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रांची : तेजी से बढ़ रहे हैं सांस के रोगी, रोजाना 20 से ज्यादा मामले आ रहे अस्पतालों में
राजीव पांडेय रांची : राजधानी रांची के सरकारी और निजी अस्पतालों के ओपीडी में श्वांस रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. मेडिकल की भाषा में इस रोग को क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) कहा जाता है. रिम्स के टीबी एंड छाती रोग विभाग के विशेषज्ञ डॉ ब्रजेश मिश्रा बताते हैं कि ओपीडी में […]
राजीव पांडेय
रांची : राजधानी रांची के सरकारी और निजी अस्पतालों के ओपीडी में श्वांस रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. मेडिकल की भाषा में इस रोग को क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) कहा जाता है. रिम्स के टीबी एंड छाती रोग विभाग के विशेषज्ञ डॉ ब्रजेश मिश्रा बताते हैं कि ओपीडी में रोजाना करीब 45 से 50 मरीज अाते हैं. इनमें 20 से 25 नये मरीज सीओपीडी के हाेते हैं. जिस मरीज की हालत ज्यादा गंभीर होती है, उसे इनडोर में भर्ती कर इलाज किया जाता है. ऑक्सीजन की कमी होने पर आॅक्सीजन पर रखा जाता है. कई बार तो मरीज की स्थिति जानलेवा हो जाती है.
विशेषज्ञों की मानें, तो झारखंड में सीओपीडी यानी श्वांस रोग के मरीजों की संख्या के बढ़ने की मुख्य वजह राज्य में खदानों का होना है. खदानों में काम करनेवाले कर्मचारियों, ग्रामीण क्षेत्र में लकड़ी या कोयले के चूल्हे पर खाना बनाने वाली महिलाओं और धूम्रपान करनेवाले लोगों को यह बीमारी होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है. टीबी के मरीज जिनके फेफड़े खराब होते हैं, उन्हें भी सीअोपीडी होने की संभावना रहती है.
शुरुआत में इनहेलर थेरेपी के जरिये मरीज का इलाज किया जाता है. इसके बावजूद मरीज ठीक नहीं होता है, तो उसके इलाज में कुछ दवाएं भी शामिल की जाती हैं.
निजी अस्पताल की ओपीडी में भी प्रतिदिन चार से पांच मरीज : सरकारी अस्पताल के अलावा निजी अस्पताल में भी श्वांस रोगियों की संख्या ज्यादा देखने को मिल रहा है. फेफड़ा रोग विशेषज्ञ डॉ निशिथ सिन्हा ने बताया कि उनके ओपीडी में सीओपीडी और अस्थमा के चार से पांच मरीज परामर्श लेने आते हैं. उन्होंने बताया कि सीओपीडी में श्वांस की नलिकाएं सिकुड़ जाती हैं. इसका सबसे बड़ा कारण धूम्रपान है. 20 प्रतिशत रोगी धूम्रपान नहीं करते फिर भी धुएं वाले वातावरण में रहने के कारण इस रोग से ग्रस्त हो जाते हैं.
लक्षण : – लंबे समय तक खांसी व जुकाम रहना – खांसने पर कफ और बलगम आना – व्यायाम व सीढ़ी चढ़ने में सांस फूलना.
बचाव : – तत्काल धूम्रपान छोड़ दें – धुएं और खदान के धूलकण से बचें – पुरानी खांसी हो, तो तुरंत डाॅक्टर से मिलें.
– स्पाइरोमेट्री, बलगम की जांच, एक्स-रे.
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