38.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

My Mati: कालेश्वर की कहानियों में है झारखंड की व्यथा

बजरी जाट कहती हैं कि कालेश्वर जी का कहानी संग्रह यथार्थ पर आधारित है. मार्मिक घटनाओं के वर्णन ने इसे और रोचक बना दिया है. दूसरी शोधार्थी सोनू मुथैया, जो केरल की हैं, कहती हैं कि झारखंड की संपूर्ण समझ के लिए और आदिवासियों के जीवन की संघर्षों के वास्तविक चित्रण ने मुझे शोध के लिए प्रेरित किया.

डॉ कृष्णा गोप

My Mati: वर्षीय कालेश्वर को लोग गांव में लोग मास्टरजी के नाम से पुकारते हैं. सहज, सरल व्यक्तित्व, चेहरे पर विनम्रता का भाव, गंवई वेश-भूषा और सादगी भरा अंदाज और सामान्य लहजे में बड़ी से बड़ी बात कह जाने की उनका खासियतें लोगों को प्रभावित करती हैं. उनकी रचनाओं पर केरल और बेंगलुरु के शिक्षण संस्थानों में शोध भी हो चुका है. अबतक दो शोधकर्ताओं के द्वारा इनके लिखे कहानी संग्रह ‘मैं जीती हूं’ पर एमफिल कर चुके हैं.

कालेश्वर ने वर्ष 1964 में 10वीं गांधी+ 2 उच्च विद्यालय रामगढ़ से और वर्ष 1967 में इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की. वर्ष 1970 से करीब 35 वर्षों तक एक राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य रहते हुए झारखंड आंदोलनों में महती भूमिका निभायी. पलामू,चतरा, और हजारीबाग आदि जिलों में महाजनी-जमींदारी के खिलाफ लंबा संघर्ष किया. आइपीएफ ने उन्हें वर्ष 1985 में मांडू विधानसभा के लिए उम्मीदवार बनाया था. नामांकन दाखिल भी किया. फिर पार्टी के कहने पर झारखंड मुक्ति मोर्चा से गठबंधन की वजह से नामांकन वापस लिया. वह झारखंड के शोषित पीड़ित के आवाज बने. 90 के दशक में जन संस्कृति मंच नामक संगठन से जुड़ कर पूरा झारखंड के गांवों में घूमते रहे. उन्हें सीसीएल में नौकरी का अवसर भी मिला, लेकिन उन्होंने कुछ दिन बाद नौकरी छोड़ दी.

रचनाओं के माध्यम से कथाकार कालेश्वर जमीन से जुड़े सवाल उठाते रहते हैं. अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति की चिंता, सामाजिक ताने-बाने, विसंगतियों, खूबियों और समस्याओं से लेकर ग्रामीण रहन-सहन, खेती-किसानी व मवेशियों को लेकर ये अक्सर कलम चलाते रहते हैं. झारखंड की संस्कृति, इतिहास, आदिवासियों की परंपरा, संस्कृति और आम लोगों से जुड़े सवाल इनकी रचनाओं का विषय बनते रहे हैं. इन रचनाओं के पात्र मजदूर, चरवाहे, लकड़हारे, व समस्याओं से जूझते ग्रामीण होते हैं. जाने-माने युवा आलोचक बसंत त्रिपाठी(हिंदी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर, इलाहाबाद विश्वविद्यालय) लिखते हैं ‘मैं जीती हूं’ कहानी संग्रह की भूमिका में इनके कहानियों में आदिवासियों की परंपरा जीवन शैली, बोली-बानी, सौंदर्यबोध, सरल आस्थाएं, सहज ग्रामीण रूप, नृत्य, संगीत, प्रेम, पहाड़ों, झरनों, नदियों और जंगलों की सुंदरता और उसे बचाने का संघर्ष-यानी झारखंड के आदिवासियों का शायद ही कोई ऐसा पक्ष हो, जिसे कहानीकार ने स्पर्श नहीं किया है .

‘मैं जीती हूं’ इनका पहला कहानी संग्रह है. रघुवीर सिंह खन्नाजी बताते थे कि यह कहानी संग्रह आदिवासी जीवन-संघर्ष पर आधारित होने के कारण छत्तीसगढ़ के बस्तर एवं दक्षिण भारत में अधिक बिक्री हुई थी. डॉ इस्पाक अली कहते हैं- कालेश्वर जी ने जो देखा, झेला एवं अनुभूति की उसे शब्दों के माध्यम से दृश्यात्मक बना दिया. विस्थापन एवं स्त्रियों की दारुण व्यथा को बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया. उनकी पुस्तक पर काम करने में वाकई अच्छा लगा डॉ इस्पाक अली दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा बेंगलुरु(कर्नाटक) के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष हैं, जिनके निर्देशन में बजरी जाट नामक शोधार्थी ने ‘मैं जीती हूं’ कहानी संग्रह पर एमफिल किया है. बजरी जाट कहती हैं कि कालेश्वर जी का कहानी संग्रह यथार्थ पर आधारित है.

मार्मिक घटनाओं के वर्णन ने इसे और रोचक बना दिया है. दूसरी शोधार्थी सोनू मुथैया, जो केरल की हैं, कहती हैं कि झारखंड की संपूर्ण समझ के लिए और आदिवासियों के जीवन की संघर्षों के वास्तविक चित्रण ने मुझे शोध के लिए प्रेरित किया. कुछ वर्षों पहले उनके दूसरे कहानी संग्रह ‘सलाम भाटू’ का तमिल भाषा में रूपांतरण किया गया है. ‘इनसाक्लोपीडिया ऑफ झारखंड’ में लोकगीतों के बारे में कालेश्वर के आलेख प्रकाशित हुए हैं. देश के दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं में आलेख, कहानी, समीक्षा, संस्मरण प्रकाशित हो चुके हैं. वह अपनी रचनाओं से गांव-पंचायत के लोगों को भी अवगत कराते रहते हैं, ताकि लोग जागरूक बन सकें. वरिष्ठ साहित्यकार विद्याभूषण ‘सलाम भाटू’ कहानी संग्रह की भूमिका में लिखते हैं- “देशज माटी की तासीर में रची-बसी कहानियां’ हैं. जिस सामूहिकता-कम्युनिटी पार्टिसिपेशन-या सहभागिता के कारण झारखंड के पुरखों की संस्कृति जानी-पहचानी जाती रही है,उसकी बहुतेरी बानगियों के प्रसंग यहां बार-बार वर्णित हुए हैं.

कहानीपन, पठनीयता और कलात्मक उत्कर्ष की कसौटियों पर इन कहानियों को परखा जाये तो बेशक कई शिकायतों का पिटारा खुल सकता है. अब तक हिंदी कहानी में आदिवासी अंचल के विविध रंग-रूप कुशलता से उकेरे गए हैं. इसमें दो राय की जगह नहीं बनती. मगर ये कहानियां उसे अपने ढंग से मानीखेज बनाती हैं कि इनमें एक भुक्तभोगी का बयान आत्मनिरीक्षण के अंदाज में दर्ज है और उसका कथांकन क्लोज अप में खींची गयी तस्वीर की तरह है.

घुटुवा, रामगढ़ में शहीद भगत सिंह पुस्तकालय के स्थापना वर्ष के अवसर पर वर्ष 2021 में आदिवासी बच्चों के द्वारा कालेश्वर की कहानी ‘कल्लू मियां की गाय’ पर नाटक का मंचन किया गया था, जो काफी चर्चित हुई थी. सोशल मीडिया के प्लेटफार्म ‘खोरठा प्रतियोगिता दर्पण’ के फेसबुक पेज में खोरठा में अनुवाद कर इस कहानी का लाइव पाठ किया गया. साथ ही यूट्यूब चैनल के ‘खोरठा डहर’ में प्रसारित किया गया. इसे लोगों ने काफी पसंद किया.

वर्तमान समय में भी कथाकार की लेखनी जारी है. वर्ष 2020 के प्रभात खबर के दीपावली विशेषांक में ‘पुरनी’ कहानी छपी थी. कथाकार मजहर खान कहानी के साथ-साथ एक ‘पगली बुढ़िया’ उपन्यास पर कार्य कर रहे हैं. वर्ष 2014 में झारखंड भाषा साहित्य-संस्कृति अखड़ा,रांची के द्वारा ‘अखड़ा सम्मान’ से सम्मानित किया, वर्तमान समय में ऐसे जनकथाकार एवं उनकी कहानियों को सहेजने की जरूरत है.

(संस्थापक/अध्यक्ष, खोरठा डहर)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें