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पोल लगा, पर नहीं पहुंची बिजली

– अजीत मिश्र – छतरपुर विधानसभा क्षेत्र के चिल्ही गांव की हकीकत मेदिनीनगर : चिल्ही गांव छतरपुर, विश्रमपुर व पड़वा थाना की सीमा पर बसा है. गांव में लगभग 300 घर है. यह गांव उग्रवाद प्रभावित इलाका के रूप में चिह्न्ति है. बुनियादी सुविधा के नाम पर इस गांव में कुछ भी नहीं. आज भी […]

– अजीत मिश्र –

छतरपुर विधानसभा क्षेत्र के चिल्ही गांव की हकीकत

मेदिनीनगर : चिल्ही गांव छतरपुर, विश्रमपुर पड़वा थाना की सीमा पर बसा है. गांव में लगभग 300 घर है. यह गांव उग्रवाद प्रभावित इलाका के रूप में चिह्न्ति है. बुनियादी सुविधा के नाम पर इस गांव में कुछ भी नहीं. आज भी बिजली नहीं है. बिजली गांव में पहुंचे, इसके लिए पोल लगाये गये.

पोल तो खड़े हैं, पर घरों में आज तक बिजली नहीं जली. कंप्यूटर, इंटरनेट के युग में भी बिजली नहीं है. गांव के लोग दूरसंचार व्यवस्था से जुड़े हैं. पास में मोबाइल भी है, पर टेंशन चार्ज करने को लेकर होती है.

ग्रामीणों की माने तो मोबाइल चार्ज कराने के लिए उनलोगों को गांव से पांच किलोमीटर दूर पतरा जाना पड़ता है. यदि वहां बिजली नहीं रही, तो पतरा बाजार में जेनेरेटर से मोबाइल चार्ज कराना पड़ता है.

इस पर प्रति मोबाइल चार्ज के लिए पांच से 10 रुपये खर्च करना पड़ता है. चिल्ही गांव छतरपुर विधानसभा के अंतर्गत आता है. पिछले 25 वर्षो के दौरान देखा जाये तो इस विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करनेवाले लोगों को मंत्री तक की कुरसी मिली, फिर भी चिल्ही में बिजली नहीं जली.

एकीकृत बिहार में इस इलाके के विधायक लक्ष्मण राम मंत्री रहे. जब झारखंड बना, तो राधाकृष्ण किशोर को भी मंत्री की कुरसी मिली. वर्तमान विधायक सुधा चौधरी भी मंत्री रह चुकी हैं. इसके बाद भी इस गांव की समस्या दूर नहीं हुई. ग्रामीण हरेश मेहता का कहना है कि नौ साल पहले पोल गड़ा था.

उम्मीद थी कि बिजली मिलेगी, लेकिन यह उम्मीद, नाउम्मीदी में बदल रही है. यह स्थिति तब है, जब राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के माध्यम से सरकार गांवगांव को रोशन करने का दावा कर रही है. चिल्ही गांव में पिछड़ी, आदिवासी अनुसूचित जाति के लोगों की बहुलता है.

गांव की आबादी 1500 के करीब है. विकास का ढिंढोरा तो तामझाम के साथ पीटा जाता है, पर हकीकत क्या है, इसे चिल्ही गांव जाकर देखा जा सकता है. जहां मोबाइल चार्ज करना भी एक समस्या जैसी है.

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