रांची : कड़िया मुंडा के आवास से अपहृत चारों जवान सुरक्षित निकल आये हैं. लगभग 62 घंटे के बाद वे मुक्त किये गये हैं. जवान सुरक्षित और स्वस्थ हैं. हालांकि, उनके चेहरे पर थकान दिख रही थी. इसके बावजूद रिहा होने के 10 घंटे बाद ही वे सर्च अॉपरेशन में निकल पड़े.
मुक्त होने के बाद सायको थाना पहुंचे जवानों ने आपबीती बतायी. एक जवान ने बताया : मैं आराम से अनिगड़ा के चांडीडीह स्थित सांसद कड़िया मुंडा के आवास में अपनी टीम के साथ ड्यूटी पर तैनात था. अचानक सैकड़ों की संख्या में पत्थलगड़ी समर्थकों ने हमला कर दिया. इसमें महिला और पुरुष भी शामिल थे. इस कारण हम विरोध नहीं कर पाये. हमें चारों तरफ से घेर लिया गया था. इसके बाद हमारा हथियार छीन लिया गया और ग्रामसभा में साथ चलने को कहा. हम विरोध कर पाने की स्थिति में नहीं थे.
बाद में पंगुड़ा ले जाया गया था
जवानों ने बताया कि घाघरा से पारंपरिक हथियार से लैस लोग उन्हें लेकर पंगुड़ा पहुंचे. रात में उन्हें पंगुड़ा में ही रखा गया था. उनकी पहरेदारी आठ सदस्य कर रहे थे. जब पत्थलगड़ी समर्थकों को यह पता चल गया कि बड़ी संख्या में जवानों को अपहृत पुलिसकर्मियों की तलाश में लगाया गया है, तो भयभीत होकर अपहरणकर्ता हमें लेकर लेकर रुगड़ी पहुंच गये. वहां से दूसरी रात हमें जिलिंगकेला ले गये. जिलिंगकेला में अचानक ग्रामसभा की बैठक हुई और हमें मुक्त करने का निर्णय हुआ.
पीछे मुड़कर मत देखना नहीं तो जान जा सकती है
ग्रामसभा में हुए निर्णय के बाद पत्थलगड़ी समर्थक जवानों को लेकर सायको थाना क्षेत्र स्थित जंगल पहुंचे और सायको थाना का रास्ता बताते हुए उन्हें चले जाने को कहा. इस दौरान हमें यह भी चेतावनी दी गयी थी कि पीछे मुड़कर नहीं देखना, नहीं तो जान भी जा सकती है. जवानों ने बताया कि दहशत के साथ हमलोग तेजी से पैदल ही मध्य रात्रि में पैदल ही थाना की ओर चल पड़े. एक बार पीछे मुड़कर देखा, तो पाया कि पत्थलगड़ी समर्थक हमें छोड़कर निकल गये थे. हम थाना पहुंचे और मामले की जानकारी थाना प्रभारी को दी. इसके बाद उन्होंने वरीय पुलिस अधिकारियों को जानकारी दी.
डराते-धमकाते, लेकिन खाना-पानी भी देते रहे
जवानों ने बताया कि कभी हमें पैदल चलाया जाता तो कभी बाइक पर. अपहरणकर्ता हमेशा यह धमकी देते थे कि पुलिस ने उनके साथियों के साथ गलत किया है.
इसलिए वह उनकी जान लेकर इसका बदला चुकाना चाहते हैं. लेकिन, कुछ लोग बीच-बचाव करते थे. क्योंकि उन्हें इस बात की आशंका थी कि उनकी मौत के बाद पत्थलगड़ी समर्थक और इनके नेताओं पर पुलिस प्रशासन से वार्ता के लिए कुछ बचेगा नहीं.
और पुलिस उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर सकती है. पत्थलगड़ी समर्थकों द्वारा हत्या की धमकी दिये जाने की वजह से हमारे 62 घंटे मौत के साये में गुजरे. एक जवान ने कहा कि मुक्त होने के बाद हमें ऐसा लगा कि हमारा पुनर्जन्म हुआ है. हमें समय पर खाना और पानी वे देते थे. पर हर पल हमें ऐसा लगता था कि मौत के साये में हम जी रहे हैं.
चलो तुम्हारा फैसला ग्रामसभा में होगा
जवान ने बताया कि उन्हें अपने कब्जे में लेने के बाद पत्थलगड़ी समर्थकों ने उनसे कहा : चलो तुम्हारा फैसला ग्रामसभा में होगा, क्योंकि हमें पुलिस से बदला लेना है. इसके बाद वे हमें घाघरा स्थित स्कूल ले गये और वहां जबरन बैठा दिया गया. हमारी पहरेदारी के लिए तीर-धनुष से लैस युवकों को लगा दिया गया.
कुछ लोग स्कूल से घाघरा ग्रामसभा की बैठक में गये और अपने नेताओं को हमारे बंधक में होने की जानकारी देकर वापस स्कूल चले आये. इस दौरान हमारे साथ कुछ लोगों ने मारपीट भी की. शाम के 7:30 बजे बाइक में सवार कुछ लोग आये हमारी आंखों में पट्टी बांधकर बाइक में बैठा दिया गया. घाघरा से पंगुड़ा होते हुए जिलिंगकेला ले गये थे.
