रांची. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर रविवार को झारखंड जनाधिकार महासभा व अन्य संगठनों ने एसडीसी सभागार में महिला अधिकार सम्मेलन आयोजित किया. विषय था : समाज, अर्थ और राजनीति में समानता के हक की दावेदारी. राज्यभर की 200 महिला प्रतिनिधि शामिल हुईं. पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव ने कहा कि राजनीति में संघर्षशील महिलाओं की आवाज को अक्सर दबा दिया जाता है. सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बरला ने कहा कि झारखंड बनाने में महिलाओं ने भी काफी संघर्ष किया था, लेकिन राज्य बनने के बाद पुरुष यह भूल गये. उन्होंने कहा कि आज झारखंड में सिर्फ 10-15 प्रतिशत महिला विधायक हैं, जबकि यह आंकड़ा 50 प्रतिशत होना चाहिए.
समाज, धर्म और पुरुष, महिलाओं को घेर कर रखते हैं
कवयित्री जसिंता केरकेट्टा ने कहा कि समाज, धर्म और पुरुष, महिलाओं को घेर कर रखते हैं. पितृसत्ता को खत्म करने के लिए महिलाओं को इन सब पर सवाल करना होगा. कुमुद ने कहा कि महिलाओं के संघर्ष से समाज, धर्म, राजनीति और आर्थिक व्यवस्था में पितृसत्ता को लगातार चुनौती मिली है. अनेक अधिकार भी जीते गये हैं. शोधकर्ता नसरीन आलम ने कहा कि राज्य में 32 प्रतिशत महिलाएं घरेलू हिंसा से पीड़ित हैं. एकल नारी सशक्ति संगठन की कौशल्या देवी, रजनी मुर्मू, नंदिता भट्टाचार्य और वीना लिंडा ने भी विचार दिये.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

