JMM Mahadhiveshan| रांची, अनुज कुमार सिन्हा : देश के कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों का बोलबाला रहा है और आज भी है. उन राज्यों में झारखंड भी शुमार है, जहां वर्ष 1995 के विधानसभा चुनाव के बाद से लगातार झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की सीटें बढ़ती रहीं हैं. स्थिति यह है कि वर्ष 2024 में जब झारखंड विधानसभा के चुनाव हुए, तो झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए अकेले 34 सीटों पर विजय हासिल की. इतनी सीटें झारखंड (संयुक्त बिहार के समय को भी ले सकते हैं) के इतिहास में किसी भी क्षेत्रीय दल ने कभी नहीं जीतीं. 1951-52 के पहले विधानसभा चुनाव में सबसे अच्छा प्रदर्शन जयपाल सिंह की अगुवाई वाली झारखंड पार्टी (झापा) ने किया था. झापा ने तब 32 सीटें जीती थी और मुख्य विपक्षी दल बना था. इस रिकॉर्ड को भी वर्ष 2024 में झामुमो ने तोड़कर यह साबित कर दिया कि अब वह बहुत ज्यादा ताकतवर पार्टी बन चुका है. 14-15 अप्रैल को झामुमो के केंद्रीय महाधिवेशन में पार्टी की ताकत दिखेगी. इसमें पार्टी की नीतियां और प्राथमिकताएं भी दिखेंगी.

1973 में हुआ झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन
वर्ष 1973 में शिबू सोरेन, विनोद बिहारी महतो और एके राय ने मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया था और अलग राज्य की लड़ाई आरंभ की थी. पहला महाधिवेशन करने में झामुमो को 10 साल लग गये. वर्ष 1973 से 1984 तक बिनोद बिहारी महतो अध्यक्ष और शिबू सोरेन महासचिव रहे. राजनीतिक हालात बदले और वर्ष 1984 में शिबू सोरेन ने निर्मल महतो को पार्टी का अध्यक्ष बनाया, खुद महासचिव के पद पर ही रहे. यही वह समय था, जब झामुमो तेजी से मजबूत हुआ. वर्ष 1986 के दूसरे महाधिवेशन के बाद निर्मल महतो और शिबू सोरेन ने रांची की सड़कों पर जुलूस निकाला और अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया.

अलग झारखंड के लिए हर घर से एक मुट्ठी चावल के साथ चवन्नी-अठन्नी भी मिली
पार्टी को मजबूत करने के लिए दिशोम गुरु शिबू सोरेन और कार्यकर्ताओं ने बहुत खून-पसीना बहाया. आंदोलन के लिए हर घर से एक मुट्ठी चावल मांगा. लोगों ने साथ में चवन्नी और अठन्नी भी दिया, ताकि झारखंड राज्य की लड़ाई में उसका उपयोग हो सके. ऐसे प्रयासों से झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) मजबूत हुआ और आज मजबूती के साथ सत्ता में है. वर्ष 1987 में निर्मल महतो की हत्या के बाद खुद शिबू सोरेन ने पार्टी की कमान संभाली और उसी समय से वे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.
2015 में झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष बनाये गये हेमंत सोरेन

गुरुजी की बढ़ती उम्र के कारण वर्ष 2015 में कार्यकारी अध्यक्ष का पद सृजित हआ. हेमंत सोरेन को कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेवारी सौंपी गयी. यह बड़ा फैसला था. हेमंत सोरेन ने नये तरीके से संगठन को मजबूत किया. इसका असर वर्ष 2019 और वर्ष 2024 के झारखंड विधानसभा चुनाव में दिखा. इन चुनावों में झामुमो ने क्रमश: 30 और 34 सीटों पर जीत दर्ज की. दोनों ही चुनावों में झामुमो की सरकार बनी. यह पहला मौका था, झामुमो की अगुवाई में महागठबंधन ने लगातार 2 बार विधासनभा चुनाव में बहुमत के साथ सरकार बनायी. दोनों बार हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने. यह उनके कुशल नेतृत्व और संगठन की ताकत को दर्शाता है.
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1973 में बने झामुमो को 1980 में मिला निबंधित पार्टी का दर्जा
झामुमो का गठन भले वर्ष 1973 में हो गया, लेकिन उसे निबंधित पार्टी का दर्जा वर्ष 1980 में मिला. उसी साल शिबू सोरेन दुमका से सांसद बने. विधानसभा चुनाव में 11 सीटों पर झामुमो के उम्मीदवारों को जीत मिली थी. तब बिहार का बंटवारा नहीं हुआ था. वर्ष 1995 के चुनाव में झामुमो को सिर्फ 10 सीटें मिलीं, लेकिन उसके बाद किसी भी चुनाव में झामुमो की सीटें घटी नहीं. लगातार बढ़ती ही गयी. वर्ष 2000 में राज्य बना, उस समय 12 विधायक थे. वर्ष 2005 में 17 विधायक चुने गये. वर्ष 2009 में 18 विधायक निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंचे. वर्ष 2014 में 19 विधायक चुने गये. वर्ष 2019 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के 30 विधायक चुने गये. इसके बाद वर्ष 2024 में झामुमो के 34 विधायक चुनकर झारखंड विधानसभा पहुंचे. 81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा में बहुमत के आंकड़े (41 सीट) से महज 7 सीटें कम.
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झामुमो के महाधिवेशन में इन मुद्दों पर हो सकती है चर्चा
झामुमो महाधिवेशन में संगठन का विस्तार करके, पार्टी को मजबूती प्रदान करने और इन सीटों को आने वाले चुनावों में और बढ़ाने की रणनीति बनेगी. झामुमो उन राज्यों में काम करेगा, जो कभी बृहत्तर झारखंड का हिस्सा हुआ करता था, जहां के लोग झारखंड आंदोलन में भाग लेते थे. इसलिए आगामी चुनावों में बिहार, बंगाल, ओडिशा समेत कई अन्य राज्यों में प्रत्याशी खड़ा करके झारखंड मुक्ति मोर्चा को राष्ट्रीय पार्टी बनाने का प्रयास होगा.
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कल्पना सोरेन ने 2024 के झारखंड विधानसभा चुनाव में दिखायी नेतृत्व क्षमता

वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान हेमंत सोरेन की गैरमौजूदगी में जिस तरीके से कल्पना सोरेन ने पार्टी का नेतृत्व किया, चुनाव में झामुमो का झंडा बुलंद किया, विधानसभा चुनाव में जो उनकी भूमिका रही, उससे स्पष्ट है कि बहुत ही जल्द संगठन में उन्हें बड़ी जिम्मेवारी दी जा सकती है. महाधिवेशन में इस बात पर भी चर्चा होगी कि आरक्षित सीट या ग्रामीण इलाकों के साथ-साथ शहरी सीटों पर भी झामुमो की पकड़ मजबूत हो. महाधिवेशन में शिबू सोरेन की मौजूदगी हमेशा की तरह ताकत देगी. महाधिवेशन के माध्यम से झामुमो अपनी सरकार को यह संदेश भी देगा कि किसी तरह की लड़ाई में पूरी पार्टी सरकार के साथ खड़ी रहेगी, खासकर उन मुद्दों पर, जो केंद्र के पास लंबित हैं और जिन पर केंद्र को फैसला लेना है. एक भव्य महाधिवेशन की तैयारी है, जिसमें आधुनिक तकनीक भी दिखेगी. (लेखक झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार और प्रभात खबर के पूर्व कार्यकारी संपादक हैं.)
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