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धड़ल्ले से चल रहा है खनन कार्य
कोडरमा : ले में पत्थर खनन के कार्य में नियमों की अनदेखी पुरानी बात रही है, पर विभागों के बीच आपसी समन्वय की कमी के कारण स्थिति और भयावह होती जा रही है. डोमचांच प्रखंड मुख्यालय से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर महेशपुर मसमोहना मार्ग में स्थित आस्था का केंद्र चंचाल माता मंदिर व […]
कोडरमा : ले में पत्थर खनन के कार्य में नियमों की अनदेखी पुरानी बात रही है, पर विभागों के बीच आपसी समन्वय की कमी के कारण स्थिति और भयावह होती जा रही है. डोमचांच प्रखंड मुख्यालय से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर महेशपुर मसमोहना मार्ग में स्थित आस्था का केंद्र चंचाल माता मंदिर व पहाड़ के अस्तित्व को खतरे में होने की बात एक बार फिर सामने आयी है, लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों की सोच पर सवाल खड़ा हो गया है. जानकारी मिली है कि चंचाल के आसपास हो रहे अनियंत्रित खनन कार्य को बंद करने की अनुशंसा के बावजूद वर्षों से खनन कार्य धड़ल्ले से चल रहा है.
खनन से पर्यावरण को हो रहे नुकसान से संबंधित जानकारी डीएफओ एमके सिंह ने एक पत्र लिखकर खनन विभाग व प्रशासन को दी थी. करीब दो वर्ष पूर्व दिये गये पत्र में स्पष्ट रूप से चंचाल के आसपास चल रही पत्थर खदानों को बंद करने की अनुशंसा की गयी थी, लेकिन इस अनुशंसा वाले पत्र को नजरअंदाज कर दिया गया. हाल यह है कि इलाके में खनन कार्य धड़ल्ले से चल रहा है.
अब एक बार फिर डीएफओ एमके सिंह ने नया पत्रांक 938 दिनांक 26 मार्च 2016 डीएमओ को लिखकर चंचाल के आसपास खनन लीज नहीं देने की अनुशंसा की है. अनुशंसा पर अमल नहीं किये जाने के सवाल पर पूछे जाने पर डीएमओ राजेश लकड़ा ने बताया कि जब खनन पट्टा के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति मिल चुकी है, तो हम इसे कैसे बंद करा सकते हैं.
ग्रामीणों के विरोध का फायदा उठा रहे सफेदपोश: चंचाल मंदिर को खतरा होने व ड्रेगन ब्लास्टिंग से लोग परेशान हैं, लेकिन कुछ सफेदपोश ग्रामीणों के विरोध का फायदा उठा अपना हित साधते हैं और इसके बाद मामला फिर ठंडे बस्ते में चला जाता है. कई वर्ष पूर्व ही चंचाल मंदिर के पास स्थित इंद्रामणि तालाब जिसमें श्रद्धालु स्नान के बाद पूजा अर्चना करते थे.
वह खदानों की जद में आकर समाप्त हो चुका है, तो कभी पांडवों की शरणस्थली व भीम की कड़ाह क्षतिग्रस्त हो चुकी है. ये सवाल पुरानी हैं, पर अब मंदिर में दरारें आने के बाद लोगों की आवाज मुखर हो रही है. लोग दो-तीन वर्षों से इस तरह के खनन का विरोध करते रहे हैं, लेकिन अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों द्वारा इसके बचाव के लिए प्रयास नहीं हो रहे हैं
हर बार प्रशासनिक अधिकारी कार्रवाई का दावा करते हैं, एक-दो कार्रवाई होती है, फिर ऐसी चुप्पी छाती है कि प्रशासन पर ही सवाल उठने लगते हैं. बताया जाता है कि पत्थर व्यवसाय से जुड़े कुछ माफियाओं की इतनी पैठ है कि वे अपनी मरजी के हिसाब से पदाधिकारियों से काम निकलवाते हैं.
सत्ताधारी दल के नेता पार्टनर, दूसरे लीजधारी का नहीं हो रहा नवीकरण : चंचाल मंदिर को सबसे अधिक खतरा पास में चल रहे एक खदान से है. उक्त खदान किसी रामचंद्र मेहता के नाम से बतायी जाती है. इसमें सत्ताधारी दल के नेता व अन्य लोग भी पार्टनर हैं.
यह खनन क्षेत्र करीब 6.74 एकड़ की है. लीज होने के कारण अब खनन कार्य मंदिर के पास तक पहुंच गयी है. इससे लोगों की आस्था आहत हो रही है. इसके विपरीत प्रशासनिक महकमे में चुप्पी है. इदर, दूसरी ओर करे कोई, भरे कोई वाली कहावत चरितार्थ हो रही है. उक्त लीजधारी द्वारा किये जा रहे खनन से परेशानी है, पर लीज का नवीकरण अन्य का भी नहीं हो रहा है. ऐसे कुछ लीजाधारी हैं जिनका खनन पट्टा मंदिर से दूर है, लेकिन उनका नवीकरण नहीं हो रहा है.
प्रभात खबर ने किया था आगाह, पर्यावरण को गंभीर क्षति
प्रभात खबर ने करीब डेढ़ वर्ष पूर्व ही कोडरमा में खनन कार्य से समाप्त हो रहे पहाड़, खोखली हो रही धरती रिपोर्ट प्रकाशित कर कई इलाकों में खनन कार्य से पर्यावरण को हो रहे नुकसान से आगाह किया था. इससे पहले डीएफओ एमके सिंह ने आठ जनवरी 2014 को एक पत्र डीएमओ को लिखी थी.
पत्र की प्रतिलिपि उपायुक्त के नाम भी थी. इसमें डीएफओ ने लिखा था कि चंचाल के आसपास हो रहे अनियंत्रित खनन से लोग त्रस्त हैं. ग्रामीणों ने अपनी आस्था के आहत होने से बचाने के लिए गुहार लगायी है, जिसे नजर अंदाज नहीं किया जा सकता. प्रस्तावित स्थल पर नये खनन पट्टे की स्वीकृति से और भी गंभीर समस्या उत्पन्न होगी व पहले से ही खतरे में पड़े पर्यावरण को और भी गंभीर, अपूरणीय क्षति होगी.
साथ ही बगल के वन और भी असुरक्षित होंगे. डीएफओ ने लिखा था कि इस इलाके में पूर्व से चल रहे सभी खनन पट्टों की सख्ती से रिव्यू की जानी चाहिए व उन्हें क्रमवार बंद करने की कार्रवाई हो. यही नहीं उन्होंने लिखा था कि पर्यावरण संरक्षण व पर्यावरण संतुलन को बनाये रखने के दृष्टिगत खदानों के रिक्लेमेशन का कार्य शीघ्र शुरू कराया जाये. यह एक गंभीर मुद्दा है जिस पर शीघ्र कार्रवाई करने की जरूरत है. पट्टेधारियों द्वारा खनन स्थल के रिक्लेमेशन के लिए कोई भी कार्रवाई कभी भी नहीं की जा रही है.
इस क्षेत्र में जो भी खनन पट्टे नवीकरण के लिए लंबित हैं, उन्हें अस्वीकृत किया जाये और धीरे-धीरे अन्य खनन पट्टों को समाप्त किया जाये. इससे पहले भी 27-11-2013 को डीएफओ ने एक पत्र लिख इलाके में अनियंत्रित खनन से पर्यावरण के असंतुलित होने की बात कही थी. इसी बात को एक बार फिर डीएफओ ने 26 मार्च 2016 के पत्र में दोहराया है.
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