Binod Bihari Mahto Jayanti: बिनोद बिहारी महतो का जीवन झारखंड की आत्मा है. शिक्षा से सशक्तिकरण, आंदोलन से राज्य गठन, उनकी देन अमूल्य है. उनकी जयंती हमें याद दिलाती है कि संघर्ष से ही समानता आती है. आज जब झारखंड विकास की राह पर है, बिनोद बाबू का ‘पढ़ो और लड़ो’ नारा प्रासंगिक है. 23 सितंबर 1923 को बिनोद बिहारी महतो धनबाद जिले के बालीपुर प्रखंड के बड़ादाहा गांव में जन्मे. वह कुड़मी महतो समुदाय से थे. एक साधारण किसान महेंद्र महतो और मंदाकिनी देवी के घर जन्मे बिनोद बिहारी महतो ने जीवन भर शोषित-वंचित वर्गों के लिए संघर्ष किया. वे वकील, शिक्षाविद्, समाज सुधारक और राजनीतिज्ञ थे.
शिक्षा को बनाया समानता का हथियार
बिनोद बाबू ने ‘पढ़ो और लड़ो’ का नारा दिया. शिक्षा को समानता का हथियार बनाया. झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक के रूप में अलग राज्य की मांग को राष्ट्रीय पटल पर पहुंचाया. 18 दिसंबर 1991 को मात्र 68 वर्ष की आयु में दिल्ली के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी झारखंड की राजनीति और समाज को प्रेरित करती है.
बिनोद बाबू की 102वीं जयंती और झारखंड के 25 साल
आज 23 सितंबर 2025 को उनकी 102वीं जयंती (Binod Bihari Mahto Jayanti) है. झारखंड राज्य के गठन को 25 वर्ष हो चुके हैं. अलग झारखंड राज्य के रजत जयंती वर्ष पर हम आपको बिनोद बाबू के जीवन की प्रमुख घटनाओं, आंदोलन में उनकी भूमिका, शिक्षण संस्थानों की स्थापना में उनके योगदान, उनके साथियों और दिशोम गुरु शिबू सोरेन से उनके संबंधों पर नजर डालेंगे.
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बिनोद बाबू से जीवन से जुड़ी प्रमुख घटनाएं
बिनोद बिहारी महतो (Binod Bihari Mahto Jayanti) का जीवन संघर्ष, शिक्षा और सामाजिक जागृति की गाथा है. गरीबी में पले-बढ़े, लेकिन कभी हार नहीं मानी. बचपन में 10 किलोमीटर पैदल चलकर या साइकिल से स्कूल जाते थे. एक घटना ने उनके जीवन की दिशा बदल दी: धनबाद के डीसी कार्यालय में क्लर्क रहते एक वकील ने कहा, ‘तुम कितने ही होशियार क्यों न हो, किरानी ही रहोगे.’इस शब्द ने उनके मन पर गहरा आघात किया. अपमान के ये शब्द सुन बिनोद बाबू (Binod Bihari Mahto Jayanti) ने नौकरी छोड़ दी.

पटना लॉ कॉलेज से की वकालत की पढ़ाई
उन्होंने फिर से पढ़ाई शुरू की. पटना लॉ कॉलेज से वकालत की डिग्री ली और 1956 में धनबाद की अदालत में प्रैक्टिस करने लगे. वकील बनकर उन्होंने पंचेत डैम, मैथन डैम, सिंदरी कारखाना और बोकारो स्टील प्लांट जैसे प्रोजेक्ट्स की वजह से विस्थापित हुए गरीबों के मुकदमे लड़े.
सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की
1960 के दशक में सामाजिक कुरीतियों (शराबखोरी, बहुविवाह, अंधविश्वास) के खिलाफ आवाज बुलंद की. 1967 में शिवाजी समाज की स्थापना की, जिसका नाम छत्रपति शिवाजी से प्रेरित था. उनका मानना था कि शिवाजी कुड़मी थे. इस संगठन ने कुड़मी संस्कृति (भाषा, त्योहार, रीति-रिवाज) को बचाया और महाजनी शोषण के खिलाफ आंदोलन चलाया. कई बार संगठन को ‘आतंकवादी’ कहकर संबोधित किया गया. हालांकि, बाद में यही संगठन झारखंड आंदोलन का आधार बना.
माकपा के टिकट पर 1971 में लड़े पहली बार चुनाव
वर्ष 1971 में सीपीएम (मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी) के टिकट पर बिनोद बिहारी महतो (Binod Bihari Mahto Jayanti) ने धनबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा. वह जीत नहीं पाये. दूसरे नंबर पर रहे. 1972 में सीपीएम से इस्तीफा देकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की नींव रखी. 1980 और 1985 में टुंडी से विधायक चुने गये. 1990 में सिंदरी के विधायक बने. 1991 में गिरिडीह से सांसद निर्वाचित हुए. सांसद रहते ही हृदयाघात से उनका दिल्ली में निधन हो गया.

अलग झारखंड राज्य के लिए आंदोलन में भूमिका
बिनोद बाबू (Binod Bihari Mahto Jayanti) को ‘झारखंड आंदोलन का भीष्म पितामह’ कहा जाता है. 25 वर्ष कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई, फिर सीपीएम) में रहने के बाद, उन्होंने महसूस किया कि राष्ट्रीय दल (कांग्रेस, जनसंघ) सामंतवाद और पूंजीवाद के पक्षधर हैं, जबकि दलित-पिछड़े वर्गों के लिए कोई मंच नहीं है. 4 फरवरी 1973 को धनबाद के गोल्फ ग्राउंड में झामुमो का गठन किया, जिसका बैनर लाल-हरा (मार्क्सवादी और आदिवासी) था. बिनोद बिहारी महतो (Binod Bihari Mahto Jayanti) इसके अध्यक्ष बने. आंदोलन का नारा था : ‘झारखंड अलग राज्य, जहां समानता हो, बुनियादी जरूरतें पूरी हों.’
1973 में मीसा के तहत जाना पड़ा था जेल
झामुमो ने भूमि अधिकार, जल-जंगल-जमीन, आदिवासी संस्कृति संरक्षण और विस्थापन के विरोध पर फोकस किया. 1973 में मीसा (MISA) के तहत गिरफ्तार किये गये. गिरिडीह जेल में लालू प्रसाद यादव, संजय बसु मल्लिक जैसे नेताओं के साथ रहे. 1987 में झारखंड को-ऑर्डिनेशन कमिटी (JCC) में शामिल हुए, जहां रामदयाल मुंडा, बिंदेश्वरी प्रसाद केशरी, संजय बसु मुल्लिक, संतोष राणा, सूर्य सिंह बेसरा जैसे नेताओं के साथ काम किया. आंदोलन ने बंद, आर्थिक नाकेबंदी जैसे रास्ते अपनाये. बिनोद बिहारी महतो ने कलम को हथियार बनाया- लेख लिखकर और भाषणों से जागृति फैलायी. आखिरकार 15 नवंबर 2000 में अलग झारखंड राज्य का गठन हुआ.
Binod Bihari Mahto Jayanti: शुरू किये कई शिक्षण संस्थान
बिनोद बिहारी महतो शिक्षा के प्रचारक थे. ‘पढ़ो और लड़ो’ नारा देकर उन्होंने ग्रामीण-आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा का प्रसार किया. वकालत से हुई कमाई के पैसे से सुदूर गांवों में स्कूल-कॉलेज खोले, जहां फीस न्यूनतम रखी. आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने दान दिया. मृत्यु के बाद सूची बनी, तो आश्चर्य हुआ कि झारखंड भर में दर्जनों संस्थान को वे गुप्तान करते थे. दर्जनों संस्थान शुरू कर दिये थे. कुछ की लिस्ट इस प्रकार है –
| संस्थान का नाम | जगह | क्या और कब हुई स्थापना | किन विषयों की होती है पढ़ाई |
|---|---|---|---|
| बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय (BBMKU) | धनबाद | नाम पर आधारित राज्य विश्वविद्यालय (2017 में स्थापित) | स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम, प्रबंधन, शिक्षा, कला, पर्यावरण विज्ञान आदि। 10 संबद्ध कॉलेज, 20 संबद्ध कॉलेज |
| बिनोद बिहारी महतो मेमोरियल टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज (BBMTTC) | तोपचांची, धनबाद | स्थापित (B.Ed कॉलेज) | रिषिकेश महतो मेमोरियल ट्रस्ट के तहत। शिक्षक प्रशिक्षण, आधुनिक सुविधाएं |
| बीबीएम कॉलेज | बलियापुर, धनबाद | स्थापित (स्नातक स्तर) | ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा, उनके समाधि स्थल पर |
| राजगंज कॉलेज | राजगंज, धनबाद | 1982 में योगदान | स्नातक शिक्षा, पिछड़े क्षेत्र के लिए |
| विभिन्न स्कूल-कॉलेज (गिरिडीह, बोकारो, धनबाद) | झारखंड भर | 1960-80 के दशक में खोले/दान | सुदूर ग्रामीण इलाकों में, कम फीस |
बिनोद बाबू के साथी और शिबू सोरेन से संबंध
बिनोद बिहारी महतो के साथी झारखंड आंदोलन के स्तंभ थे. इसमें सांसद, विधायक डॉक्टर, प्रोफेसर सब शामिल थे.
- एके राय : धनबाद के मार्क्सवादी मजदूर नेता. झामुमो गठन में सह-संस्थापक रहे. एके राय लाल झंडा के समर्थक थे.
- टेकलाल महतो : कुड़मी नेता, सामाजिक सुधार में बिनोद बिहारी महतो के सहयोगी रहे.
- देवेंद्र नाथ महतो : पुरुलिया के पूर्व सांसद देवेंद्र नाथ महतो भी बिनोद बाबू के करीबी थे.
- पार्वती चरण महतो : पूर्व विधायक ने बिनोद बिहारी महतो के आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.
- डॉ भुनेश्वर महतो : चाईबासा के डॉक्टर-नेता डॉ भुनेश्वर महतो ने अलग झारखंड राज्य के आंदोलन और आदिवासियों-मूलवासियों को उनका हक दिलाने के लिए सदैव सक्रिय रहे.
- डॉ कनाई राम महतो : चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े डॉ कनाई राम महतो ने भी बिनोद बाबू के कंधे से कंधा मिलाकर काम किया.
- प्रो विष्णु चरण महतो : रांची लॉ कॉलेज के उपप्राचार्य प्रो विष्णु चरण महतो झारखंड आंदोलन के पुरोधा के बेहद करीब थे.
- इन प्रमुख लोगों के अलावा फटीक चंद्र हेम्ब्रम, विष्णु पद सोरेन, जयराम मार्डी, पशुपतिनाथ महतो, चंडी चरण महतो, विश्वनाथ महतो, गया दत्त महतो, प्रफुल्ल कुमार महतो शिवाजी समाज से जुड़े. शिवाजी समाज ने रामगढ़ और मुंबई में कुड़मी महासभा के अधिवेशन का आयोजन किया.
शिबू सोरेन से थे गुरु-शिष्य जैसे संबंध
शिबू सोरेन से बिनोद बाबू के संबंध गुरु-शिष्य जैसा था. वर्ष 1970 में शिवाजी समाज के प्रभाव से शिबू ने ‘सोनोट संताल समाज’ बनाया. 1972-73 में झामुमो का गठन हुआ, तो शिबू सोरेन पार्टी के महासचिव बने. शिबू आदिवासी (संताल) थे और बिनोद बाबू कुड़मी. दोनों ने पार्टी के झंडे में लाल और हरे रंग को शामिल किया. महतो ने शिबू को ‘दिशोम गुरु’ कहा. शिबू सोरेन, बिनोद बाबू को अपना गुरु मानते थे. आंदोलन में दोनों ने मिलकर महाजनों के खिलाफ ‘जन अदालतें’ लगायीं. वर्ष 1983 तक महतो अध्यक्ष रहे. शिबू के नेतृत्व में झामुमो चला, लेकिन महतो की नींव पर.
बिनोद बाबू के जीवन से जुड़ी प्रमुख घटनाएं
- 1923 में 23 सितंबर को धनबाद के बड़ादाहा में जन्म.
- 1948 में बलियापुर बोर्ड मध्य विद्यालय में शिक्षक बने.
- 1950 में क्लर्क की नौकरी छोड़कर वकालत पढ़ने चले गये. वकील बनने के बाद विस्थापितों का मुकदमा लड़ना शुरू किया.
- 1960 में शिवाजी समाज की स्थापना की. सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया.
- 1967 में सीपीएम में शामिल हो गये. धनबाद नगरपालिका के वार्ड आयुक्त बने.
- 1971 में धनबाद लोकसभा का चुनाव लड़ा. दूसरे स्थान पर रहे.
- 1973 में झामुमो गठन किया. MISA के तहत गिरफ्तार किये गये.
- 1980-1990 तक विधायक रहे. 1980 और 1985 में टुंडी से जीते. फिर 1990 में सिंदरी के विधायक चुने गये.
- 1987 में JCC में शामिल हुए. अलग झारखंड राज्य के आंदोलन को तेज किया.
- 1991 में गिरिडीह लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित हुए.
- 1991 में 18 दिसंबर को दिल्ली में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया.
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