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Ramdayal Munda Birth Anniversary| रांची, प्रवीण मुंडा : झारखंड की राजधानी रांची के टैगोर हिल पर ओपेन एयर थिएटर का निर्माण पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा का बड़ा सपना था, जो आज तक पूरा नहीं हो सका. डॉ रामदयाल मुंडा इस स्थल को सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित करना चाहते थे. यह 32 जनजातियों की साझा सांस्कृतिक पहचान का स्थल है. डॉ मुंडा की रिश्तेदार डॉ मीनाक्षी मुंडा कहती हैं, ‘डॉ मुंडा ने अपने निधन से पूर्व खुद ही इसकी रूपरेखा पेंसिल से ड्रॉ की थी. ओपेन एयर थियेटर के किनारे 32 जनजातियों को समर्पित कक्ष बनाना था. बीच में सांस्कृतिक दलों के प्रदर्शन के लिए स्टेज तथा दो से तीन हजार दर्शकों के बैठने की जगह होती.’
2011 में मुंडा के निधन के बाद सारी योजनाएं ठंडे बस्ते में
डॉ मुंडा के राज्यसभा सांसद रहते इसके लिए फंड जारी हुआ और शिलान्यास भी किया गया. वर्ष 2011 में उनके निधन के बाद सारी योजनाएं ठंडे बस्ते में चली गयीं. डॉ रामदयाल मुंडा के पुत्र गुंजल इकिर मुंडा कहते हैं, ‘यह एक ऐसा स्थल बनना था, जहां पूरे साल कुछ न कुछ सांस्कृतिक गतिविधियां चलती रहतीं. अभी रांची में ऐसी एक भी जगह नहीं है.’
ओपेन एयर थिएटर की जगह रामदायल मुंडा की प्रतिमा
वहीं, दुर्भाग्यवश इस पर आगे कुछ काम नहीं हुआ. ओपेन एयर थिएटर की जगह पर स्व डॉ रामदयाल मुंडा की प्रतिमा है. नृत्य की मुद्रा में आदिवासी स्त्री-पुरुष की मूर्तियां भी हैं. लेकिन रखरखाव के अभाव में वह जगह भी खराब होती जा रही है. मूर्तियों के ईद-गिर्द साफ-सफाई का अभाव है. सीढ़ियां भी खराब होने लगी हैं.
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मिट गयी शिलापट्ट पर लिखी इबारत
शिलापट्ट पर लिखी इबारत तक मिट चुकी है. आसपास के क्षेत्रों में अतिक्रमण कर लिया गया है. ओपेन एयर थिएटर के सामने सड़क के पास वाली जमीन पर कबाड़ी का कारोबार चल रहा है. वहां पर खाली बोतलें, प्लास्टिक और अन्य कचरा डंप हैं. यहां डॉ मुंडा का सपन दम तोड़ता नजर आता है.
टीआरएल विभाग शुरू किया, झारखंड आंदोलन को दिशा दी
पद्मश्री स्व डॉ रामदयाल मुंडा शिक्षाविद, भाषाविद, संस्कृति कर्मी, झारखंड आंदोलनकारी और राजनेता थे. उनका जन्म 23 अगस्त 1939 को दिउड़ी (तमाड़) में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा अमलेसा स्थित लूथरन मिशन स्कूल में हुई. मानवशास्त्र में स्नातकोत्तर करने के बाद उन्होंने अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय से भाषा विज्ञान में पीएचडी की.
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अमेरिका में अध्यापन करने के बाद रांची लौटे रामदयाल मुंडा
कुछ वर्ष अमेरिका में ही अध्यापन का कार्य करने के बाद वह वापस रांची आये और पद्मश्री स्व डॉ बीपी केसरी सहित अन्य लोगों के साथ जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग की शुरुआत की. झारखंड आंदोलन को उन्होंने एक बौद्धिक तथा सांस्कृतिक दिशा दी थी.
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