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सुनिए झारखंड के नायकों को : चुनावी एजेंडे में झारखंडीपन होना जरूरी है
अनुज लुगुन झारखंड की अपनी सांस्कृतिक विशेषता है, जो भारत की विविधता का हिस्सा है राजनीतिक पार्टियां चुनाव का घोषणा-पत्र अपनी विचारधारा को केंद्र में रख कर तैयार करती है़ं उस केंद्र के इर्द-गिर्द वे लोक लुभावन वादे करती है़ं. ये लोक लुभावन वादे जनता को दिखाने के लिए होते हैं, लेकिन ये वादे क्या […]
अनुज लुगुन
झारखंड की अपनी सांस्कृतिक विशेषता है, जो भारत की विविधता का हिस्सा है
राजनीतिक पार्टियां चुनाव का घोषणा-पत्र अपनी विचारधारा को केंद्र में रख कर तैयार करती है़ं उस केंद्र के इर्द-गिर्द वे लोक लुभावन वादे करती है़ं. ये लोक लुभावन वादे जनता को दिखाने के लिए होते हैं, लेकिन ये वादे क्या वाकई जनता के होते हैं? घोषणा-पत्र तैयार करते हुए यह देखा जाना चाहिए कि उस क्षेत्र की जनता की अपनी भौगोलिक सांस्कृतिक विशेषता क्या है़ खासतौर पर जब प्रांतीय स्तर की बात हो, तो इसका सबसे ज्यादा ख्याल रखा जाना चाहिए.
स्थानीय और क्षेत्रीय जमीन पर खड़े हुए बिना राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संदर्भों की कोई भी घोषणा अधूरी ही होगी़ झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए भी इस विचार का होना जरूरी है़ झारखंड की अपनी सांस्कृतिक विशेषता है, जो भारत की विविधता का हिस्सा है़ उसकी इस विशेषता को ध्यान दिये बिना यहां की जनता का हित नहीं किया जा सकता है.
जल, जंगल, जमीन, विस्थापन, पलायन, डोमिसाइल, मानव तस्करी, शिक्षा, रोजगार आदि मुद्दे तो है़ं, लेकिन ये अलग- अलग विखंडित मुद्दे नहीं हैं, बल्कि इनका संबंध झारखंड की अपनी अस्मिता से जुड़ा है़ झारखंड के झारखंडीपन को ध्वस्त कर झारखंड की जनता के हित की बात नहीं की जा सकती़ दुर्भाग्य यह है कि झारखंड बनने के बाद से अब तक यही हुआ है. अलग राज्य बनने के दो दशक होनेवाले हैं, लेकिन आज तक झारखंड की जनता के लिए न कला की अकादमी, न प्राचीन समृद्ध भाषाओं की अकादमी और न उनके विकास के लिए साहित्य की अकादमी की स्थापना की गयी़ यहां तक कि झारखंड की मातृभाषाओं में शिक्षा भी उपलब्ध नहीं हो पायी है.
यह राज्य खनिजों के साथ ही कला और खेल की भी खान है़ इस पक्ष पर अब तक किसी भी राजनीतिक दल ने काम नहीं किया़ इसी तरह झारखंड में वन उपज की प्रधानता है़ खेती के अलावा यहां की जनता वनोपज पर निर्भर है और यहां के वन उत्पादों का बहुत बड़ा अंतरराष्ट्रीय बाजार भी है़ लेकिन इसके लिए कोई भी कारगर नीति नहीं है अौर न ही अब तक इससे जुड़े लघु और कुटीर उद्योग अस्तित्व में है़
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