रांची. मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा की पुण्यतिथि 20 मार्च को है. उनका निधन 1970 में दिल्ली में हुआ था. जयपाल सिंह मुंडा झारखंड के आदिवासी राजनेताओं में शायद सबसे ज्यादा प्रतिभाशाली और बहुमुखी प्रतिभा वाले शख्सियत थे. टकरा गांव में जन्म के कुछ वर्षों बाद उन्होंने रांची के संत पॉल स्कूल में दाखिला लिया. इसके बाद इंग्लैंड जाकर उच्च शिक्षा हासिल की. वे खिलाड़ी, लेखक, संपादक, शिक्षक, आंदोलनकारी, संविधान निर्माता सभा के सदस्य और राजनेता रहे. हालांकि, अंतिम कुछ साल उनके लिए कष्टप्रद रहे. अगर वे कुछ साल और जीते तो शायद झारखंड की राजनीति में एक और सुनहरा अध्याय जोड़ पाते. फिर भी जितना काम वे कर गये, उसकी भी एक लंबी फेहरिस्त है. वे हमेशा झारखंडियों के लिए मरांग गोमके (महान नेता) के रूप में जाने जाते रहेंगे.
1950 में झारखंड पार्टी की घोषणा की थी
एक जनवरी 1950 को जमशेदपुर में आयोजित आदिवासी महासभा के अधिवेशन में उन्होंने झारखंड पार्टी के गठन की घोषणा की थी. गठन के बाद से 1962 तक छोटानागपुर के इस इलाके में झारखंड पार्टी सबसे बड़ी और प्रभावशाली पार्टी बनी रही. 1962 के चुनाव में झारखंड पार्टी 22 विधायक और पांच सांसदों वाली पार्टी थी. जयपाल सिंह पार्टी के साथ मिलकर अलग झारखंड राज्य की लड़ाई लड़ते रहे. पंडित नेहरू के आश्वासन पर उन्होंने 20 जून 1963 को झारखंड पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया. वे पंडित नेहरू की इस बात पर भरोसा करते थे कि कांग्रेस पार्टी के बैनर तले उन्हें अलग राज्य मिल जायेगा. एनई होरो सहित झारखंड पार्टी के कई नेताओं और कार्यकर्ताओं ने विलय का विरोध किया और झारखंड पार्टी को पुनर्जीवित किया. इधर, तीन सितंबर 1963 को जयपाल सिंह को बिहार का उपमुख्यमंत्री बनाया गया और 29 दिन के बाद उन्हें पद से हटा भी दिया गया. 13 मार्च 1970 को जयपाल सिंह मुंडा बहू बाजार रांची में हुई बैठक में शामिल हुए थे. इस दौरान उन्होंने झारखंड पार्टी में लौटने की घोषणा की थी. लेकिन, 20 मार्च 1970 को उनका दिल्ली में निधन हो गया. चिकित्सकों के अनुसार, उनका निधन हृदयघात के कारण हुआ था. उन्हें टकरा में मुंडा रीति रिवाज के साथ उनके माता-पिता की कब्र के पास ही दफनाया गया.
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