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लाल रणविजय नाथ शाहदेव की जयंती आज, झारखंड राज्य के लिए इस तरह बढ़ाते थे आंदोलनकारियों का हौसला

झारखंड की मिट्टी में बहुत से महापुरुषों ने जन्म लिया, जिन्होंने अपनी धरती मां को बचाने के लिए अपनी कुर्बानी दी. इन वीरों को उत्साह देनेवाले लोग भी थे. कुछ ने आंदोलन के साथ-साथ अपनी लेखनी से भी झारखंड आंदोलन को मजबूती प्रदान की. इनमें से एक नाम झारखंड आंदोलनकारी स्व लाल रणविजय नाथ शाहदेव का है.

डॉ बुटन महली : झारखंड आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभानेवाले नागपुरी के प्रसिद्ध साहित्यकार झारखंड रत्न स्वर्गीय लाल रणविजय नाथ शाहदेव की 83वीं जयंती रविवार पांच फरवरी को मनाई जा रही. झारखंड की मिट्टी में बहुत से महापुरुषों ने जन्म लिया, जिन्होंने अपनी धरती मां को बचाने के लिए अपनी कुर्बानी दी. इन वीरों को उत्साह देनेवाले लोग भी थे. कुछ ने आंदोलन के साथ-साथ अपनी लेखनी से भी झारखंड आंदोलन को मजबूती प्रदान की. इनमें से एक नाम झारखंड आंदोलनकारी स्व लाल रणविजय नाथ शाहदेव का है.

स्व लाल रणविजय नाथ शाहदेव झारखंड को एक अलग राज्य के रूप में देखना चाहते थे. इसके लिए जनता को जागृत करना चाहते थे. लोगों के पास, उनके गांव जाते थे. अगर बातों को सही तरह से नहीं समझा पाते, तो उस विषय पर गीत लिख कर जागृति लाते थे. यदि गीतों से काम नहीं चलता, तो साहित्य गढ़ कर बताते थे. वर्ष 1957 से उन्होंने झारखंड पार्टी में सक्रिय भूमिका निभायी. जेपी आंदोलन में सक्रिय रहने के कारण कई बार वह जेल गये. 1977 में केंद्रीय गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह की अलग राज्य के संबंध में वार्ता पर शामिल थे. 1989 में गृह मंत्री एसबी चौहान के साथ हुई वार्ता में भी शामिल रहे. उनके कार्यों को देखते हुए 1994 में उन्हें झारखंड पार्टी का उपाध्यक्ष चुना गया, फिर कार्यकारी अध्यक्ष भी बने.

साहित्य के क्षेत्र में भी उनका विशेष योगदान रहा. उन्होंने नागपुरी साहित्य के विकास पर विशेष ध्यान दिया. कई किताबें लिखीं. 1985 में नागपुरी प्रचारिणी सभा के संस्थापक बने. जब पझरा पत्रिका प्रकाशित की गयी तब वे इसके संपादक बने. आकाशवाणी और दूरदर्शन में काफी लोकप्रिय रहे. इनकी प्रकाशित पुस्तकों में पूजा कर फूल (काव्य संग्रह), खोता (काव्य), खुखड़ी रूगड़ा (संपादन), जागी जवानी चमकी बिजुरी (गीत संग्रह), पझरा पत्रिका (प्रधान संपादक) आदि शामिल हैं. नये राज्य के लिए उन्होंने मनु संहिता, चैतन्य महाप्रभु और 17वीं -18वीं शताब्दी की रचनाओं के आधार पर वनांचल की जगह झारखंड नाम की वकालत पुरजोर तरीके से की थी. उनका निधन 19 मार्च 2019 को हुआ.

(लेखक बीएस काॅलेज, लोहरदगा में नागपुरी विभाग में सहायक प्राध्यापक हैं.)

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