नीरज अमिताभ
रामगढ़ : रामगढ़ शहर में स्थानीय निकाय के रूप में कार्यरत छावनी परिषद क्षेत्र में भवन की उंचाई व प्रतिबंधित क्षेत्र को लेकर लोग कई दशक से परेशान हैं.
लेकिन परेशानियों के बावजूद ये कभी चुनावी मुद्दा नहीं बन पाया. छावनी परिषद के बिल्डिंग बायलॉज के अनुसार रामगढ़ में शहर में भवन केवल जी+1 (ग्राउंड फ्लोर व फर्स्ट फ्लोर) बनाये जा सकते हैं. छावनी परिषद क्षेत्र में अंडर ग्राउंड निर्माण पर भी रोक है. साथ ही शहर के वार्ड नंबर आठ में बिजुलिया तालाब के आस-पास का क्षेत्र तथा वार्ड नंबर सात का कुछ हिस्सा प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित हैं.
रामगढ़ में सैन्य छावनी बनने के समय व बाद में छावनी के लिए जमीन अधिग्रहित की गयी थी. जिस पर रामगढ़ का सैन्य छावनी अवस्थित है. साथ ही सेना द्वारा कुछ क्षेत्रों को यह कह कर चिह्नित किया गया था कि भविष्य में आवश्यकता पड़ने पर इन क्षेत्रों की जमीन सेना द्वारा अधिग्रहीत की जा सकती है.
साथ ही इन जमीन पर भवन निर्माण पर रोक लगा दिया गया. इसे प्रतिबंधित क्षेत्र कहा गया तथा इस क्षेत्र के जमीन पर छावनी परिषद द्वारा भवन के नक्शे नहीं पारित किये जाते हैं. साफ-सफाई समेत अन्य विकास कार्य भी नहीं किये जाते हैं. प्रतिबंधित क्षेत्र की जमीनों के मालिक तो रैयत हैं, लेकिन वे नियमानुसार नक्शा पारित कर भवन नहीं बना सकते हैं. इससे उन्हें भवन व गृह निर्माण के लिए ऋण आदि की सुविधा नहीं मिलती है.
कई बार छावनी परिषद की बैठकों में प्रतिबंधित क्षेत्र को प्रतिबंध मुक्त करने का प्रस्ताव पारित कर लखनऊ कमांड भेजा गया है. सेना द्वारा रामगढ़ स्तर पर भी प्रतिबंध हटाने के लिए अनापत्ति प्रमाण पर दिया गया. लेकिन, क्षेत्र प्रतिबंध मुक्त नहीं हो सका. वर्तमान में प्रतिबंधित क्षेत्र में लगभग एक हजार मकान बगैर नक्शा पारित कराये बन चुके हैं. लेकिन उन्हें छावनी परिषद से सुविधाएं हासिल नहीं हो रही है. इससे इस क्षेत्र में भवन बना कर रह रहे लोगों को परेशानी हो रही है. यही हालात भवनों की उंचाई की बाध्यता की भी है. कई बार संशोधित बिल्डिंग बायलॉज परिषद द्वारा पारित कर भेजा गया.
लेकिन इस पर मंजूरी नहीं मिल सकी. इस प्रतिबंध मुक्त करने व भवन की उंचाई बढ़ाने के प्रस्ताव को लखनऊ कमांड के जीओसी इन चीफ को मंजूरी देनी है. परंतु, रक्षा मंत्रालय में उचित प्रयास न किये जाने की वजह से इन दोनो प्रस्तावों को मंजूरी नहीं मिल पा रही है. सांसदों के समक्ष भी इन मुद्दों को रखा गया. लेकिन, परेशानियों का समाधान नहीं हो पाया.
दुख तो इ बात का है कि उमर जादा बता के पत्ता काट दिया
चचा की किस्मत को ग्रहण लग गया है. ग्रहण क्या लगा, किस्मत पूरी तरह ढंक गयी लगती है. पांच साल तक हांफल रहना भी काम नहीं आया. अभी 15 दिन पहले ही तो बता रहा थे कि फलाना-फलाना काम हमरे मार्फत हुआ है. रेलगाड़ी से लेकर सड़क तक का बखान किये थे.
बात करते-करते इ भी कहा था कि- सुनिये ना एगो किताब छपवा रहे हैं. एक-दो दिन में छप जायेगा. उसमें अपना पूरा काम व उपलब्धि छपवा रहे हैं. उसी से देखियेगा, तो सब पता चलेगा कि क्या-क्या किये हैं. पर चचा की किताब नहीं आयी. अब इ तो मालूम नहीं कि छपी भी की नहीं, लेकिन अॉर्डर पुराना था, छपी तो जरूर होगी. पर दोष किस्मत का ही, तो कोई क्या करें. टिकट मिला नहीं, तो उपलब्धि किसको दिखायें. अब तो अल-बल भी बोल रहे हैं…याचना नहीं अब रण होगा…हो सके रणभेदी बजा कर चचा किताब बांट दें.
देखिये क्या होता है.लेकिन एक बात तो अपने गप्पु चचा भी मानते हैं कि चचा में दम है और तेवर भी. जब से इ धुंधलका साफ हुआ है कि उनका पत्ता पार्टी का लोग साफ कर दिया है. एकदम अलगे तेवर में दिख रहे हैं. गप्पु चचा ने एगो अंदर की बात बतायी कि जेतना दुख टिकट करने से नहीं हुआ उससे बड़का तकलीफ की बात इ लगा कि पार्टी ने उनका उमर जादा होने के कारण उनको बैठा दिया.
इस बात का तो दिल से तकलीफ है भाई. अब बताइये आजकल का जवान लड़कन सब चालिस का उमर पार करते हांफने लगता है. उ अस्सी के हैं, तो क्या हुआ, कोई मुकाबला कर ले उनके साथ, आ जाये मैदान में … कर ले दो दो हाथ, धोबी पछाड़ न दिया तो कहना. उ तो गनीमत है कि चचा मूंछ नहीं रखते. फिर भी कोई मूंछ को ललकार दे, इतना छूट किसी को नहीं हैं भाई…..