सुपरविजन को आइजी और एडीजी के स्तर से स्वीकृत किया गया था. इस तरह सीआइडी के इंस्पेक्टर से लेकर एडीजी तक आयोग के निर्देश के घेरे में आ रहे हैं. इस बीच पुलिस के एक आधिकारिक सूत्र ने बताया कि पुलिस मुख्यालय ने मानवाधिकार आयोग से पत्राचार कर जांच रिपोर्ट मंगाने का फैसला लिया है. ताकि यह पता चल सके कि जांच कमेटी ने अनुसंधान के किस-किस स्तर पर गड़बड़ी पकड़ी है. किन तथ्यों के आधार पर कार्रवाई का आदेश दिया है.
उल्लेखनीय है कि आयोग ने मामले की जांच सही तरीके से नहीं करनेवाले और सही तरीके से सुपरविजन नहीं करनेवाले जिला पुलिस और सीआइडी के अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कहा है. यह भी कहा है कि की गयी कार्रवाई से संबंधित रिपोर्ट आठ सप्ताह (दो माह) के भीतर आयोग को दें. आयोग ने डीजीपी से यह भी अनुशंसा की है कि इस मामले की जांच एसपी रैंक के अफसर से करायें और मामले का सुपरविजन आइजी रैंक के अफसर से करायें. आयोग ने अपनी यह अनुशंसा जांच रिपोर्ट के आधार पर की है. तीन माह पहले आयोग की पांच सदस्यीय टीम रांची आयी थी. टीम के सदस्यों ने घटनास्थल पर जाकर मामले की जांच की थी. टीम ने अपनी रिपोर्ट आयोग को दे दी है.
घटना के करीब दो साल पूरे होने को है, लेकिन सीआइडी अभी तक यह स्पष्ट नहीं कर पाया है कि मुठभेड़ असली था या फर्जी. मारे गये लोग नक्सली थे या बेकसूर. गौर करनेवाली बात है कि जिन 12 लोगों की मौत हुई थी, उनमें सिर्फ एक डॉ आरके उर्फ अनुराग के नक्सली होने का रिकॉर्ड पुलिस के पास था. अन्य जो लोग मारे गये थे, उनमें अमलेश यादव(35), अनुराग का बेटा संतोष यादव (25), अनुराग का भतीजा योगेश यादव (25), स्कॉरपियो का चालक मो एजाज अहमद, पारा टीचर उदय यादव (35), नीरज यादव (25), महेंद्र (करीब 17-18 साल) शामिल हैं. इनमें से किसी के भी नक्सली होने का रिकॉर्ड पुलिस के पास नहीं था.