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महेश्वरनाथ शिवमंदिर बना आस्था का केंद्र, महाशिवरात्रि पर हजारों श्रद्धालुओं का होगा समागम

शिव मंदिर के प्रति दूरदराज के लोगों की आस्था का मूल कारण इसका आप रूपी प्रकट स्वयं कामना शिवलिंग होना है. श्रद्धालुओं का यह विश्वास है कि यहां सच्चे मन से मांगी गयी कामना अवश्य पूरी होती है.

महेशपुर. झारखंड राज्य की उपराजधानी दुमका से 72 किलोमीटर उत्तर पश्चिम तथा जिला मुख्यालय पाकुड़ से 28 किलोमीटर दक्षिण पूर्व स्थित महेशपुर प्रखंड मुख्यालय में बांसलोई नदी किनारे अवस्थित श्री श्री 1008 बूढ़ा बाबा महेश्वरनाथ शिव मंदिर आदिवासी और गैर आदिवासियों के बीच आस्था व श्रद्धा का केंद्र है. इस शिव मंदिर के प्रति दूरदराज के लोगों की आस्था का मूल कारण इसका आप रूपी प्रकट स्वयं कामना शिवलिंग होना है. श्रद्धालुओं का यह विश्वास है कि यहां सच्चे मन से मांगी गयी कामना अवश्य पूरी होती है. जनश्रुति के मुताबिक महेश्वर नामक साधारण चरवाहे द्वारा मवेशियों को चराते वक्त पहली बार इस शिवलिंग को देखा गया था. लगभग दो फीट ऊंचाई तथा करीब डेढ़ फीट गोलाकार के इस शिवलिंग पर महाशिवरात्रि के दिन एवं पवित्र श्रावण महीने के अवसर पर शिवभक्त पश्चिम बंगाल के जंगीपुर से गंगाजल लाकर भोले बाबा का जलाभिषेक करते हैं. यहां आस-पास के जिलों से शिवभक्त महाशिवरात्रि व श्रावण के दिन प्रत्येक वर्ष यहां काफी संख्या में जलाभिषेक के लिए आते हैं. महाशिवरात्रि के अवसर पर शिव भक्तों की उमड़ी भीड़ के बीच बाबा महेश्वर नाथ की छवि अति निराली देखी जाती है. इनकी अद्भुत महिमा को लेकर दर्जनों कहानियां प्रचलित हैं, जो इनके भक्तों की श्रद्धा को अटूट बनाए हुए है. अति वृद्ध लोगों का कहना है कि बहुत समय पहले एक बार महेशपुर में भीषण सुखाड़ पड़ा था. सब ओर से निराश लोगों ने सूखे से निजात पाने के लिए शिवलिंग को चारों ओर से घेर कर जल में डुबोने का प्रयास किया था. काफी प्रयास के बाद भी शिवलिंग नहीं डूबा, मगर दूसरे ही दिन काफी बारिश हुई. जनश्रुति यह भी है कि पहली बार शिवलिंग के देखे जाने की खबर पाकर तत्कालीन समय के सुल्तानाबाद के नाम से जाना जाने वाला आज का महेशपुर के तत्कालीन राजाओं ने शिवलिंग को महल परिसर में स्थापित करने के उद्देश्य से लोहे की जंजीरों से बांधकर हाथियों द्वारा जमीन से निकालने का प्रयास किया था. जो असफल रहा था, पर शायद इसी वजह से शिवलिंग एक और थोड़ा झुका-सा है. इधर, मंदिर कमेटी के सदस्य आगामी 26 फरवरी को महाशिवरात्रि को लेकर तैयारी में जुटे हुए हैं. मंदिर कमेटी के राजेन्द्र भगत, मृत्युंजय दास, गोपाल भगत, दलजीत सिंह, बिष्णु भगत, निर्मल गुप्ता सहित अन्य सदस्यों ने बताया कि महाशिवरात्रि को लेकर आगामी 23 फरवरी को मंदिर परिसर से कलश यात्रा निकाली जाएगी. साथ ही हरिनाम संकीर्तन, यज्ञ, रामचरितमानस जैसे कई कार्यक्रम रखे गये हैं. इसको लेकर युद्ध स्तर पर मंदिर परिसर में रंग-रोगन, मेला व सजावट के साथ तैयारी की जा रही है.

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