंख्या में मात्र छह लोग ही मैट्रिक पास है. लेकिन सरकारी नौकरी नहीं मिलने के कारण ये सभी पहाड़ी पर ही मकई, बरबत्ती व बाजरा का खेती कर अपना जीवन-यापन करते हैं. खेती का समय समाप्त होने के बाद ये लोग पहाड़ी पर लकड़ी चुनकर उसे बाजारों में बेच कर अपना पेट पालते हैं.

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