रांची : राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स के ब्लड बैंक के पास लाइसेंस नहीं है. फिलहाल, ब्लड बैंक का संचालन नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (एनओसी) के आधार पर ही हो रहा है. इस अव्यवस्था के लिए कोई और नहीं खुद रिम्स प्रबंधन ही जिम्मेदार है.
रिम्स ब्लड बैंक का लाइसेंस 27 मार्च 2016 को ही समाप्त हो गया था. उस वक्त खून की कमी से मरीजों को हो रही परेशानी का हवाला देते हुए रिम्स प्रबंधन ने सेंट्रल ड्रग कंट्रोलर से ब्लड बैंक के संचालन की अनुमति ले ली थी.
उस वक्त जब सेंट्रल ड्रग कंट्रोलर की टीम जब रिम्स ब्लड बैंक का मुआयना करने पहुंची थी, तो उसने कई कमियां चिह्नित की थीं. इस पर रिम्स प्रबंधन ने इन कमियों को जल्द से जल्द दूर कर लेने का हवाला देते हुए एनओसी ले लिया था.
इस पूरे घटनाक्रम को तीन साल बीत गये, लेकिन अब तक ब्लड बैंक की कमियों को नहीं सुधार गया है. इस वजह से अब तक रिम्स के ब्लड बैंक को लाइसेंस नहीं मिल पाया है.
छह माह पहले भी निरीक्षण के लिए आयी थी टीम
सेंट्रल ड्रग कंट्रोलर कोलकाता की टीम ने छह माह पहले भी रिम्स के ब्लड बैंक का निरीक्षण किया था. इस दौरान कई कमियां पायी गयी थीं. टीम ने पाया कि ब्लड बैंक में खून देने के बाद रक्तदाताओं के लिए रिफ्रेसमेंट रूम नहीं है. वहीं, ब्लड बैंक के लिए जितनी जमीन होनी चाहिए, उतनी नहीं है. दीवारों में सीपेज है, जो मानकों के विरुद्ध है. टीम ने कहा है कि रक्तदाताओं को उनके बेड पर ही रिफ्रेसमेंट दिया जाता है, जिससे संक्रमण का खतरा रहता है. टीम ने इन कमियों को शीघ्र दूर करने को कहा था, लेकिन अब तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया.
एसडीबी किट भी खत्म परेशान हैं परिजन
रिम्स में सिर्फ प्लेटलेट्स को अलग करने के लिए लगायी गयी मशीन एसडीबी का किट भी खत्म हो गयी है. इसके कारण मरीज के परिजनों को परेशानी हो रही है. किट नहीं होने के कारण फ्रेश प्लेटलेट्स नहीं तैयार हो पा रहा है. जानकार बताते हैं कि एसडीबी मशीन से होल ब्लड के बजाय सिर्फ प्लेटलेट्स ज्यादा लाभकारी होता है. इससे मरीज के शरीर का प्लेटलेट्स तेजी से बढ़ता है.
- लाइसेंस समाप्त होने पर रिम्स प्रबंधन ने मरीजों की परेशानी का हवाला देकर सेंट्रल ड्रग कंट्रोलर से लिया था एनओसी
- ब्लड बैंक के निरीक्षण के लिए कोलकाता से दो बार आ चुकी है सेंट्रल ड्रग कंट्रोलर की टीम, पर अब तक दुरुस्त नहीं हुई कमियां