रांची.
देश की खनन कंपनियां सारंडा क्षेत्र में लौह के भंडार के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर आंकड़े प्रस्तुत कर रही हैं. इससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है. उक्त बातें जमशेदपुर पश्चिम के विधायक सरयू राय ने कही. उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार के खान एवं भूतत्व विभाग को सारंडा सघन वन क्षेत्र के मामले में संवेदनशील होकर काम करना चाहिए. उन्होंने कहा कि खान विभाग की धारणा गलत है कि सारंडा के करीब 55 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में वन्य जीव अभयारण्य ( सेंचुरी) बनाये जाने से 10 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में खनन कार्य नहीं हो सकेगा. क्योंकि, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार अभयारण्य की सीमा रेखा के एक वर्गकिलोमीटर की दूरी तक ही खनन का कार्य नहीं हो पायेगा. सर्वोच्च न्यायालय ने झारखंड सरकार को 23 जुलाई 2025 के पहले सारंडा में वन्य जीव अभयारण्य घोषित करने का निर्णय लेने को कहा है. इसके आलोक में खनन कंपनियों के दबाव में खान विभाग लौह अयस्क खनन के ऐसे आंकड़े जारी कर रहा है, जिनसे भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही गयी है.जरूरत के मुताबिक खनन को मंजूरी दे सरकार
सरयू राय ने कहा कि सरकार सारंडा क्षेत्र में उतना ही लौह अयस्क खनन करने की अनुमति दे, जितना झारखंड राज्य को और पूरे भारत देश को उत्पादन के लिए जरूरी है. अंधाधुंध लौह अयस्क का खनन कर कूड़े के भाव से विदेशों में भेजने की योजना देशहित में नहीं है. यह बड़ी-बड़ी कंपनियों के हित में हो सकती है, मगर राज्य हित में नहीं है. उन्होंने कहा कि इसे ध्यान में रखते हुए खान विभाग को सस्टेनेबल माइनिंग प्लान के निर्देश का पालन करना चाहिए और सारंडा में वन्य जीव अभयारण्य बनने के मार्ग में बाधा उत्पन्न नहीं करना चाहिए.माइनिंग प्लान फॉर सस्टेनेबल माइनिंग के निर्देशों का नहीं हुआ पालन
सरयू राय ने इस मामले में इंडियन मिनरल ईयर बुक-2013 (भाग-1) में सुझाये गये बिंदुओं को रेफरेंस के तौर पर प्रस्तुत किया. साथ ही कहा कि इस बुक के अनुसार, पश्चिम सिंहभूम जिला में हेमेटाइट लौह अयस्क का भंडार 104 मिलियन टन है, जिसमें से 464 मिलियन टन का आंकड़ा संभावित है. जबकि, 104 मिलियन टन सप्रमाण है. माइनिंग प्लान फॉर सस्टेनेबल माइनिंग द्वारा संरचनाओं के विकास के लिए जो निर्देश दिये गये थे, उनका अनुपालन झारखंड सरकार या खान विभाग ने नहीं किया है. स्पष्ट निर्देश है कि रेलवे साइडिंग तक लौह अयस्क ले जाने के लिए कन्वेयर बेल्ट स्थापित किये जायेंगे, ताकि सारंडा का वन संरक्षित रहे. जो खदान नॉन कैप्टिव होने के कारण एक अप्रैल 2020 को बंद हो गयी है, उनकी नीलामी करने और उन्हें फिर से चलाने के बारे में खान विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की है.
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