बिंदापाथर. बड़वा गांव में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा जारी है. इसके दूसरे दिन शुक्रवार को कथावाचक महेशाचार्य जी महाराज ने श्रीमद्भागवत कथा में “राजा परीक्षित को सात दिनों में मृत्यु का श्राप, नारदजी के उपदेश” के बारे में मधुर वर्णन किया. कहा कि श्रीमद्भागवत गीता एक ऐसा धर्म ग्रंथ है, जो मनुष्य को कर्म योगी बनने के लिए प्रेरित करता है. इतिहास के महानतम लोग चाहे वह वैज्ञानिक, इतिहासकार, ऋषि मुनी, दार्शनिक या कोई भी रहे हों, उन्होंने गीता को सफलता का रहस्य बताया है. सही मायने में मनुष्य के जीवन की जो सच्चाई है, उसकी झलक आपको योगीराज श्रीकृष्ण के उपदेशों में देखने को मिलता है. देवर्षि नारद, वेदव्यास, वाल्मीकि तथा महाज्ञानी शुकदेव आदि के गुरु है. श्रीमद्भागवत जो भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य का परमोपदेशक ग्रंथ-रत्न है. रामायण, जो मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के पावन, आदर्श चरित्र से परिपूर्ण है, देवर्षि नारदजी की कृपा से ही हमें प्राप्त हो सके हैं. इन्होंने ही प्रह्लाद, ध्रुव, राजा अम्बरीष आदि महान भक्तों को भक्ति मार्ग में प्रवृत्त किया. ये भागवत धर्म के परम-गूढ़ रहस्य को जानने वाले- ब्रह्मा, शंकर, सनत्कुमार, महर्षि कपिल, स्वयंभु मनु आदि बारह आचार्यों में अन्यतम हैं. देवर्षि नारद जी के विरचित ”भक्तिसूत्र”” बहुत महत्वपूर्ण है. नारदजी को अपनी विभूति बताते हुए योगेश्वर श्रीकृष्ण श्रीमद्भागवत गीता के दशम अध्याय में कहते हैं- ””अश्वत्थ: सर्ववूक्षाणां देवर्षीणां च नारद… वहीं कथावाचक ने शुकदेव मुनी के जन्म का व्याख्यान करते हुए कहा महर्षि वेद व्यास के अयोनिज पुत्र थे, और यह बारह वर्ष तक माता के गर्भ में थे. कहा शुकदेवजी कोई साधारण प्राणी नहीं, बल्कि श्री राधाजी के द्वारा लालित पालित शुक हैं. यह कथा गर्ग संहिता में आती है. कार्यक्रम में कथा के साथ-साथ सुमधुर भजन संगीत प्रस्तुत किया गया, जिससे उपस्थित श्रोता-भक्त भावविभोर होकर कथा स्थल पर झूमते रहे.
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