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जनजातीय इतिहास को फिर से लिखने की है जरूरत : सुदर्शन भगत
देश के अलग-अलग राज्यों में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों का स्मारक बनवाया जायेगा रांची : केंद्र सरकार के राज्य मंत्री सुदर्शन भगत ने कहा है भगवान बिरसा मुंडा ने न सिर्फ अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया, बल्कि अपने समाज में अंधविश्वास अौर कुप्रथा को हटाने के लिए भी काम किया. उन्होंने कहा कि अपने समय में […]
देश के अलग-अलग राज्यों में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों का स्मारक बनवाया जायेगा
रांची : केंद्र सरकार के राज्य मंत्री सुदर्शन भगत ने कहा है भगवान बिरसा मुंडा ने न सिर्फ अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया, बल्कि अपने समाज में अंधविश्वास अौर कुप्रथा को हटाने के लिए भी काम किया. उन्होंने कहा कि अपने समय में अंग्रेज लेखकों सहित अन्य ने जनजातियों का इतिहास लिखा है. कुमार सुरेश सिंह ने जो लिखा वह काफी प्रमाणिक रहा है. उन्होंने जो काम किया, उसे आगे बढ़ाना होगा. जनजातीय इतिहास को फिर से लिखने की जरूरत है.
उन्होंने घोषणा की कि उनका मंत्रालय देश के अलग-अलग राज्यों में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों का स्मारक बनवायेगा. रांची के पुराने जेल परिसर में स्मारक के लिए 25 करोड़ रुपये स्वीकृत किये गये हैं.
सुदर्शन भगत शनिवार को भगवान बिरसा की पुण्यतिथि के अवसर पर मोरहाबादी स्थित डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान में आयोजित संगोष्ठी में बोल रहे थे. इस अवसर पर संस्थान के निदेशक रणेंद्र कुमार ने कहा कि पुराने दस्तावेजों में बिरसा आंदोलनों के बारे में उतना नहीं लिखा गया, जितना संथाल हूल या अन्य जनजातीय आंदोलनों के बारे में लिखा गया था. डॉ कुमार सुरेश सिंह ने मानवीय दृष्टिकोण से बिरसा मुंडा अौर उनके आंदोलनों के बारे में लिखा.
हालांकि बिरसा मुंडा का प्रभाव जनजातीय लोगों की चेतना में काफी प्रभावी रहा था. द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की अोर से लड़ने छोटानागपुर के आदिवासी सैनिक बिरसा मुंडा के जयकारे के साथ जाते थे. संसद भवन में भगवान बिरसा की तस्वीर अौर प्रतिमा स्थापित हुई अौर 1989 में राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में जिस तरह उनका जिक्र किया, उससे बिरसा मुंडा को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली. डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ सत्यनारायण मुंडा ने बिरसा मुंडा के अबुआ दिशुम अबुआ राज की चर्चा की.
डॉ इंद्रकुमार चौधरी ने अपने संबोधन में कहा कि जनजातियों का इतिहास गैर जनजातियों के इतिहास से अधिक प्राचीन है. उन्होंने कहा कि क्या 1857 का स्वतंत्रता संग्राम भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम था. उससे पहले ही झारखंड में संथाल हूल अौर अन्य विद्रोह हुए, जो अंग्रेजों के खिलाफ था. क्या इन्हें राष्ट्रीयता का आंदोलन नहीं माना जाना चाहिए?
साहित्यकार महादेव टोप्पो ने कहा कि 1960 के दशक में आदिवासी युवाअों के बीच अपनी पहचान को लेकर जो द्वंद्व चल रहा था, उसमें उन्हें नायक की तलाश थी. 1966-67 के समय बिरसा सेवा दल के द्वारा चलाये जा रहे आंदोलन से उनके बीच चेतना आयी.
1980 में महाश्वेता देवी ने अपने उपन्यास जंगल के दावेदार में मुंडा समुदाय को लेकर लिखा. तमिल भाषा में भी बिरसा मुंडा को लेकर उपन्यास लिखा. गिरिधारी राम गोंझू सहित अन्य लोगों ने भी संगोष्ठी को संबोधित किया. कार्यक्रम में उपस्थित बिरसा मुंडा के परपोते कन्हैया मुंडा ने मुंडारी गीत की प्रस्तुति दी. मौके पर बलराम, मिथिलेश, सोमा मुंडा सहित अन्य लोग उपस्थित थे.
रांची. प्रदेश कांग्रेस कमेटी के तत्वावधान में धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि शहादत दिवस के रूप में मनायी गयी. कांग्रेस मुख्यालय में भगवान बिरसा के चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित किया गया. इस अवसर पर वक्ताओं ने भगवान बिरसा के जीवन व कार्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि अंगरेजों के खिलाफ युद्ध में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा.
भगवान बिरसा की समाधि स्थल पर माल्यार्पण किया
रांची. जिला महानगर कांग्रेस कमेटी के अनुसूचित जाति विभाग द्वारा कोकर में भगवान बिरसा की समाधि पर श्रद्धासुमन अर्पित किया गया. सदस्यों ने भगवान बिरसा की पुण्यतिथि पर उनको याद करते हुए उनकी शहादत को महान बताया. श्रद्धासुमन अर्पित करनेवालों में ग्रामीण जिला अनुसूचित जाति के अध्यक्ष किशोर नायक, प्रकाश राम, दामोदर राम, अजय राम आदि शामिल थे.
आरआइटी बिल्डिंग में बिरसा मुंडा को किया याद
रांची: केंद्र्रीय सरना समिति (सत्यनारायण लकड़ा गुट) ने आरआइटी बिल्डिंग स्थित कार्यालय में बिरसा मुंडा के चित्र पर माल्यार्पण करते उन्हें श्रद्धांजलि दी़ इस अवसर पर सदस्याें ने कहा कि पूर्व सरना समिति द्वारा प्रार्थना सभा के माध्यम से सरना समाज की पारंपरिक व रूढ़िवादी व्यवस्था को समाप्त करने का षड्यंत्र रचा जा रहा है़
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