बेतला़ सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों के मासूम बच्चों का बचपन अब मोबाइल फोन के स्क्रीन की दुनिया में कैद हो रहे हैं. गांव में इस डिजिटल लत से पारंपरिक तरीके के खेल थमती जा रही है. शहरी इलाकों के बाद अब ग्रामीण इलाके में भी मोबाइल फोन देखने की नन्हें मासूमों में लत तीव्रता से देखी जा रही है. इसमें पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे भी शामिल हैं. धान काटने सहित खेतों में काम करना हो या जंगल से लकड़ियां लाने के लिए माता-पिता बच्चों को बहलाने के लिए अथवा उन्हें घर में शांत बैठने के लिए एकमात्र साधन बच्चों को मोबाइल देना ही समझते हैं. नन्हे बच्चे मोबाइल की दुनिया में खोये रहते हैं. इतना ही नहीं गांवों में पांच से 12 वर्ष की आयु के बच्चों में मोबाइल फोन की लत सर्वाधिक है. गांवों में पहले बच्चे जहां गिल्ली-डंडा, कंचे (अंटेलागोली), लट्टू, लुका-छिपी, खो-खो, रस्सा-कस्सी, लंगड़ी टांग, रस्सी कूद, कबड्डी, फुटबॉल, लूडो, चोर-सिपाही सहित अन्य खेलों को खेलते-खेलते बड़े हो जाते थे आज मोबाइल देखते-देखते उनका बचपन निकला जा रहा है. सुदूरवर्ती या जंगल क्षेत्र में भी ज्यादा घरों में मोबाइल फोन होने से बच्चे ऑनलाइन गेम्स व वीडियो में खोये रहते हैं. इससे पढ़ाई में पिछड़ने लगे हैं. इस कारण ग्रामीण प्रतिभा भी कुंठित होने लगी है. क्या कहते हैं जानकार : कई जानकारों ने बताया कि गांव में मासूम बच्चों के हाथों में मोबाइल को देखना निश्चित रूप से चिंता का विषय है. मोबाइल फोन की लत एक चुनौतीपूर्ण समस्या के रूप में उभरी है. मोबाइल फोन का अनियंत्रित, अनुचित और अत्यधिक उपयोग कई समस्याओं को जन्म दे सकता है. बच्चे दृष्टि दोष संबंधी समस्याओं, सिरदर्द, पढ़ाई से ध्यान हटना, एकाग्रता में कमी, याद्दाश्त कमजोर होना, परिवार और दोस्तों से दूरी बनाना, बातचीत कम करना और अकेले रहना, बड़ों की अवहेलना, हिंसक प्रवृत्ति, नशा, साइबर अपराध और नींद में खलल के शिकार हो रहे हैं.
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