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प्रकृति की रक्षा का संदेश देता है सरहुल

लातेहार : प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश विष्णुकांत सहाय ने कहा कि सरहुल प्रकृति का पर्व है. हमें इस अवसर पर प्रकृति की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए. प्रधान जिला जज श्री सहाय मंगलवार को सरना समिति, लातेहार द्वारा आदिवासी बासाओड़ा में आयोजित सरहुल महोत्सव कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि प्रकृति […]

लातेहार : प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश विष्णुकांत सहाय ने कहा कि सरहुल प्रकृति का पर्व है. हमें इस अवसर पर प्रकृति की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए. प्रधान जिला जज श्री सहाय मंगलवार को सरना समिति, लातेहार द्वारा आदिवासी बासाओड़ा में आयोजित सरहुल महोत्सव कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि प्रकृति की रक्षा कर ही हम सुरक्षित जीवन की परिकल्पना कर सकते हैं.
उन्होंने आदिवासी समाज को नशापान से दूर रहने की बात कही. मौके पर उपायुक्त राजीव कुमार ने कहा कि सरहुल एक पर्व-त्योहार मात्र नहीं है, बल्कि झारखंड के गौरवशाली प्राकृतिक धरोहर का नाम है.
यही धरोहर मानव सभ्यता व संस्कृति तथा पर्यावरण का रीढ़ भी है. उन्होंने कहा कि आदिवासी प्राकृतिक मूलक समाज में जीवन व संघर्ष में चेतनायें भरता है. आदिवासी समाज के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक जीवन दर्शन का मूल आधार है. उन्होंने सभी लोगों को प्रेम भाव से सरहुल पर्व मनाने की अपील की.
मांदर की थाप पर थिरके अतिथि : सरना समिति के सरहुल महोत्सव के अवसर पर प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश विष्णुकांत सहाय, उपायुक्त राजीव कुमार, एसपी प्रशांत आनंद, उप विकास आयुक्त अनिल कुमार सिंह व एसडीएम जयप्रकाश झा समेत अन्य अतिथियों ने मांदर की थाप से शोभा यात्रा का शुभारंभ किया.
सभी अतिथियों ने मांदर बजाया एवं मांदर की थाप पर ग्रामीणों के संग थिरके. इस अवसर पर अध्यक्ष हरदयाल भगत, सचिव बिरसा मुंडा, सर्वजीत उरांव, देव कुमार भगत, विनोद उरांव, देवनाथ उरांव,छठु उरांव, हरिचरण उरांव, किरण उरांव, रंथु उरांव, निर्मला उरांव, सुरेश उरांव, सुदेश्वर उरांव, रवि कुमार मुंडा, अर्जुन उरांव, दशरथ उरांव, जीतराम उरांव आदि सक्रिय रहे.
शोभा यात्रा में उमड़ी भीड़ : शोभा यात्रा में लातेहार एवं आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के हजारों लोगों ने भाग लिया. शोभा यात्रा आदिवासी बासाओड़ा से निकल कर शहर के मुख्य पथ होते हुए बाजारटांड़ पहुंची. इसके बाद पुन: आदिवासी बासाओड़ा पहुंची. यहां विभिन्न अखाड़ों के बीच पुरस्कारों का वितरण किया गया. शोभा यात्रा में विभिन्न आदिवासी समूहों द्वारा पांरपरिक नृत्य व गीत प्रस्तुत किया गया.

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