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झारखंड आदिवासी बहुल राज्य, फिर भी खाली रह जाती हैं इंजीनियरिंग कॉलेजों में ST कोटे की 91% सीटें

झारखंड के इंजीनियरिंग कॉलेजों में एसटी कोटे की 91 प्रतिशत सीटें खाली रह जाती है. राज्य में आदिवासियों के लिए कुल 1500 सीट है लेकिन 148 सीटें ही भर पाती हैं. इनमें से कई बीच में ही छात्र ड्रॉप आउट हो जाते हैं.

रांची: झारखंड अनुसूचित जनजाति बहुल राज्य है. शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों के लिए 26 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं. यानी अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों के लिए इंजीनियरिंग में कुल 1500 सीटें हैं. लेकिन विडंबना यह है कि इन 1500 सीटों में सिर्फ 148 सीटें ही भर पाती हैं.

इतना ही नहीं अगर उक्त सीटों पर 148 विद्यार्थियों ने एडमिशन ले भी लिया, तो इनमें 15 विद्यार्थी ऐसे होते हैं, जो ड्रॉप आउट हो जाते हैं. साथ ही 20 विद्यार्थी कोर्स की अवधि में पास नहीं हो पाते हैं. ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ इस वर्ष का हाल है. बल्कि लगातार पिछले तीन साल से राज्य के इंजीनियरिंग कॉलेजों की यही स्थिति है. दरअसल, झारखंड यूनिवर्सिटी अॉफ टेक्नोलॉजी के अंतर्गत आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का प्रयोग कर एक रिसर्च किया गया.

14 से 15 फीसदी छात्रों को ही नौकरी :

आरवीएस इंजीनियरिंग कॉलेज के डीन डॉ राजेश तिवारी व बीआइटी सिंदरी के कंप्यूटर साइंस डिपार्टमेंट के प्रो. अभय ज्ञान पी. कुजूर के रिसर्च में यह बात भी सामने आयी कि अगर एसटी विद्यार्थी अगर कोर्स को पूरा भी कर लेते हैं, तो इसमें सिर्फ 14 से 15% विद्यार्थियों को ही नौकरी मिल पाती है.

1500 सीटों में सिर्फ 148 पर ही नामांकन

अनुसूचित जाति के छात्रों की स्थिति अनुसूचित जनजाति के छात्रों की तुलना में अच्छी है

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 10% सीटों में हर साल करीब 9.2 फीसदी सीटें भर जाती हैं

पॉलिटेक्निक, एमबीबीएस का भी यही हाल :

कुछ यही स्थिति राज्य के पॉलिटेक्निक कॉलेजों का भी है. राज्य के पॉलिटेक्निक कॉलेज में करीब 10,000 सीटें हैं. इसमें भी 1000 सीटें ही भर पाती है. अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों की सीटें राज्य में सिर्फ एमबीबीएस यूजी-पीजी के साथ ही बीडीएस कोर्स के लिए भर पाती है. इतना ही नहीं सिर्फ इंजीनियरिंग में ही यह स्थिति है. बल्कि हायर एजुकेशन में सामान्य कोर्स यानी बीएससी, एमएससी या फिर अन्य कोर्स की भी है.

इसलिए पिछड़ रहे अनुसूचित जनजाति के छात्र

  • अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों की स्कूलिंग अमूमन अप टू मार्क नहीं होती है. जब वे विज्ञान में स्नातक या फिर इंजीनियरिंग में एडमिशन लेते हैं. उनमें विज्ञान के प्रति रुझान पैदा नहीं हो पाता है.

  • विज्ञान को समझने के लिए अंग्रेजी अनिवार्य है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भले इस बात का जिक्र किया गया है कि विज्ञान की किताबें भी स्थानीय भाषा में हों, लेकिन अब तक किताबें नदारद हैं.

  • रिसर्च में यह बात भी उभर कर सामने आयी कि अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों की गणित अच्छी नहीं होती. उन्हें ये समझ नहीं आता है, जिसके बाद वे आगे चल कर या, तो स्ट्रीम बदल लेते हैं या फिर ड्रॉप आउट हो जाते हैं.

  • इंजीनियरिंग या फिर पॉलिटेक्निक की पढ़ाई महंगी होती है. कल्याण विभाग की अोर से विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति मिलती है, लेकिन यह कई बार समय पर नहीं मिल पाता है.

Posted By: Sameer Oraon

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