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अब तो रांची की गर्मी की चर्चा होने लगी है : राज्यपाल

रांची : राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि रांची एक समय बिहार की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी. आज तो यहां की गर्मी की चर्चा होने लगी है. नहीं चेते, तो आनेवाला समय और खराब होगा. प्रकृति ने जो हमें दिया है, हम उसे नष्ट कर रहे हैं. श्रीमती मुर्मू बुधवार को होटल बीएनआर में बायोडायवर्सिटी […]

रांची : राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि रांची एक समय बिहार की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी. आज तो यहां की गर्मी की चर्चा होने लगी है. नहीं चेते, तो आनेवाला समय और खराब होगा.

प्रकृति ने जो हमें दिया है, हम उसे नष्ट कर रहे हैं. श्रीमती मुर्मू बुधवार को होटल बीएनआर में बायोडायवर्सिटी डे पर आयोजित एक दिनी कार्यशाला में बोल रही थीं. आयोजन राज्य बायोडायवर्सिटी बोर्ड ने किया था.
राज्यपाल ने कहा कि अपनी सुख सुविधा के लिए मनुष्य प्राकृतिक संसाधनों का अवैज्ञानिक तरीके से दोहन कर रहा है. बायोडायवर्सिटी बोर्ड इस जैव विविधता के संरक्षण के दिशा में अच्छा प्रयास कर रहा है. इससे हमारी परंपरा संरक्षित रहेगी.
गांव का चावल आज भी खाते हैं
राज्यपाल श्रीमती मुर्मू ने कहा कि पॉलिश किया हुआ चावल हमें अच्छा नहीं लगता है. इस कारण आज भी गांव से चावल मंगाकर खाते हैं. अपने गांव (ओड़िशा) से आनेवाले मेरे लिए कई प्रकार का साग लेकर आते हैं. अब तो राजभवन के लोगों को भी यह पसंद आने लगा है.
कम उपज वाले पारंपरिक वेराइटी में अधिक न्यूट्रिशन
प्रधान मुख्य वन संरक्षक संजय कुमार ने कहा कि राजभवन जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिए प्रयास कर रहा है. कई तरह के वनस्पति को यहां संरक्षित किया जा रहा है. राज्य में एक अनुसंधान में पता चला है कि करीब 18 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है.
इसमें 21 फीसदी खेतों में पारंपरिक खेती होती है. यह कुल उत्पादन का करीब 13 फीसदी है. इसकी पौष्टिकता हाइब्रिड अनाजों से अधिक होती है. कम उपज में भी हम अच्छा पोषक तत्व प्राप्त कर सकते हैं.
अपने स्वार्थ के लिए बायोडायवर्सिटी बचाने की जरूरत
बायोडायवर्सिटी बोर्ड के चेयरमैन लाल रत्नाकर सिंह ने कहा कि हमें अपने स्वार्थ के लिए बायोडायवर्सिटी को बचाना होगा. लेकिन, अपने स्वार्थ के लिए हम इसे नष्ट कर रहे हैं.
आज हम 12 प्रकार के वनस्पति का उपयोग करते हैं. इसमें 60 फीसदी गेहूं, धान और मक्का है. 15 प्रकार के जानवरों से 90 फीसदी मांसाहारी भोजन लेते हैं. अगर किसी कारण यह नष्ट हो गया, तो हमारे सामने भोजन के संकट हो जायेंगे. इसके संरक्षण के लिए हम प्रयास नहीं कर रहे हैं.
मधुमक्खी 13 हजार फल-फूल के पौधों का परागण करते हैं. मधमुक्खी नष्ट हो जायेंगे, तो सभी पौधों को अस्तित्व भी समाप्त हो जायेगा. अगर इन पौधों का अप्राकृतिक तरीके से परागण करायेंगे, तो करीब 13 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे. मधुमक्खी हमें नि:शुल्क में इतनी राशि की सुविधा देती है.
इस मौके पर वन विभाग के अपर मुख्य सचिव इंदू शेखर चतुर्वेदी भी मौजूद थे. धन्यवाद ज्ञापन बोर्ड की सदस्य सचिव शैलजा सिंह ने किया.
विद्यार्थियों को मिला पुरस्कार
पूर्व में बोर्ड ने पेंटिंग, भाषण और क्राफ्ट प्रतियोगिता का आयोजन किया था. इसके विजेताओं को समारोह में सम्मानित किया गया.
पेंटिंग : 1. हर्षिता (डीपीएस, रांची), 2. तनीषा पंडा (डीपीएस, रांची ) प्रिया कुमारी (ऑक्सफोर्ड, रांची). निबंध : 1. आदर्श पाठक (संत थॉमस रांची), आद्या अनन्या (डीपीएस, रांची), अदिति केशर (डीपीएस रांची). हैंडीक्रॉफ्ट : मौसमी कुमारी (सरस्वती शिशु विद्या मंदिर), निधि कुमारी (सरस्वती शिशु विद्या मंदिर), मानस्वी भारद्वाज (डीपीएस रांची)

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