रांची. हिंदू लॉ (कानून) के अनुसार, पैतृक संपत्ति में बेटे का जन्म से ही अधिकार होता है. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत यदि संपत्ति संयुक्त हिंदू परिवार की हो और वह अविभाजित हो, तो बेटा उस संपत्ति में जन्म के समय से ही सह-उत्तराधिकारी बन जाता है. पैतृक संपत्ति वह होती है, जो व्यक्ति को उसके पिता, दादा या परदादा से विरासत में बिना किसी वसीयत के मिली हो. हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम-2005 के बाद बेटियों को भी बेटों के समान अधिकार दिया गया है. यह जानकारी झारखंड हाइकोर्ट के अधिवक्ता बालेश्वर यादव ने दी. वे शनिवार को प्रभात खबर की ऑनलाइन लीगल काउंसलिंग में लोगों को कानूनी सलाह दे रहे थे. हेहल निवासी अमन कुमार ने पूछा था कि उनके पिता ने दादा से मिली सारी संपत्ति बेच दी है? मुझे क्या करना चाहिए. इस पर अधिवक्ता ने कहा कि पैतृक संपत्ति में आपका अधिकार बनता है. आपने पिता सिर्फ अपने हिस्से की संपत्ति बेच सकते हैं. आप सिविल कोर्ट में पार्टीशन सूट दायर कर अपने हिस्से की संपत्ति का दावा कर सकते हैं.
रांची निवासी सृष्टि साहू का सवाल :
मेरे घर के बगल में कचरा फेंक दिया गया है. इसकी वजह से बार-बार ट्रैफिक जाम होता है. वहीं, आने-जाने वालों को परेशानी होती है? मैं इसके लिए क्या कर सकती हूं?अधिवक्ता की सलाह :
इसके लिए नगर निगम में लिखित शिकायत कर सकते हैं. अगर बार-बार जानबूझ कर कचरा फेंका जा रहा है, तो यह सार्वजनिक उपद्रव के तहत आपराधिक मामला बन सकता है. आप आइपीसी की धार 268 के तहत पुलिस में शिकायत कर सकते हैं. इसके अलावा आप एसडीएम के पास सीआरपीसी की धारा 133 के तहत आवेदन दे सकती हैं.नामकुम निवासी मोमिता कच्छप का सवाल :
मैं अनुसूचित जनजाति वर्ग से आती हूं. मेरी शादी ओबीसी वर्ग के व्यक्ति के साथ हुई है. मेरे दो बच्चे हैं. मैंने बेटे का एसटी सर्टिफिकेट बनाने के लिए सीओ के पास आवेदन दिया, जिसे रिजेक्ट कर दिया गया है.अधिवक्ता की सलाह :
भारत के कानून के अनुसार, सामान्यत: बच्चे की जाति उसके पिता की जाति के आधार पर तय की जाती है, जब तक कि विशेष परिस्थितियां न हों. यदि पिता ओबीसी वर्ग से हैं और माता एसटी वर्ग से, तो सामान्यतः बच्चे को ओबीसी श्रेणी में माना जायेगा और एसटी का प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जायेगा. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के कुछ निर्णयों में यह माना गया है कि यदि कोई बच्चा पूरी तरह से मां की जनजातीय संस्कृति, परंपरा, और जीवनशैली में पला-बढ़ा हो, जनजातीय समाज में स्वीकृति प्राप्त हो और उसका जीवन उस समाज के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संदर्भों से जुड़ा हो, तो उस स्थिति में वह एसटी प्रमाण पत्र का हकदार हो सकता है. लेकिन यह तय करना स्थानीय प्रशासन और सक्षम प्राधिकरण की विवेकाधीन शक्ति में आता है. इसके लिए पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत करना आवश्यक होता है. अगर सीओ की ओर से आवेदन रिजेक्ट किया गया है, तो आप हाइकोर्ट में याचिका दायर कर सकती हैं.रांची निवासी राजेश कुमार का सवाल :
मेरी जमीन का अधिग्रहण 2018-19 में किया गया था. इसका मुआवजा भी मिल चुका है. लेकिन, उस जमीन का उपयोग जिस उद्देश्य से किया गया था, उसका उपयोग नहीं किया जा रहा है. क्या मैं इस जमीन को बेच सकता हूं.अधिवक्ता की सलाह :
जब जमीन का अधिग्रहण हो गया है और आपने मुआवजा राशि ले ली है, तो ऐसे में आपका दावा समाप्त हो जाता है. जमीन अधिग्रहण को लेकर कानून बनाया गया है. अगर निर्धारित अवधि के बाद भी संबंधित जमीन का उपयोग उस उद्देश्य के लिए नहीं किया जाता है, तो आप उसे वापस करने के लिए दावा कर सकते हैं.इन्होंने भी पूछे सलाह :
कांके निवासी संजय, जामताड़ा निवासी नलिन पंडित, तमाड़ निवासी वंशीधर सिंह मुंडा, खेलारी निवासी आयुष कुमार, देवघर निवासी रंजन कुमार, रांची निवासी मीनाक्षी साहू, हजारीबाग निवासी श्रीप्रसाद, बेड़ो निवासी अजय, रामगढ़ निवासी इसराफिल अंसारी, होचर निवासी मुन्ना कुमार, टीटीसिलवे निवासी अशोक कुमार, कतरास निवासी दुलार चंद्र पंडित व रांची निवासी राजेदव.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है