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नावाबाजार प्रखंड में आदिम जनजाति बहुल्य गांवों की स्थिति अब भी बदहाल, चलते है पगडंडी पर, पीते हैं चुआं का पानी

मेदिनीनगर : झारखंड बनने के बाद विलुप्त हो रही आदिम जनजातियों के संरक्षण व संवर्द्धन के लिए कई योजनाएं चली, ताकि उनके जीवन स्तर में सुधार हो. ऐसे में सुलगता सवाल यह है कि सरकारी प्रयास के पास आदिम जनजातियों की स्थिति में अपेक्षित बदलाव आया. यदि इस सवाल का जवाब ढूंढना हो, तो पलामू […]

मेदिनीनगर : झारखंड बनने के बाद विलुप्त हो रही आदिम जनजातियों के संरक्षण व संवर्द्धन के लिए कई योजनाएं चली, ताकि उनके जीवन स्तर में सुधार हो. ऐसे में सुलगता सवाल यह है कि सरकारी प्रयास के पास आदिम जनजातियों की स्थिति में अपेक्षित बदलाव आया. यदि इस सवाल का जवाब ढूंढना हो, तो पलामू के नावाबाजार प्रखंड के आदिम जनजाति बहुल्य गांव को देखा जा सकता है.
गांव की स्थिति देखने के बाद इन सवालों का जवाब स्वत: मिल जायेगा. क्योंकि दावे चाहे जितने बड़े क्यों नहीं हुए हो, लेकिन जमीनी हकीकत यह बताने के लिए काफी है कि आदिम जनजातियों के विकास का ढिंढोरा कितनी भी तामझाम के साथ क्यों ने पीटा जाये, लेकिन स्थिति निराश करनेवाला ही है. ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर आदिम जनजातियों की स्थिति में बदलाव आयेगा कब.
नावाबाजार प्रखंड के कुंभीखुर्द, टेकही, सोहदाग खुर्द, बनौधा, सिंजो, कोरटा, हताई, बंदला, कंडाखास गांव में आदिम जनजाति समुदाय के परहिया वर्ग के लोग रहते हैं, जिनकी आबादी लगभग 445 है. कंडा पंचायत के कोरटा गांव में जाने के बाद जो स्थिति देखने को मिलती है, वह यह है कि 20 साल पहले 48 हजार रुपये की लागत से चार पांच लोगों को आवास मुहैया कराया गया था. लेकिन बाकी लोग वंचित रह गये.
2018 में तीन चार लोगों को आवास मिला, लेकिन अभी वह भी पूरा नहीं हुआ है.
बनौधा में बिरसा मुंडा आवास योजना के तहत 15 लोगों को आवास मुहैया कराया गया था, जो आज भी अधूरा है. कोरटा हो या बनौधा हो यहां जाने के लिए सड़क नहीं है. पगडंडियों के सहारे चलना मजबूरी है. लोग बताते है कि यदि कोई बीमार पड़ जाये, तो डोली-खटोली के सहारे ले जाना पड़ता है.
पीने के पानी की भी व्यवस्था नहीं. कोरटा गांव में आज भी आदिम जनजाति परिवार के लोग चुआं का पानी पीते है. शिक्षा के नाम पर भी विद्यालय नहीं, आंगनबाड़ी केंद्र का भी लाभ नहीं मिलता. आदिम जनजाति परिवार को उनके घर तक अनाज पहुंचे, इसके लिए डाकिया योजना की शुरुआत की गयी है. लेकिन इसका लाभ यहां के लोगों को नहीं मिलता. गरीबी व अभाव के बीच जीवन-यापन करना मानो, नियति बन गयी है.
445 आबादी है नावाबाजार प्रखंड में आदिम जनजाति समुदाय के परहिया वर्ग के लोगों की
20 साल पहले 48 हजार रुपये की लागत से चार-पांच लोगों को आवास मुहैया कराया गया था
15 लोगों को िबरसा मुंडा आवास मुहैया कराया गया था, बधौया में, जो आज भी अधूरा है
प्रयास के बावजूद नहीं मिलता योजना का लाभ
कोरटा गांव के बनारसी परहिया, बेलास परहिया, बिनेसर परहिया, सुमित्रा देवी, अशोक परहिया, अर्जुन परहिया, सतन परहिया से जब पूछा गया कि यह स्थिति क्यों है. सरकार ने कई योजनाएं चला रखी हैं. इस पर उनलोगों का कहना था कि जानकारी तो है, पर प्रयास करने के बाद भी लाभ नहीं मिलता. ऐसे में भला वे लोग क्या कर सकते है. गरीबी व अभाव में जीना उनलोगों के किस्मत में ही है. सरकार कहती है, लेकिन कुछ होता नहीं. दौड़ धूप कर भी देख लिया. कोई लाभ नहीं होता. इसलिए बेहतर है कि भगवान भरोसे ही रहे.
स्वास्थ्य मंत्री का है विधानसभा क्षेत्र
नावाबाजार प्रखंड विश्रामपुर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है. यहां के विधायक राज्य के स्वास्थ्य मंत्री है. स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी के विधानसभा क्षेत्र के आदिम जनजाति वर्ग के लोग निराश है. सरकार की योजनाएं तो बहुत है, लेकिन उसका अपेक्षित लाभ नहीं मिल रहा है. ऐसे में दोषी कौन यह तो जांच के बाद पता चलेगा.
आदिम जनजातियों के विकास के प्रति उदासीनता के बारे में आदिम जनजाति के लोग कहते है कि उनलोगों के बारे में आखिर क्यों सोचेंगे. इतने तेज तर्रार भी नहीं कि किसी को हराने जीताने में सक्षम है. राजनीति में पैठ नहीं तो फिर पूछेगा कौन?

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