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पलामू में बनते-बिगड़ते रहे हैं राजनीतिक संबंध, भाजपा के लिए विधायिकी दांव पर लगानेवाले नामधारी अब महागठबंधन के साथ

अविनाश 2007 में घुरन राम को दिल्ली तक पहुंचाने वाले गिरिनाथ आज भाजपा को कर रहे गोलबंद मेदिनीनगर : पलामू की राजनीति में धुरंधर माने जानेवाले नेताओं के राजनीतिक रिश्ते बनते-बिगड़ते रहे हैं. रिश्ते बनने -बिगड़ने का एक बड़ा कारण लोकसभा चुनाव भी बनता रहा है. पलामू ने वह दौर भी देखा है जब लोकसभा […]

अविनाश
2007 में घुरन राम को दिल्ली तक पहुंचाने वाले गिरिनाथ आज भाजपा को कर रहे गोलबंद
मेदिनीनगर : पलामू की राजनीति में धुरंधर माने जानेवाले नेताओं के राजनीतिक रिश्ते बनते-बिगड़ते रहे हैं. रिश्ते बनने -बिगड़ने का एक बड़ा कारण लोकसभा चुनाव भी बनता रहा है. पलामू ने वह दौर भी देखा है जब लोकसभा चुनाव को लेकर उपजे विवाद के कारण डालटनगंज विधानसभा में उपचुनाव भी हो गया था. क्योंकि तब डालटनगंज के तत्कालीन विधायक इंदर सिंह नामधारी ने सिर्फ इसलिए विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था, क्योंकि तब जदयू के शीर्ष नेतृत्व ने उनकी बात नहीं सुनी थी.
2007 में पलामू के तत्कालीन सांसद मनोज कुमार की सदस्यता जाने के बाद पलामू में उपचुनाव हो रहा था. उस समय भी भाजपा और जदयू का गठबंधन था. जदयू ने इस सीट पर दावेदारी की थी. तब इंदर सिंह नामधारी ही जदयू के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष थे. श्री नामधारी का कहना था कि इस सीट पर भाजपा की स्वाभाविक दावेदारी है.
क्योंकि 2005 के लोकसभा चुनाव में भाजपा नंबर दो पर थी. लेकिन जदयू के शीर्ष नेतृत्व ने नामधारी की बात अनसुनी कर दी. नामधारी ने अल्टीमेटम दिया था कि यदि जदयू ने उचित निर्णय नहीं लिया, तो वह नैतिकता के आधार पर जदयू प्रदेश अध्यक्ष के साथ-साथ विधायक पद भी छोड़ देंगे और भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में काम करेंगे. श्री नामधारी ने ऐसा किया भी. तब राधाकृष्ण किशोर जदयू में थे. उन्हें नामधारी ही जदयू में ले गये थे.
लेकिन बदली परिस्थिति में श्री किशोर दूसरे पाले में थे और 2007 के उपचुनाव ने जदयू ने उन्हें पलामू संसदीय क्षेत्र का प्रत्याशी बनाया था. 2007 के चुनाव में राजद प्रत्याशी के रूप में घुरन राम ने चुनाव लड़ा था और तब भाजपा प्रत्याशी जवाहिर पासवान के पक्ष में श्री नामधारी उतरे थे. लेकिन 12 वर्षों के बाद पलामू के राजनीतिक मैदान का स्वरूप पूरी तरह से बदला हुआ है. जिस भाजपा के लिए नामधारी ने अपने विधायिकी दांव पर लगा दी, पार्टी से बगावत कर इस्तीफा दे दिया था.
तब घुरन विपक्ष में थे. आज राजनीतिक परिस्थिति बदली है. 2019 में सक्रिय राजनीति से संन्यास ले चुके श्री नामधारी ने यह एलान किया है कि महागठबंधन के प्रत्याशी घुरन राम की जीत उनकी जीत होगी. देखा जाये तो लोकसभा चुनाव के दौरान कई ऐसी राजनीतिक परिस्थिति पलामू में पूर्व में भी देखने को मिला है. 2007 में गिरिनाथ सिंह घुरन राम को दिल्ली तक पहुंचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर तक लगा दिया था. सफलता भी मिली. लेकिन 2019 के चुनाव में वही गिरिनाथ भाजपा के पक्ष में लोगों को गोलबंद कर रहे हैं.
2009 में नवजवान संघर्ष मोर्चा प्रमुख भानु प्रताप शाही ने कामेश्वर बैठा के लिए खुल कर काम किया था. तब बैठा को श्री शाही ने कांग्रेस, झामुमो व नवजवान संघर्ष मोर्चा के प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतारा था. गिरिनाथ पलामू प्रमंडल में राजद के कमान संभाल रहे थे. वह हर हाल में कामेश्वर को रोकना चाहते थे और भानु की जिद थी कामेश्वर बैठा को बैठाने की. उस दौरान गिरिनाथ व भानु के रिश्तों में काफी तल्खी भी आ गयी थी. कई मौकों पर तीखी नोंक-झोक भी हुई थी.
यदपि उस चुनाव में भानु श्री बैठा को दिल्ली की कुर्सी पर बैठाने में सफल रहे थे. लेकिन इस चुनाव के बाद उनके बढ़ते राजनीतिक कद के कारण कई राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर रहे. आज बदली परिस्थिति में भानु और गिरिनाथ इस चुनाव में भाजपा के पक्ष में ही है. कुल मिला कर देखे, तो राजनीति में बनते बिगड़ते रिश्ते का गवाह लोकसभा चुनाव की कैपेनिंग भी रही है. 2019 में भी पलामू के राजनीतिक मैदान में कई नये रंग देखने को मिल रहे हैं.

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