लता रानी, रांची : वर्ष 1966 में बनी हिन्दी फिल्म ‘बादल’ का संजीव कुमार पर फिल्माया गया एक मशहूर गीत है, ‘अपने लिये जिये तो क्या जिये, तू जी एे दिल जमाने के लिए…’ यह गीत राजधानी के लालपुर में रहनेवाली हेमंतिका सेन गुप्ता पर बिल्कुल सटीक बैठता है.
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…तू जी ऐ दिल जमाने के लिए, भूखों का पेट भरने के लिए हेमंतिका ने बनायी ‘रॉबिनहुड आर्मी’
लता रानी, रांची : वर्ष 1966 में बनी हिन्दी फिल्म ‘बादल’ का संजीव कुमार पर फिल्माया गया एक मशहूर गीत है, ‘अपने लिये जिये तो क्या जिये, तू जी एे दिल जमाने के लिए…’ यह गीत राजधानी के लालपुर में रहनेवाली हेमंतिका सेन गुप्ता पर बिल्कुल सटीक बैठता है. संपन्न पारिवारिक पृष्ठभूमि से आनेवाली हेमंतिका […]
संपन्न पारिवारिक पृष्ठभूमि से आनेवाली हेमंतिका के पास अपना भविष्य संवारने के कई बेहतर विकल्प थे, लेकिन इन्होंने सभी अवसरों को दरकिनार करते हुए गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा का संकल्प लिया, जिसे ये आज भी निभा रही हैं.
हेमंतिका ने एमबीए की पढ़ाई की है और आज कंस्लटेंट साइकोलॉजिस्ट भी हैं. एमबीए करने के बाद इन्होंने कुछ दिनों तक एक बड़ी कंपनी में नौकरी भी की. समाज के लिए कुछ करने के उद्देश्य से ये बचपन से ही चैरिटी करती थीं.
नौकरी के दौरान यह सब संभव नहीं हो पा रहा था, इसलिए इनके मन में हमेशा द्वंद्व चलता रहता था. अंतत: इन्होंने अपनी अच्छी-खासी नौकरी छोड़ दी और समाज सेवा का रास्ता अख्तियार कर लिया. इसके बाद इन्होंने कोकर में एक स्कूल खोला, जहां गरीब लड़कियों को नि:शुल्क शिक्षा मुहैया करायी जाती है.
…और रॉबिनहुड आर्मी से जुड़ कर सपना हुआ पूरा
दो साल पहले ही हेमंतिका को ‘रॉबिनहुड आर्मी’ के बारे में पता चला. यह संस्था देश में भूखों का पेट भरने का काम करती है. इस संस्था को पैसों का कोई लेन-देन नहीं होता है, न ही इसका कोई ऑफिस है. यह पूरी तरह से फेसबुक और व्हाट्सएप के जरिये संचालित होती है. हेमंतिका ने अपनी दोस्त प्रिया के साथ मिल कर राजधानी रांची में रहनेवाले गरीबों का पेट भरने की पहल की. 15 अगस्त 2017 से रॉबिनहुड आर्मी रांची चैप्टर की शुरुआत हुई.
रेस्टोरेंट और पार्टी से जुटाते हैं बचा हुआ खाना
‘रॉबिनहुड आर्मी रांची चैप्टर’ राजधानी के रेस्टाेरेंट, होटल और पार्टी में बचा हुए खाना जुटाती है. इसके अलावा आमलोगों के पास जाकर भी गरीबों के लिए स्वच्छ खाना जुटाया जाता है. इसके बाद इसे उन गरीबों तक पहुंचाया जाता है, जो अपना पेट भर पाने में सक्षम नहीं हैं.
शुरुआत में हेमंतिका और प्रिया यह काम अकेले ही करती थीं. आज 100 से ज्यादा लोग रांची में इस संस्था के साथ जुड़ कर काम कर रहे हैं. अब तो लोग खुद इन्हें कॉल करके खाना ले जाने का आग्रह कर रहे हैं.
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