रांची : झारखंड हाइकोर्ट ने प्रतिबंधित मांस बेचनेवाले पर सीसीए लगाने के हजारीबाग जिला प्रशासन के आदेश को रद्द कर दिया है. कोर्ट ने इसे मौलिक अधिकारों का हनन करार दिया है. हाइकोर्ट के माननीय न्यायाधीश रंगन मुखोपाध्याय की अदालत ने बुधवार को प्रतिबंधित मांस बेचने के मामले के आरोपियों की अोर से दायर क्रिमिनल रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए हजारीबाग के उपायुक्त के आदेश को निरस्त कर दिया.
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कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि उपायुक्त का आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन व माैलिक अधिकारों का हनन करता है. उपायुक्त को इस तरह का मैकेनिकल आदेश पारित करने की जरूरत क्यों पड़ी. आरोपियों को पक्ष रखने के लिए समय क्यों नहीं दिया गया, जबकि उन्होंने कुछ समय देने का आग्रह किया था. यदि आरोपी मानवता के लिए खतरा थे, तो सिर्फ एक माह के लिए जिलाबदर क्यों किया गया, छह माह तक के लिए क्यों नहीं किया गया.
अदालत ने यह भी माना कि इस तरह का मामला पहली बार हाइकोर्ट के समक्ष लाया गया है. इससे अधिवक्ता हेमंत कुमार सिकरवार ने पूर्व प्रार्थियों का पक्ष रखते हुए अदालत को बताया कि हजारीबाग के उपायुक्त ने डीएसपी के प्रस्ताव व एसपी की अनुशंसा के आधार पर 20 जुलाई, 2017 को झारखंड कंट्रोल अॉफ क्राइम एक्ट-2005 के तहत सीसीए लगाने का आदेश पारित किया था. साथ ही 20 जुलाई से 21 अगस्त तक (एक माह के लिए) जिला बदर करने का आदेश दिया था.
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हेमंत कुमार ने कोर्ट को बताया कि हजारीबाग के डीसी ने आदेश पारित करने से पहले आरोपियों को अपना पक्ष रखने के लिए समय भी नहीं दिया. वहीं राज्य सरकार की अोर से सरकारी अधिवक्ता राजीव रंजन मिश्रा व विनोद सिंह ने पक्ष रखा. उन्होंने अदालत से कहा कि जिला बदर का समय समाप्त हो चुका है. वैसी परिस्थिति में याचिका सुनवाई योग्य नहीं है.
उल्लेखनीय है कि प्रार्थी मुशरफ कुरैशी, कमाल कुरैशी, लड्डन कुरैशी, निजामुद्दीन कुरैशी व अफसर कुरैशी की अोर से क्रिमिनल रिट याचिका दायर की गयी थी. उन्होंने सीसीए लगाने व जिलाबदर करने संबंधी उपायुक्त के आदेश को चुनाैती दी थी. उनके खिलाफ हजारीबाग सदर थाना पुलिस ने प्रतिबंधित मांस बेचने के मामले में सनहा दर्ज किया था. बाद में डीएसपी ने सीसीए लगाने का प्रस्ताव एसपी को दिया. एसपी ने उपायुक्त को अनुशंसा भेजी थी.