बुंडू. बुंडू प्रखंड की हुमटा पंचायत अंतर्गत गितिलडीह गांव में मंगलवार को एक अद्वितीय सांस्कृतिक दृश्य का साक्षी बना. यहां लंबे समय बाद सामूहिक रूप से सोसो बोंगा अनुष्ठान का आयोजन हुआ, जिसने न केवल लोककथा को जीवंत किया, बल्कि आदिवासी समाज की भूली-बिसरी परंपराओं को भी पुनर्जीवित करने का कार्य किया गया. सोसो बोंगा मुंडारी लोककथा पर आधारित एक अनुष्ठान है, जिसमें पहान लयबद्ध शैली में सिङ बोंगा और असुरों के बीच हुए युद्ध की गाथा का वाचन करते हैं. यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि लोकगीत, लोकगाथा और इतिहास की मौखिक परंपरा को सहेजने का माध्यम है. समय के साथ यह परंपरा लगभग लुप्त हो चली थी. आदिवासी समाज में सोसो अर्थात् भेलवा वृक्ष को अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली माना गया है. मान्यता है कि इस वृक्ष में अनिष्ट भूत-प्रेतों को दूर करने की क्षमता है. इसके औषधीय गुण भी प्रसिद्ध हैं. कीड़े-मकोड़ों को नष्ट करने और खेतों की रक्षा करने में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है. करम पर्व पर भी भेलवा की डाली की विशेष पूजा कर खेतों में गाड़ने की परंपरा रही है, अनुष्ठान के दौरान पहान करम सिंह मुंडा ने खेत, जंगल, पहाड़, नदी-नाला और गांव जैसे सभी प्राकृतिक स्थलों में वास करने वाले देवी-देवताओं का आह्वान किया. यह आह्वान इस बात का प्रतीक है कि आदिवासी जीवन में प्रकृति और देवत्व अलग नहीं हैं. दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं. इस अनुष्ठान को सफल बनाने में रविंद्र सिंह, सानिका, शिवजन, दुबराज, सुगना, शुकदेव, तुलसी, गौर सिंह और सोमनाथ मुंडा का विशेष योगदान रहा.
बुंडू प्रखंड के गितिलडीह गांव में आदिवासी परंपरा के अनुसार किया गया आयोजन
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