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World Human Rights Day 2022: झारखंड में बच्चों की स्थिति और उनके मिले अधिकारों पर पढ़ें यह खास रिपोर्ट

World Human Rights Day 2022: हर साल 10 दिसंबर को विश्व मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है. यह दिन मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में निहित अधिकारों और स्वतंत्रता के प्रति सम्मान को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता पैदा करने और राजनीतिक इच्छाशक्ति जुटाने के लिए हर 10 दिसंबर को मनाया जाता है.

World Human Rights Day 2022: आज विश्व मानवाधिकार दिवस है. मानवाधिकार संरक्षण के लिहाज से आज के दिन का खास महत्व है. संयुक्त राष्ट्र ने 1950 में 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस घोषित किया था. इसका उद्देश्य दुनिया को मानवाधिकारों के महत्व के प्रति जागरूक करना और इसके पालन के प्रति सजग रहने का संदेश देना है. मानवाधिकार लोगों के मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता का हक देता है, जिसके हम सभी हकदार हैं. यह राष्ट्रीयता, निवास, लिंग, जाति, धर्म, भाषा के आधार पर भेदभाव के बिना हर जगह हर व्यक्ति के अधिकारों की गारंटी देता है. इसी के तहत हर बच्चे को अच्छा जीवन स्तर पाने का भी अधिकार है. ताकि उसका बेहतर शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, नैतिक और सामाजिक विकास हो सके. जानकार कहते हैं कि यदि देश के हर बच्चे को उसका अधिकार दे दिया गया तो, इस देश का भविष्य ऐसे ही उज्ज्वल हो जायेगा. आज की रिपोर्ट बच्चों की स्थिति और उन्हें क्या-क्या अधिकार मिले हैं, उसी पर आधारित है.

झारखंड में प्रतिवर्ष 77 हजार से अधिक बच्चे कर रहे पलायन

आशा संस्था ने राज्य की 76 पंचायत के 338 गावों में सर्वेक्षण कराया. यह सर्वेक्षण रांची, पश्चिम सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला, खूंटी, गुमला, लातेहार, लोहरदगा में हुआ. इसमें मालूम चला कि 8877 बच्चों में 54 फीसदी स्कूल छोड़ चुके हैं. सबसे अधिक पलायन लातेहार की ताशु पंचायत में हुआ. रांची और गुमला में सबसे अधिक मौसमी पलायन देखा गया. इस सर्वेक्षण के अनुसार राज्य में प्रतिवर्ष 77 हजार से अधिक बच्चे पलायन का शिकार हो रहे हैं, जो कुल पलायन का 15 फीसदी है.

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2019 से अब तक 996 बच्चों को तस्करों से कराया गया मुक्त

झारखंड में बाल तस्करी एक गंभीर समस्या है. झारखंड के बच्चों की तस्करी ज्यादातर दिल्ली में सुव्यवस्थित प्लेसमेंट एजेंसी रैकेट के माध्यम से होती है़ 2019 से लेकर अब तक करीब 996 बच्चों को तस्करों से मुक्त कराया गया है. मुक्त कराये गए बच्चों में 410 बच्चों की उम्र 15 से 18 वर्ष के बीच है. 359 ऐसे बच्चे हैं जिनकी उम्र 11 से 14 वर्ष है. इसके अलावा मुक्त कराये गये 126 बच्चों की उम्र 10 वर्ष से भी कम है.

बच्चों को नहीं मिल रहा शिक्षा के अधिकार का पूरा लाभ

राज्य में शिक्षा का अधिकार अधिकार लागू हुए राज्य में 10 वर्ष से अधिक का समय बीत गया, पर अब तक इसके अनुरूप बच्चों को अधिकार नहीं मिल पाया. शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अनुरूप राज्य में अब शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पायी. विद्यालयों में छात्र-अनुपात में शिक्षकों की कमी है. इससे विद्यालयों में पठन-पाठन प्रभावित हो रहा है. राज्य में पांच हजार से अधिक विद्यालय मात्र एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं. विद्यालयों में आवश्यक संसाधन की भी कमी है.

शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत मान्यता प्राप्त निजी विद्यालयों में 25 फीसदी बीपीएल बच्चों के नामांकन का प्रावधान है. इसके तहत झारखंड में प्रति वर्ष लगभग 10 हजार बच्चों का नामांकन लिया जा सकता है, पर झारखंड में पिछले 10 वर्षों में लगभग 10 हजार बच्चों का ही नामांकन हुआ है. बीपीएल बच्चों के लिए आरक्षित सीट खाली रह जाती है. कई प्रयास भी किये जा रहे हैं इस दौरान राज्य सरकार द्वारा शिक्षा का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए कई प्रयास किये गये हैं. राज्य के प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में शिक्षकों के 50 हजार पद सृजित किये गये हैं. स्कूल भवन के निर्माण से लेकर स्कूलों में पेयजल, शौचालय, बिजली की व्यवस्था की गयी है.

बच्चों के अधिकार को जानिए

  • स्वास्थ्य का अधिकार : देश में बच्चों को बेहतर स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधा पाने का पूरा अधिकार है. हर राज्य को निर्देश है कि वह अपने यहां बच्चों के प्रारंभिक स्वास्थ्य की रक्षा और शिशुओं की मृत्यु दर कम करने पर विशेष बल दे.

  • अच्छा जीवन स्तर : 41 विशिष्ट अधिकारों में बच्चों को मिला एक अधिकार यह भी है कि हर बच्चे को अच्छा जीवन स्तर मिले. एच अच्छे जीवन स्तर से मतलब यह है कि जिसमें उसका पर्याप्त मनसिक, शारीरिक, बौद्धिक, नैतिक और सामाजिक विकास हो.

  • किशोर न्याय का अधिकार : यह अधिकार उन बच्चों के लिए है, जिनसे अज्ञानतावश कोई अपराध हो गया हो. इन बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार होना चाहिए जिससे उनके आत्म-सम्मान, योग्यता, विकास को बल मिले, जो उन्हें समाज के साथ फिर से जोड़े. जहां तक संभव हो ऐसे बच्चों को कानूनी कार्यवाहियों से बचाना चाहिए.

  • दुर्व्यवहार से रक्षा : यह बच्चे को उपेक्षा, गाली, दुर्व्यवहार से बचाने का अधिकार है. राज्य का कर्तव्य है कि वह बच्चों को दुर्व्यवहार से बचाये. पीड़ित बच्चों के सुधार, उपचार के लिए कार्यक्रम जरूरी है.

  • ये भी हैं अधिकार : विकलांग बच्चों के लिए उचित व्यवस्था, नशीले पदार्थों से बचाव, क्रीड़ा एवं सांस्कृतिक गतिविधियां, अनाथ बच्चों की रक्षा, बाल श्रमिकों की सुरक्षा.

बच्चों को इन योजनाओं से मिलता है संरक्षण

रांची जिला बाल संरक्षण अधिकारी वेद प्रकाश तिवारी ने बताया कि समेकित बाल संरक्षण योजना के तहत 266 बच्चों को जोड़ा गया है. इसके अलावा फोस्टर केयर याेजना के तहत जिला के पांच बच्चों को जोड़ा गया है, जिसके तहत उन्हें प्रतिमाह 2000 रुपये दिये जाते हैं. वहीं, स्ट्रीट चिल्ड्रेन के तहत जिला के 14 बच्चों को उनका अधिकार दिलाया गया है. कोरोना काल में अनाथ हुए 14 बच्चों को पीएम केयर के तहत आर्थिक मदद पहुंचायी गयी है. प्रत्येक बच्चे के खाते में 10 लाख रुपये की मदद दी गयी.

बच्चे घरेलू व प्रतिष्ठानों में काम करने को विवश

आशा संस्था के सचिव अजय जायसवाल ने कहा कि आज भी छोटे बच्चे घरेलू और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में काम कर रहे हैं. कोरोना काल में जब पढ़ाई बाधित हुई, तो यहां के बच्चे पलायन होकर बाहर चले गये. 55 बच्चों को रेस्क्यू कर वापस लाया गया. बच्चों का विस्थापन राेकने के लिए कोरोना काल में जगह-जगह ओपन स्कूल शुरू किया गया.

मानव व्यापार अपराध फिर भी यह चल रहा है

बचपन बचाओ आंदोलन से जुड़े सोनीलाल ठाकुर ने कहा कि मानव व्यापार जघन्य अपराध है, फिर भी यह चल रहा है. बच्चों का शोषण हो रहा है. आज भी बड़ी संख्या में बच्चे लघु उद्याेग मे हैं. इन जगहों में काम करने वाले बच्चों को मेडिकल गैंग से संपर्क कर के बेचा जाता है. आज भी अभिभावकों को प्रलोभन देकर बच्चों से काम कराया जा रहा है. उनके खाने में नशा तक डाल दिया जाता है.

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