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बिशप फेलिक्स टोप्पो एसजे बने रांची के चौथे आर्चबिशप, कहा, किसी भी मजहब के हों, प्रेम, शांति व न्याय के लिए काम करें
प्रतिष्ठापन समारोह में जुटे सैकड़ों मसीही रांची : बिशप फेलिक्स टोप्पो एसजे ने सोमवार को रांची आर्चडायसिस के आर्चबिशप का पदभार संभाला़ वे कार्डिनल तेलोस्फोर पी टोप्पो की जगह नये आर्चबिशप बनाये गये हैं. कार्डिनल टोप्पो (78) विगत 33 वर्षों से इस पद पर थे़ नियमानुसार 75 वर्ष के होने पर उन्होंने अपना इस्तीफा पोप […]
प्रतिष्ठापन समारोह में जुटे सैकड़ों मसीही
रांची : बिशप फेलिक्स टोप्पो एसजे ने सोमवार को रांची आर्चडायसिस के आर्चबिशप का पदभार संभाला़ वे कार्डिनल तेलोस्फोर पी टोप्पो की जगह नये आर्चबिशप बनाये गये हैं. कार्डिनल टोप्पो (78) विगत 33 वर्षों से इस पद पर थे़ नियमानुसार 75 वर्ष के होने पर उन्होंने अपना इस्तीफा पोप को सौंपा था, जिसे अब स्वीकार किया गया है़
उनकी कार्डिनल की उपाधि बरकरार रहेगी और वे देश के तीन अन्य कार्डिनल्स के साथ 80 वर्ष की उम्र तक पोप के चुनाव में हिस्सा लेने की पात्रता रखते हैं. सोमवार को संत मरिया महागिरजाघर में नये आर्चबिशप का प्रतिष्ठापन हुआ़ इसमें कार्डिनल टोप्पो ने आर्चबिशप के रूप में अपना मेषपालीय दंड (बिशप्स स्टाफ) नये आर्चबिशप को दिया, जिसके बाद धार्मिक अनुष्ठान शुरू हुआ़ इस समारोह में सैकड़ों मसीहियों ने शिरकत की़ भीड़ के कारण महागिरजाघर के बाहर भी लोगों के लिए बैठने व एलइडी स्क्रीन के माध्यम से चर्च के अंदर की धर्मविधि को देखने की व्यवस्था की गयी थी़
आर्चबिशप फेलिक्स टोप्पो ने कहा
प्रभु यीशु के बलिदान व पुनरुत्थान के साक्षी बनें, सकारात्मक जीवन बितायें
मिस्सा समारोह में अपने संदेश में मुख्य अनुष्ठाता आर्चबिशप फेलिक्स टोप्पो ने कहा कि प्रभु यीशु के रूपांतरण से शिष्यों ने उनके ईश्वरत्व को समझा़ यह समझा कि वे ईश्वर के पुत्र हैं. इस अनुभव ने शिष्यों के हृदय में एक अमिट छाप छोड़ी़ इसलिए शिष्यों ने सब कुछ छोड़ा, आत्मत्याग किया और अपना क्रूस उठा कर यीशु का अनुकरण किया़ वे प्रमाणिक रूप से प्रभु के बलिदान व पुनरुत्थान के साक्षी बनें और अंतत: प्रभु का साक्ष्य देने के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया़
मसीही विश्वासी भी इन रहस्यों को समझने का प्रयास करें, तभी उन शिष्यों की तरह यीशु की शिक्षा का आत्मीय रूप से अनुकरण कर सकेंगे और विश्वसनीय रूप से साक्ष्य दे सकेंगे़ साथ ही अपने दैनिक जीवन में प्रेम से प्रेरित होकर लोगों की भलाई के लिए सकारात्मक जीवन बिताने में सक्षम होंगे़
उन्होंने कहा कि ईश्वर की इच्छा ने उन्हें रांची महाधर्मप्रांत का आर्चबिशप बनाया है़ इसलिए वे आश्वस्त हैं कि ईश्वर ही इस जिम्मेवारी को संभालने के लिए उन्हें प्रज्ञा, साहस व धीरज प्रदान करेंगे़ उन्होंने कहा कि हम सब, चाहे किसी भी मजहब के हों, प्रेम, शांति व न्याय की स्थापना के लिए जीवन बिताए़ं
रांची आर्चडायसिस के चौथे आर्चबिशप हैं फेलिक्स टोप्पो
आर्चबिशप फेलिक्स टोप्पो रांची आर्चडायसिस के चौथे आर्चबिशप हैं. सीबीसीआइ सोसाइटी ऑफ मेडिकल एजुकेशन, नॉर्थ इंडिया की गवर्निग बॉडी के चेयरमैन व झान (झारखंड, अंडमान) रीजनल बिशप्स काउंसिल सहित दो क्षेत्रीय कमीशन के अध्यक्ष भी हैं. मसीही ईशशास्त्र अध्ययन केंद्र, संत अलबर्ट कॉलेज रांची के चांसलर हैं. वे वर्ष 1968 से सोसाइटी ऑफ जीसस से संबद्ध हैं.
14 जून 1997 को जमशेदपुर का बिशप बनने से पूर्व उन्होंने सोसाइटी ऑफ जीसस के नोविशिएट में नोविस मास्टर व सुपीरियर का पद संभाला था़ चार वर्षों तक कैथाेलिक बिशप्स कांफ्रेंस ऑफ इंडिया ऑफिस फॉर द क्लर्जी एंड रिलीजियस व चार वर्षों के लिए नेशनल वोकेशन सर्विस सेंटर, पुणे के अध्यक्ष का पद भी संभाला है़ उनका जन्म 21 नवंबर 1947 को गुमला के टोंगो में हुआ था़ वे 14 अप्रैल 1982 को पुरोहित बने़ उन्होंने ग्रेगोरियन यूनिवर्सिटी, रोम से 1990 में मास्टर्स इन साइकोलॉजी की डिग्री हासिल की है़ 14 जून 1997 को उन्हें जमशेदपुर का बिशप चुना गया, वहीं 27 सितंबर 1997 को उनका प्रतिष्ठापन हुआ़ उनसे पहले आर्चबिशप निकोलस कुजूर,आर्चबिशप पियुष केरकेट्टा व कार्डिनल तेलेस्फाेर पी टोप्पो ने यह पद संभाला है़
हावियेर दी हेरनांदेस ने पढ़ा पोप का पत्र
इससे पूर्व भारत व नेपाल में पोप के राजदूत, ज्यांबातिस्ता द्विकात्रो के प्रतिनिधि हावियेर दी हेरनांदेस ने लैटिन भाषा में पाेप फ्रांसिस का प्रेरितिक नियुक्ति पत्र पढ़ा, जिसका हिंदी अनुवाद फादर थियोडोर टोप्पो ने किया़ जमशेदुपर के बिशप फेलिक्स टोप्पो को संबोधित पाेप द्वारा 24 जून को लिखे इस पत्र में कहा गया कि रांची के आर्चबिशप कार्डिनल तेेलेस्फोर पी टोप्पो के त्यागपत्र के कारण उन्हें रांची के धर्माध्यक्षीय धर्म पीठ के लिए महाधर्माध्यक्ष नियुक्त किया जाता है़ उनकी अगुआई में मसीही जन विश्वास, भरोसा और प्रेम में आगे बढ़े़ं इस घोषणा का स्वागत महागिरजाघर में मौजूद मसीही विश्वासियों ने ईश्वर को धन्यवाद के जयकारे लगा कर व तालियों के साथ किया़
कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो ने कहा
यीशु मसीह की पुकार ने भरोसा बनाये रखा, सबने सहयोग किया
कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो ने कहा कि जून 1978 में दुमका के बिशप का पदभार ग्रहण करने के लिए जब उनके नाम की घोषणा हुई, तब उन्होंने प्रभु यीशु के उद्गार ‘प्रभु का मार्ग तैयार करो’ को अपना आदर्श वाक्य चुना था़
उन्हें हमेशा अपनी अयोग्यता व मानवीय सीमाओं का अहसास रहा, पर महान प्रेरित संत पौलुस के ये शब्द संपूर्ण कार्यकाल में उनका भरोसा बढ़ाते रहे़ वर्ष 1984 में उन्हें रांची महाधर्मप्रांत में स्थानांतिरत किया गया़ इस विविधता से भरे क्षेत्र में जिम्मेवारी संभालना एक बढ़ी चुनौती थी, पर 34 सालों के लंबे कार्यकाल में प्रेरित पौलुस के उत्साहवर्द्धक शब्दों व प्रभु यीशु मसीह की पुकार ने उनका भरोसा बनाये रखा़
इस बीच उन्हें राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई जिम्मेदारियां सौंपी गयीं. इसी क्रम में उन्हें, कार्डिनल बनने से काफी पहले ही, एशिया स्तर पर सुसमाचारी साक्ष्य का उत्तरदायित्व सौंपा गया़ इसे वे छोटानागपुर में प्रभु के सेवक, फादर कांस्टेंट लीवंस व उनके सहकर्मी सुसमाचार वाहकों की चमत्कारिक मेहनत की कलीसियाई सराहना मानते हैं. ईश्वर की दया से सिर्फ एक शताब्दी में ही छोटानागपुर की कलीसिया ने मसीही साक्ष्य का जो परिचय दिया, उसका नतीजा उन जैसे अयोग्य व्यक्ति को कार्डिनल का सम्मान दिया जाना है़
कार्डिनल ने कहा कि पोप जॉन पॉल द्वितीय ने उनसे अधिक यह सम्मान छोटानागपुर की कलीसिया को दिया है़ ईश्वर की अपार करुणा से छोटानागपुर की कलीसिया अब प्रौढ़ हो गयी है़ वे समस्त कलीसिया के विश्वासियों व सदिच्छा के लोगों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं. सबने उनके साथ उदारता पूर्वक सहयोग किया़ एक साथ मिल कर प्रभु के सेवक फादर कांस्टेंट लीवंस के आदर्शों के अनुसार यहां अनुशासित व सुसंगठित समुदाय के निर्माण के लिए काम किया़ उनका आग्रह होगा कि आपसी मतभेदों को भुला कर सभी मिल कर इस प्रयास को जारी रखे़ं
बिशपों व झारखंड सदभावना मंच ने दीं शुभकामनाएं
नये आर्चबिशप को चर्च ऑफ नार्थ इंडिया, छोटानागपुर डायसिस के बिशप बीबी बास्के, जीइएल चर्च के बिशप अमृत जय एक्का व बिशप जॉनसन लकड़ा ने अपनी शुभकामनाएं दीं. उधर, झारखंड सद्भावना मंच की अोर से अध्यक्ष डॉ अहमद सज्जाद ने भी अपनी भावनाएं व्यक्त की़
उन्होंने कहा कि कार्डिनल टोप्पो के लंबे समय की सेवा को लोग अच्छी तरह जानते- समझते हैं. कार्डिनल ने जिस परंपरा की शुरुआत की है, उसे नये आर्चबिशप आगे बढ़ाये़ं ईसाई मिशनरियों की शिक्षा, स्वास्थ्य व समाज सेवा के क्षेत्र में योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता़ यह सेवा अाज भी पूरे जोशो-खरोश से जारी है़ हम सबको कंधे से कंधा मिला कर आगे बढ़ना है़ कार्यक्रम का संचालन फादर सेबेस्टियन तिर्की ने किया़ सिस्टर सोसन बाड़ा ने धन्यवाद ज्ञापन किया़
आर्चबिशप हाउस से युवा संघ के मोटरसाइकिल काफिले ने की अगुआई
समारोह के लिए आर्चबिशप हाउस से संत मरिया महागिरजाघर तक कार्डिनल, नये आर्चबिशप व अन्य बिशपों व आर्चबिशपों की अगुवाई युवा संघ के सदस्यों ने मोटरसाइकिल काफिले के साथ की़ संत मरिया महागिरजाघर में महिला संघ की सदस्यों ने पारंपरिक रीति-रिवाज से अतिथियों का स्वागत किया़ वहीं, महागिरजाघर में छात्राओं के नृत्य दल ने उनकी अगवानी की़
आर्चबिशप फेलिक्स टोप्पो को कार्डिनल ने सौंपा मेषपालीय दंड
कार्डिनल टोप्पो ने अपना मेषपालीय दंड नये आर्चबिशप फेलिक्स टोप्पो को सौंपा़ उन्होंने कहा कि मेषपाल के कार्यों की जिम्मेदारी वे नये आर्चबिशप को सौंपते हैं. इस पर नये आर्चबिशप ने कहा कि वे रांची महाधर्मप्रांत की सेवा करने की जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं. विश्वास पूर्वक सेवा करने का वचन देते हैं.
इसके बाद कलीसिया के प्रतीक के रूप में ऑग्जीलरी बिशप थियोडोर मास्करेन्हास व बिशप तेलेस्फोर बिलुंग, चार धर्मसमाजी, पांच डीन व चार लोकधर्मियों ने नये आर्चबिशप का हाथ चूम कर व उन्हें गले लगाकर उनका स्वागत व अभिनंदन किया़ इसके बाद मिस्सा पूजा की शुरुआत हुई़
देश भर से जुटे बिशप व आर्चबिशप
प्रतिष्ठापन समारोह में पटना के आर्चबिशप विलियम डिसूजा, कोलकाता के आर्चबिशप थॉमस डिसूजा, रायपुर के आर्चबिशप थॉमस डिसूजा, रायपुर के आर्चबिशप विक्टर हेनरी ठाकुर, बेंगलुरु के आर्चबिशप पीटर मचाडो, अगरतल्ला के बिशप ल्यूमेन मोंटारियो, पोप के राजदूत के प्रतिनिधि हावियेर दी फेरनादेस, गुड़गांव के बिशप जेकब मार बरनाबास, पोर्ट ब्लेयर के बिशप एलेक्स डायस, जलपाइगुड़ी के बिशप क्लेमेंट तिर्की, गुमला के बिशप पॉल लकड़ा, भागलपुर के बिशप वी कुरियन, शिमला-चंडीगढ़ के बिशप इग्नासियुस मास्करेन्हास, पूर्णिया के बिशप अंजेलुस कुजूर, जशपुर के बिशप इमानुएल केरकेट्टा, राउरकेला के बिशप किशोर कुजूर, हजारीबाग के बिशप आनंद जोजो, सिमडेगा के बिशप विंसेंट बरवा, खूंटी के बिशप विनय कंडुलना, दुमका के बिशप जूलियस मरांडी, रांची के ऑग्जीलरी बिशप तेलेस्फोर बिलुंग, बिशप थियोडोर मास्करेन्हास व बिशप चार्ल्स सोरेंग मौजूद थे़ इसके साथ ही बड़ी संख्या में धर्मसमाजी व विश्वासी भी शामिल हुए़
25 मई 1927 को सृजित हुआ रांची डायसिस, लुइस वान हुक बने पहले बिशप
रांची के पहले बिशप लुइस वान हुक थे, जिनका जन्म बेल्जियम के एंटवेर्प में 17 अप्रैल 1870 को हुआ था़ वे नौ नवंबर 1892 को कोलकाता पहुंचे़ चार अक्तूबर 1903 को कर्सियोंग में उनका पुरोहिताभिषेक हुआ़
उन्हें कुरडेग क्षेत्र में पहले सहायक पल्ली पुरोहित और फिर पल्ली पुरोहित की जिम्मेदारी मिली़ 1909-1919 के बीच उन्हें डायसिसन इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल्स बनाया गया़ इस दौरान उन्होंने संत जॉन स्कूल को विकसित करने में अहम भूमिका निभायी़
25 मई 1927 को रांची के डायसिस बनने पर उन्हें यहां का पहला बिशप बनाया गया़ उनका प्रतिष्ठापन 30 जून 1928 को हुआ़ उन्होंने शिक्षा और वोकेशनल ट्रेनिंग को बढ़ावा देने की दिशा में काफी काम किया़ इसके साथ ही सेमिनरी भवन, नये पेरिशों के निर्माण आदि में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी़ 30 अप्रैल 1933 को कैंसर के कारण उनकी मृत्यु हुई़
बिशप ऑस्कर ने किया था ‘निष्कलंका’ का संपादन
रांची के दूसरे धर्माध्यक्ष, बिशप ऑस्कर सेवरिन का जन्म बेल्जियम के ला न्यूविले में 22 नवंबर 1884 को हुआ था़ वे 31 अक्तूबर 1908 को मिशन फील्ड से जुड़े़ शुरुआत के दो साल उन्होंने रेंगारी में और इसके बाद रांची के संत जाॅन स्कूल में पांच वर्षों तक शिक्षक के रूप में कार्य किया़
एक जुलाई 1919 को उनका पुरोहिताभिषेक हुआ़ इसके बाद पुन: दो वर्षों के लिए उन्हें संत जॉन स्कूल की जिम्मेदारी सौंपी गयी़ वे इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल्स भी रहे़ कुछ वर्षों तक चर्च की पत्रिका निष्कलंका का संपादन किया़ 25 जुलाई 1934 को उन्हें रांची का बिशप नियुक्त किया गया़ इस बीच उन्हें नव सृजित रायगढ़-अंबिकापुर डायसिस का बिशप बनाया गया़
इसने मोन्सिन्योर निकोलस कुजूर के लिए पहले आदिवासी बिशप बनने की राह प्रशस्त की़ यही कार्य उन्होंने स्तानिसलास तिग्गा के लिए भी किया, जो उनकी सेवानिवृत्ति के बाद दरायगढ़- अंबिकापुर डायसिस के पहले आदिवासी बिशप बने़ उनका निधन 30 अप्रैल 1975 को हुआ़ उन्हें कुनकुरी कैथेड्रल में दफनाया गया है़
रांची को मिला आर्चडायसिस का दर्जा निकोलस कुजूर बने पहले आर्चबिशप
रांची के तीसरे धर्माध्यक्ष, आर्चडायसिस के प्रथम आर्चबिशप निकोलस कुजूर को देश के पहले आदिवासी आर्चबिशप होने का गौरव हासिल है़
उनके कार्यकाल में रांची धर्म क्षेत्र ने डायसिस से आर्चडायसिस का आकार लिया़ उनका जन्म रेंगारी के बंदीपहाड़ में सात सितंबर 1898 को हुआ था़
रेंगारी में प्राथमिक शिक्षा पाने के बाद उन्होंने रांची के संत जॉन स्कूल में दाखिला लिया़ 24 अगस्त 1930 को उनका पुरोहिताभिषेक हुआ़ इसके बाद संत अलबर्ट कॉलेज में थियोलॉजी व कैनन लॉ के व्याख्याता बने़ मनरेसा हाऊस का रेक्टर व संत जॉन स्कूल के प्रधानाध्यापक भी बनाये गये़ 1948 में उन्हें बिशप ऑस्कर सेवरिन के विकर जेनरल बनाया गया़ नौ मार्च 1952 को वे उनके उत्तराधिकारी बने़ उन्हीं के कार्यकाल में 19 सितंबर 1953 को रांची को आर्चडासिस का दर्जा मिला़ उनका निधन 24 जुलाई 1960 को ब्रसेल्स में हुआ़
आर्चबिशप पीयूष ने द्वितीय वैटिकन काउंसिल के सभी सत्रों में की थी शिरकत
रांची के चौथे धर्माध्यक्ष, आर्चडायसिस के दूसरे आर्चबिशप पीयूष केरकेट्टा का जन्म तीन मार्च 1910 को बीरू के पिथरा गांव में हुआ था़ 21 नवंबर 1943 को उनका पुरोहिताभिषेक हुआ़ इसके बाद उन्होंने संत अलबर्ट कॉलेज में प्राध्यापक और 1947 से 1954 के बीच संत जॉन स्कूल रांची व संत इग्नासियुस स्कूल गुमला के प्रधानाध्यापक पद की जिम्मेदारी संभाली़ 1955 के जनवरी में उन्हें आर्चबिशप निकोलस कुजूर का विकर जेनरल बनाया गया़ आर्चबिशप निकोलस कुजूर के निधन के बाद उन्हें 28 जुलाई 1960 को विकर केपीट्यूलर चुना गया. वहीं, आठ मार्च 1961 को उन्हें रांची का आर्चबिशप बनाया गया़ 27 जून 1961 को उनका रांची आर्चडायसिस में प्रतिष्ठापन हुआ़ 25 अगस्त 1985 को अपनी सेवानिवृत्ति के बाद वे हुलहुंडू स्थित पुराेहित आवास में रहने लगे़ उनका निधन 21 मई 1993 को मांडर में हुआ़ उनके बाद कार्डिनल टोप्पो ने यह पद संभाला़
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