Akhileshwar Dham: झारखंड के लोहरदगा में भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर है, जिसे ‘अखिलेश्वर धाम’ के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर में स्थापित नीला रंग का शिवलिंग श्रद्धालुओं के बीच आकर्षण का केंद्र है. पवित्र श्रावण मास में बड़ी संख्या में भक्त शिवलिंग पर जल अर्पित करने अखिलेश्वर धाम पहुंचते हैं. भोलेनाथ के इस पावन धाम का निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने किया था. मुगलों ने अखिलेश्वर धाम की अनूठी वास्तुकला को काफी नुकसान पहुंचाया था.
भक्तों की हर मुराद होती है पूरी

झारखंड के लोहरदगा जिले में स्थित हजारों साल पुराना ऐतिहासिक मंदिर है, अखिलेश्वर धाम. यह शिवालय विशाल तालाब और खूबसूरत चट्टानों से घिरा एक आकर्षक धार्मिक पर्यटन स्थल है. यहां सावन में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. इस मंदिर की अद्भुत नक्काशी और भव्य स्वरूप सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है. इस कारण अखिलेश्वर धाम धार्मिक स्थल के साथ ही पर्यटन स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है.
कहा जाता है कि अखिलेश्वर धाम आने वाले भक्त, मंदिर के पास मौजूद विशाल तालाब में स्नान कर भोलेनाथ की पूजा अर्चना करते हैं. इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग भी काफी अद्भुत है. तीन फीट ऊंचा यह शिवलिंग नीले रंग का है. ऐसी मान्यता है कि शिव के इस धाम में सच्चे मन से पूजा करने पर भक्तों की हर मुराद पूरी होती है.
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भगवान विश्वकर्मा ने किया था निर्माण
पौराणकि मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं अखिलेश्वर धाम का निर्माण किया था. यही कारण है कि इस मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं में गहरी आस्था है. सावन के दौरान मंदिर में भोलेनाथ की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. यहां श्रावणी मेले का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें आसपास के क्षेत्र से बड़ी संख्या में श्रद्धालु बाबा के दर्शन करने और मेले का आनंद लेने आते हैं. हालांकि, अखिलेश्वर धाम में पूरे साल भक्तों का आना-जाना लगा रहता है. लेकिन सावन के दौरान इस अति प्राचीन मंदिर का महत्व बढ़ जाता है.
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मुगलों ने पहुंचाया था नुकसान
ऐसा कहा जाता है कि अपनी अनोखी नक्काशी और भव्य स्वरूप के कारण अखिलेश्वर धाम काफी खूबसूरत नजर आता था. पुराने समय में इस मंदिर के दरवाजा और घंटियां सोने से बने हुए थे. लेकिन भारत में मुगल काल के दौरान लूटे गए अनेकों मंदिर में अखिलेश्वर मंदिर का नाम भी शामिल था. मुगलों ने इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग को भी क्षतिग्रस्त करने की कोशिश की थी. मुगलों ने इस मंदिर में लगे सोने के दरवाजे और घंटियां भी चुरा ली थी.
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