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जहां रोक दिये जाओ, वहीं उग जाओ…

नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय व जीएलए कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में गुरुवार को कृष्णा सोबती के जन्म शताब्दी वर्ष पर स्त्री मुक्ति के प्रश्न पर संगोष्ठी

मेदिनीनगर. नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय व जीएलए कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में गुरुवार को कृष्णा सोबती के जन्म शताब्दी वर्ष पर स्त्री मुक्ति के प्रश्न पर संगोष्ठी आयोजित की गयी. समारोह में मुख्य अतिथि प्रोफेसर श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि सर्जक की आंख और हाथ में कलम हो, तो उससे अधिक शक्तिशाली व्यक्ति कोई हो ही नहीं सकता. कृष्णा सोबती की रचना संसार को समझने के लिए स्त्री मुक्ति से अधिक मुक्त स्त्री की चिंता व चिंतन को समझना होगा. लेखक वही होता है, जो समाज में हलचल पैदा करता है. कृष्णा सोबती का हर उपन्यास अपने समाज को आंदोलित करता है. कृष्णा सोबती लेखन से साथ बौद्धिक परिसर का निरंतर विकास करती रहती है. वे बहुत विरले लेखिकाओं में से हैं. जो नर्मदा बचाओ जैसे आंदोलन में शामिल होकर सरकार को लगातार पत्र लिखती हैं. वे कहती हैं कि लेखन केवल लिखना नहीं है लड़ना है, भिड़ना है और जीना है. इस तरह के कार्यक्रम का उद्देश्य शब्द के संस्कार को विकसित करना हैं. कृष्णा सोबती बार-बार कहती हैं. जहां रोक दिये जाओ, वहीं उग जाओ. किसी मिट्टी के अनुकूल मत बनो, मिट्टी को अपने अनुकूल बना लो. संगोष्ठी की अध्यक्षता बैजनाथ राय ने की. उन्होने कहा कि तुलसी जैसे महान साहित्यकार समाज को अभी तक दिशा प्रदान कर रहे हैं. विशिष्ट वक्ता ””””मानस”””” पत्रिका के संपादक डा आर्यपुत्र दीपक ने कहा कि आज हर जगह स्त्री मुक्ति की बात हो रही है. हर कार्यक्रम में हर संगोष्ठी में यहां तक कि स्त्री मुक्ति के लिए स्त्री-विमर्श काव्यांदोलन भी चल रहा है. कृष्णा सोबती जी का रचनात्मक संसार प्रश्न करना सिखाती है. तार्किक बहस के लिए प्रेरित करती है. अपने मान, सम्मान, स्वाभिमान के लिए लड़ने का संदेश देती है. संगोष्ठी की संयोजिका जीएलए कॉलेज की विभागाध्यक्ष डॉ विभा शंकर ने कहा कि ज्ञानात्मक संवेदना एवं संवेदनात्मक ज्ञान के स्तर पर देखा जाये, तो कृष्णा सोबती अपने समय की श्रेष्ठ लेखिका हैं. समारोह का संचालन आरती कुमारी व धन्यवाद ज्ञापन घनश्याम ने किया. मौके पर डा राघवेन्द्र प्रताप सिंह, आरती कुमारी, गोविंद प्रसाद, निरंतर सहित विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों से दर्जनों शिक्षक व सैकड़ों छात्र मौजूद थे.

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