26 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

बांसुरी बजाने में निपुण बिरसा मुंडा उलगुलान से कैसे बन गए धरती आबा? खौफ खाती थी ब्रिटिश हुकूमत

भगवान बिरसा मुंडा. इन्हें धरती आबा भी कहा जाता है. 19वीं शताब्दी के अंत में उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह किया था. उसे उलगुलान के नाम से जाना जाता है. 15 नवंबर 1875 को खूंटी जिले के उलिहातू गांव में जन्म हुआ था. 9 जून 1900 को हैजे से उनका निधन हो गया था.

रांची, गुरुस्वरूप मिश्रा

सुगना मुंडा व करमी मुंडा के घर में 15 नवंबर 1875 को भगवान बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था. ये बांसुरी बजाने में निपुण थे और कद्दू से बने एक वाद्य यंत्र अपने साथ रखते थे. आदिवासियों को एकजुट कर उलगुलान के जरिए इन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था. आखिरकार इन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाला गया था. दो साल बाद इन्हें रिहा कर दिया गया था. 9 जून 1900 को हैजे से उनका निधन (Birsa Munda Punyatithi) हो गया था. धरती आबा के नाम से प्रसिद्ध भगवान बिरसा मुंडा का शहादत दिवस 9 जून को मनाया जाता है. आइए जानते हैं इनकी पूरी कहानी केंद्रीय झारखंड विश्वविद्यालय (सीयूजे) के एंथ्रोपोलॉजी एंड ट्राइबल स्टडीज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ रवींद्रनाथ शर्मा से.

बांसुरी बजाने में निपुण थे बिरसा मुंडा

भगवान बिरसा मुंडा. इन्हें धरती आबा भी कहा जाता है. 19वीं शताब्दी के अंत में उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह किया था. उसे उलगुलान के नाम से जाना जाता है. सुगना मुंडा व करमी मुंडा के घर उनका जन्म (Birsa Munda Birth ) 15 नवंबर 1875 को खूंटी जिले के उलिहातू गांव में हुआ था. मिशनरियों के प्रवचनों का उन पर काफी प्रभाव पड़ा था और वे वैष्णव वक्ता की शिक्षाओं से प्रभावित हुए और पवित्रता को उच्च प्राथमिकता दी. वह बांसुरी बजाने में निपुण थे और कद्दू से बने एक वाद्य यंत्र अपने साथ रखते थे. अपने शिक्षक जयपाल नाग के निर्देशन में उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा सालगा में प्राप्त की. जयपाल नाग ने अपने शैक्षणिक कौशल के कारण जर्मन मिशन स्कूल में दाखिला लेने का सुझाव दिया. बिरसा ने ईसाई धर्म अपना लिया और अपना नाम बदलकर बिरसा डेविड रख लिया था, जो बाद में बिरसा दाउद हो गया.

Also Read: बिरसा मुंडा के नाम से झारखंड में संचालित हैं ये योजनाएं, पढ़ें क्यों हुई थी इसकी शुरुआत

ब्रिटिश सरकार के खिलाफ शुरू किया था उलगुलान

1895 में जब उन्होंने ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए आंदोलन शुरू किया तो उन्हें जेल में डाल दिया गया था. दंगों के आरोपों के कारण उन्हें दोषी ठहराया गया. उन्हें दो साल जेल की सजा भी मिली. 1897 में उन्हें जेल से रिहा किया गया था. 9 जून 1900 को हैजे से उनका निधन (Birsa Munda Death) हो गया था. इस कारण बिरसा का आंदोलन आगे नहीं बढ़ सका. बिरसा मुंडा को अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासी समुदाय को संगठित करने और औपनिवेशिक अधिकारियों पर दबाव डालने का श्रेय दिया जाता है. इसके कारण अपनी भूमि पर आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून पारित किया गया, जिसे छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट के रूप में जाना जाता है.

Also Read: झारखंड में स्थित हैं भगवान बिरसा मुंडा के कई स्मृति स्थल, जानें क्या है इनकी खासियत

भारतीय संसद के सेंट्रल हॉल में लगी है भगवान बिरसा की तस्वीर

भगवान बिरसा मुंडा की याद में कई संगठनों व संस्थानों का नाम रखा गया है. बिरसा मुंडा एयरपोर्ट (रांची), बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, बिरसा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (मेसरा), बिरसा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (सिंदरी), बिरसा मुंडा वनवासी छात्रावास समेत अन्य हैं. भारतीय संसद के सेंट्रल हॉल में भी इनकी तस्वीर लगी है. इस सम्मान से सम्मानित होने वाले वे एकमात्र आदिवासी नेता हैं.

Also Read: झारखंड: धारदार हथियार से युवक की हत्या, शादी समारोह में साथ लेकर गए दोस्त हैं फरार

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें