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रांची : मां से सेनेटरी पैड के बारे में जाना, फिर अपने पैसे से पैड बनाकर बांटने लगे
II लता रानी II जोन्हा इलाके की आदिवासी महिलाओं के बीच पैड बांटते हैं मंगेश झा रांची : भुवनेश्वर से होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई. कोलकाता के होटल ओबेराॅय ग्रैंड के अलावा रांची के होटल रेडिशन ब्लू में अच्छी सैलेरी पर काम कर रहे मंगेश झा चाहते तो रॉयल लाइफ जी सकते थे. लेकिन समाज में […]
II लता रानी II
जोन्हा इलाके की आदिवासी महिलाओं के बीच पैड बांटते हैं मंगेश झा
रांची : भुवनेश्वर से होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई. कोलकाता के होटल ओबेराॅय ग्रैंड के अलावा रांची के होटल रेडिशन ब्लू में अच्छी सैलेरी पर काम कर रहे मंगेश झा चाहते तो रॉयल लाइफ जी सकते थे. लेकिन समाज में महिलाओं की दयनीय स्थिति को देख कर उन्होंने उनके लिए कुछ काम करने का ठाना. मूल रूप से बिहार के मधुबनी जिले के रहनेवाले मंगेश झा आज के समय में झारखंड के रियल पैडमैन हैं.
वे अपने पैसे से सेनेटरी पैड बना कर जोन्हा इलाके की आदिवासी महिलाओं के बीच बांटते हैं. इतना ही नहीं वे ट्राइबल समुदाय की महिलाओं को कई तरह से सहयोग प्रदान कर उनके उत्थान की दिशा में काम भी कर रहे हैं.
ऐसे बने पैडमैन
मंगेश ने बताया कि वे अपने काम के सिलसिले में जोन्हा क्षेत्र के गांवों में जाया करते थे. उन गांवों में महिलाएं मुसली की खेती करती थीं. लेकिन जब वे माहवारी के दौर में होती थीं, तो काम नहीं कर पाती थी.
उनके लिए मुसली की खेती ही आय का साधन था, लेकिन माहवारी के दौरान वह भी बंद हो जाता था. महिलाओं की ऐसी स्थिति ने मंगेश को काफी परेशान किया. एक दिन वे यही बात साेचते हुए घर आये. घर पर आकर अपनी मां से इस विषय पर बात की. तब मां ने पहली बार उन्हें सेनेटरी नैपकिन दिखा कर इसके बारे में जानकारी दी. उसी समय मंगेश ने अपनी मां को बताया कि वे इस क्षेत्र में ही काम करना चाहते हैं.
पहले तो मां नाराज हुईं. फिर राजी हो गयी. सेनेटरी पैड को लेकर मां ने मंगेश को काफी सहयोग प्रदान किया. मंगेश मां के साथ मिलकर घर पर ही पैड बनाने लगे और इसे गांवों में जाकर बांटने लगे. इसके बाद दुकानों में जाकर सेनेटरी पैड के बारे में लंबा रिसर्च भी किया.
गांव-गांव में बने सेनेटरी पैड सेंटर
मंगेश कहते हैं कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वेे के अनुसार 2016-17 में पूरे देश में 62 प्रतिशत महिलाएं अपने मासिक धर्म के दौरान कपड़े पर निर्भर रहती हैं. वहीं झारखंड में 81 प्रतिशत महिलाएं अभी भी अनहाइजेनिक प्रैक्टिस करती हैं.
इनकी आयु 15 से 24 साल के बीच है. यह वह आयु वर्ग है, जिस उम्र में झारखंड की लड़कियां ब्याही जाती हैं और मां बनती हैं. ऐसे आंकड़े ने मुझे काफी झकझोर कर रख दिया. वह कहते हैं कि सेनेटरी पैड का मुद्दा केवल महिलाओं का मुद्दा नहीं है. यह पूरे समाज से जुड़ा है.
इसके लिए हर किसी को आगे आना होगा. वह कहते हैं कि सरकार की पहल पर झारखंड प्रदेश के महिला मंडल के सहयाेग से जिला, ब्लॉक एवं ग्राम स्तर पर छोटे-छोटे मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट बने, जहां कम से कम दाम पर महिलाआें को पैड उपलब्ध कराया जा सके.
पैडमेन फिल्म हर गांव में दिखायी जाये
मंगेश न केवल सेनेटरी नैपकिन का ही वितरण कर रहे हैं, बल्कि झारखंड से पलायन को रोकने के लिए गांव-गांव के संपूर्ण विकास के लिए इस दिशा में भी पहल कर रहे हैं. उन्होंने जोन्हा क्षेत्र की 160 ट्राइबल युवतियां एवं महिलाओं को रांची के मेडिका अस्पताल में हाउस कीपिंग के काम से जोड़ कर उन्हें राेजगार उपलब्ध कराया है.
साइकिल बांटने से जरूरी पैड का वितरण
मंगेश कहते हैं मेरी नजर में महिला सशक्तीकरण के लिए साइकिल वितरण से ज्यादा पैड बांटने की जरूरत है. उन्होंने युवाआें से अपील की है कि सप्ताह में एक दिन अपना फ्री टाइम समाज को दे. स्लम एरिया में लोगों को सेनेटरी नैपकीन के बारे में जागरूक करें. लड़कियों के साथ-साथ लड़कों को भी आगे आने की जरूरत है.
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