रांची. पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को बड़ा झटका लगा. 21 सीटों पर पार्टी सिमट गयी. विधानसभा चुनाव में लगे धक्के से पार्टी अब तक नहीं उबर पायी है. सदन में भी भाजपा सुस्त और पस्त दिख रही है. भाजपा के कई धारदार चेहरे सदन में नहीं पहुंच पाये. पूर्व विधायक विरंची नारायण, अमर कुमार बाउरी, भानु प्रताप शाही, अनंत ओझा और अमित मंडल जैसे नेता विधानसभा नहीं पहुंच पाये. इनकी कमी भाजपा खेमे में साफ दिखती है. पार्टी के ये पूर्व विधायक सदन में अपने तरीके से सरकार को घेरते थे. विधायक तैयारी के साथ सदन में आते थे. लेकिन अब सदन में भाजपा दिशाहीन दिख रही है. मुद्दों को लेकर आपसी सहमति नहीं दिख रही है. सदन में विधायक अपने-अपने रास्ते चल रहे हैं. विपक्ष की रणनीति पूरी तरह से बिखरी हुई नजर आ रही है. पार्टी के नेता एक्स पर ज्यादा लिख-पढ़ रहे हैं.
नहीं बना पा रहे विधायक दल का नेता, असमंजस की स्थिति
पार्टी अब तक अपना विधायक दल का नेता नहीं चुन पायी है. विधायक से लेकर प्रदेश के नेता तक दिल्ली की ओर टकटकी लगाये बैठे हैं. पहले चर्चा थी कि सत्र से पहले सदन को प्रतिपक्ष का नेता मिल जायेगा. सदन के अंदर भाजपा को नेतृत्व मिलेगा. लेकिन विधायकों में असमंजस की स्थिति है. विधायक दल के नेता को लेकर हर दिन समीकरण की गुत्थियां सुलझायी जा रही हैं. नेता के नाम की अंदरखाने चर्चा हो रही है और उनसे जातीय समीकरण की कड़ी ही जोड़ी जा रही है. लेकिन भाजपा आलाकमान ने अब तक पत्ता नहीं खोला है.
प्रभारी ने भी पार्टी को अपने हाल पर छोड़ा
पार्टी के प्रदेश प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने भी पार्टी को अपने हाल पर छोड़ दिया है. विधानसभा चुनाव में हार की समीक्षा बैठक में हिस्सा लेने के बाद प्रभारी भी झारखंड नहीं आये. पार्टी का सदस्यता अभियान चल रहा है. इसकी समीक्षा या सांगठनिक कामकाज देखने के लिए वह समय नहीं निकाल पाये. प्रदेश संगठन में खेमाबंदी अपनी जगह है.
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