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चारा घोटाला: जब जज से बोले लालू- रिहा होकर घर चले जाते, तो आपको बुला कर दही-चूड़ा खिलाते

रांची : चारा घोटाले में साढ़े तीन साल के सश्रम कारावास की सजा काट रहे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद बुधवार को सीबीआइ की विशेष अदालत में हाजिर हुए. लालू प्रसाद की दो मामलों में पेशी थी. कांड संख्या आरसी 38 ए /96 (दुमका कोषागार से फर्जी निकासी) में सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश शिवपाल […]

रांची : चारा घोटाले में साढ़े तीन साल के सश्रम कारावास की सजा काट रहे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद बुधवार को सीबीआइ की विशेष अदालत में हाजिर हुए. लालू प्रसाद की दो मामलों में पेशी थी. कांड संख्या आरसी 38 ए /96 (दुमका कोषागार से फर्जी निकासी) में सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह की अदालत में उनकी पेशी हुई. एक अन्य मामले कांड संख्या आरसी 47 ए /96 (डोरंडा कोषागार से हुई फर्जी निकासी) में न्यायाधीश प्रदीप कुमार के कोर्ट में हाजिर हुए.

अदालत में पेशी से पूर्व जब उन्हें जेल से कोर्ट परिसर लाया गया, तो पहले लगभग पांच मिनट तक हाजत में रखा गया. दुमका कोषागार से फर्जी निकासी के मामले में पेशी के दौरान न्यायाधीश शिवपाल सिंह और लालू प्रसाद के बीच काफी बातचीत हुई. लालू ने कहा कि रिहा होकर घर चले जाते, तो आपको घर बुला कर दही-चूड़ा खिलाते. इस पर न्यायाधीश ने कहा, चिंता मत न कीजिए, बोलिए, कितना दही-चूड़ा का आदेश कर दें. दोनों के बीच ओपेन जेल को लेकर भी बातचीत हुई. लालू ने कहा कि ओपेन जेल भेजने पर लोग छोड़ने के लिए जाएंगे, मार्च करेंगे. उन्हें रोका जायेगा, तो नरसंहार हो जायेगा.

कोर्ट में हुई बातचीत के अंश

न्यायाधीश : आइएएस लोगों को जेल में सुविधा मिली की नहीं.

वकील : मिल गयी हुजूर.

न्यायाधीश : हम तो सभी के लिए सोच समझ कर ओपेन जेल की अनुशंसा सरकार से किये थे. वहां घर जैसा माहौल मिलता. दो कमरा, टीवी, गो-पालन की सुविधा मिलती. आप लोगों के जाने से वहां का स्तर भी सुधर जाता. मैं अक्तूबर में गया था, ओपेन जेल देखने. वहां की स्थिति अच्छी नहीं. आप लोग जायेंगे, तो सरकार को वहां खर्चा करना पड़ेगा. वकील लोग कहते हैं कि वहां कोई अभियुक्त नहीं रहना चाहता. जबकि बिरसा कारा में अपराधियों के करीब रहते हैं. जिस तरह से चरवाहा विद्यालय का पैसा अफसर लोग खा गये. अब ओपेन जेल भी सफेद हाथी होती जा रही है. आप लोग यह बताएं कि आपलोगों को जेल में कोई दिक्कत नहीं है न.

लालू : जो केस आपके पास है, उसका फैसला जल्द कर दीजिए हुजूर.

न्यायाधीश : अभी सुनवाई चल रही है.

लालू : जज साहब, आप ओपेन जेल का नियम मंगा कर देख लीजिए. 60 साल से ज्यादा उम्र वाले और जिनकी सजा पांच साल से ज्यादा होती है, वे ही ओपेन जेल भेजे जा सकते हैं. बिना बंदी के मर्जी के उसे नहीं भेजा जा सकता. आम नहीं, बल्कि नक्सल से जुड़े मामलों के लोगों के लिए ओपेन जेल बनायी गयी है.

न्यायाधीश : हमें सब पता है. हमने अनुशंसा की है. प्रावधान नहीं होगा, तो सरकार को करना होगा. आइएएस लोग ऐसा कानून बनाते हैं कि सरकार का छीछालेदर होता है.

लालू : कौन एसडीएम और डीएम फोन करता है, उससे हमें क्या मतलब. बहुत बात है, जो नहीं बोल सकते.

न्यायाधीश : नहीं बोलने लायक है, तो मत बोलिए.

लालू : हुजूर जेल से आये, तो कोर्ट में लाने की जगह हाजत में क्यों रखा गया.

न्यायाधीश : सुरक्षा का ध्यान रखना होता है न इसलिए.

लालू : हुजूर! जेल में हमलोगों को टार्चर किया जा रहा. एक सप्ताह में तीन लोगों से ही मिलने देता है. ऐसा कहीं नहीं देखा. फिर यहां पर ऐसा क्यों.

न्यायाधीश : देखना पड़ेगा कि जेल मैनुअल क्या कहता है. किस तरह के कैदियों के लिए क्या प्रावधान है.

लालू : आप जेल प्रशासन को आदेश दीजिए, क्योंकि उसका रवैया ठीक नहीं है. हुजूर, आप बुलाएं हैं, तो हम जल्दी से तैयार हुए और बिना खाना खाये भागे-भागे आ गये, आपके पास.

न्यायाधीश : खड़े क्यों हैं. बैठ जाएं. आप तो कोर्ट के मेहमान हैं.

लालू : हुजूर, आपके कहने का इंतजार था, अब बैठ जाते हैं. बस ऐसा ही कृपा बनाये रखिएगा. अगली केस में ढाई साल ही सजा दीजिएगा.

न्यायाधीश : आप लोगों को दिक्कत नहीं हो, इसलिए कोर्ट में बुलाते हैं.

लालू : हमलोगों को कुछ होगा, तो जिम्मेदार आप ही होंगे. कोर्ट आते हैं, तो थोड़ी-बहुत धक्का-मुक्की, ठेला-ठेली हो जाती है.

न्यायाधीश: हमें ज्ञात है. आप कहें, तो आपके लिए पूरा कोर्ट परिसर खाली करा दें.

लालू : हुजूर, सब आपके हाथ में हैं. आपको बहुत पावर है. जिसको चाहे नाक इधर घुमा दें, उधर घुमा दें. मेरा जो जजमेंट हुआ, उसमें यही हुआ न.

न्यायाधीश : यह सब विधायिका में होता है. जिस काम को करने पर 50 फीसदी से ज्यादा लोग कहें कि वह अच्छा है, तो अच्छा है. जहां तक कोर्ट में आने की बात है, तो आप लोगों की जब इच्छा हो तभी आएं.

लालू : हंसते हुए… बिना बुलाये कैसे आयेंगे. आप हमलोगों की बुला-बुला कर खबर लेते रहिए.

न्यायाधीश : इसलिए तो आप लोगों को यहां बुलवा लेते हैं कि कम से कम अपने लोगों से मिल तो लेते हैं.

लालू : हुजूर ! मैंने सुनवाई के दौरान आपको बताया था कि हमने भी लॉ किया है. हुजूर ने डिग्री देने को कहा, वह भी दे दिया. फिर भी आपने तीन साल की जगह साढ़े तीन सजा दे दी.

न्यायाधीश : हां, हां. देखिए, सजा देने में कई बातों पर गौर करना होता है. हमारे ऊपर भी कोई है. सब कह रहा था, कम से कम तीन साल और अधिक से अधिक पांच साल की सजा मिलेगी. पत्रकार लोगों ने पूछा था- कितनी सजा मिलेगी, मैंने कहा था- प्रभु जाने. जिस दिन सजा पर सुनवाई पूरी हुई, मैंने हर बिंदुओं पर सोच-समझकर साढ़े तीन साल और सात साल की सजा सुनायी.

लालू : हंसते हुए ….हुजूर कोई बात नहीं. आगे भी आपके यहां केस है. रहम कर दीजिएगा.

न्यायाधीश : हां, हां.

लालू : सोचे थे, इस बार घर परिवार के साथ दही-चूड़ा खायेंगे, लोगों को खिलायेंगे. लेकिन सब छूट गया.

न्यायाधीश : कोई बात नहीं. आप जेल में 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाएं. दही-चूड़ा और तिलकूट का आदेश कर देते हैं. खुद भी खाएं और बाकी साथियों को भी खिलाएं.

लालू : रिहा होकर घर चले जाते, तो आपको घर बुला कर दही-चूड़ा खिलाते.

न्यायाधीश : चिंता मत न कीजिए, बोलिए -कितना दही-चूड़ा का आदेश कर दें.

अधिवक्ता : हुजूर, तिलकूट भी.

न्यायाधीश : अरे हां, तिलकूट भी रहेगा.

लालू : हम त यादव हैं, यह विभाग तो हमारा है, कितना चूड़ा और कितना दही बताएं. बस आप छोड़ देते तो चार दिन यही जंगल में बिताते.

न्यायाधीश : आपको अपने लोग ही फेरा में डाल देता है. शहाबुद्दीन को देखे न. सैकड़ों का काफिला लेकर चलता था, टोल टैक्स नहीं देता था. फंस गया.

अधिवक्ता : हुजूर, लालू जी ऐसे नहीं है. यह कायदा कानून वाले हैं.

लालू : हुजूर, जेल में तीन से ज्यादा लोगों से मिलने का आदेश दे दीजिए.

न्यायाधीश : ओपेन जेल चले जाइए, वहां हाथ हिलाते रहिएगा.

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