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प्रवचन :: शारीरिक प्रक्रिया का संबंध मस्तिष्कीय गतिविधियों से होता हैअभ्यास के छठवें तथा अंतिम चरण में शारीरिक प्रक्रिया का संबंध मस्तिष्कीय गतिविधियों, तर्क तथा इच्छा-शक्ति से होता है. यहां वाक्यांश का प्रयोग करते हैं, वह है- ‘मेरा ललाट ठंडा है.’ यह ठंडक दोनों छोरों पर गर्म शरीर पर फैलती है. प्रशिक्षणार्थी बर्फ से ढंके ऊंचे पर्वत-शिखरों की कल्पना करता है. अभ्यास का यह पक्ष विशेष रूप से ऐसे लोगों के लिए बहुत लाभप्रद है जो अर्द्धकपाली (माइग्रेन) तथा अन्य प्रकार के सिर-दर्द की शिकायत से परेशान रहते हैं. जब हम छठवें वाक्यांश पर पहुंचते हैं तो प्रशिक्षणार्थी प्रसन्नतापूर्वक यंत्रवत समूची प्रक्रिया में से गुजर चुकता है. इसके लिए वह कोई चेतन प्रयास नहीं करता है, साथ ही उसे समूचे शरीर की चेतना का अनुभव, भारीपन, गर्मी समस्वरता, नाड़ी की धड़कन, विश्रांति, लययुक्त श्वास-प्रश्वास तथा ठंडक के रूप में होता है. उसके समूचे व्यक्तित्व में सामंजस्य स्थापित होता है तथा दर्द एवं शिराव्याधियां गायब हो जाती है. कुछ समय पश्चात वह सामान्य चेतना में लौट आता है. वह शरीर के अंगों को हिलाता, तानता तथा गहरी श्वास लेकर आंखे खोलता है.

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