Jamshedpur News :
जैक की ओर से जारी रिजल्ट के अनुसार, इस बार मैट्रिक की परीक्षा में पूर्वी सिंहभूम जिले के सिर्फ 90.115 % बच्चे ही पास हुए. इस वजह से पूर्वी सिंहभूम प्रथम स्थान से खिसक कर 16वें स्थान पर पहुंच गया. जिले के कई स्कूलों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा. लेकिन, पूर्वी सिंहभूम जिले के कई ऐसे स्कूल हैं, जिन्होंने शानदार प्रदर्शन किया है. स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार राज्य के कुल 51 ऐसे स्कूल हैं, जहां के शत-प्रतिशत विद्यार्थी प्रथम श्रेणी से पास हुए हैं. इसमें पूर्वी सिंहभूम जिले के कुल चार स्कूल शामिल हैं. इसमें अच्छी बात यह है कि यह अचानक से कोई चमत्कार नहीं हुआ है. बल्कि इन चार स्कूलों में तीन ऐसे स्कूल हैं, जहां वर्ष 2024 में भी 100 प्रतिशत विद्यार्थी प्रथम श्रेणी में पास हुए थे. साथ ही मॉडल स्कूल धालभूमगढ़ में पिछले साल 100 प्रतिशत बच्चे प्रथम श्रेणी से पास हुए थे. हालांकि, इस बार यह अनुपात घट कर 66.67 प्रतिशत तक पहुंच गया है.2024 और 2025 दोनों साल शत-प्रतिशत फर्स्ट डिविजन देने वाले स्कूल
स्कूल- कितने शिक्षक कार्यरत- 2025 में फर्स्ट डिविजन- 2024 में फर्स्ट डिविजन
1. लोयोला हाई स्कूल चाईरा – 21 – 95 बच्चे – 82 बच्चे2. मॉडल स्कूल बहरागोड़ा- 6- 21 बच्चे- 16 बच्चे3. मॉडल स्कूल पटमदा- 3 – 29 बच्चे – 21 बच्चे
राज्य में कुल 777 स्कूलों के शत-प्रतिशत विद्यार्थी हुए पास
झारखंड एकेडमिक काउंसिल की ओर से जारी की गयी रिजल्ट में राज्य के कुल 777 ऐसे स्कूल हैं, जहां के शत-प्रतिशत विद्यार्थी पास हुए. इसमें पूर्वी सिंहभूम जिले के कुल 44 स्कूल ऐसे थे, जहां के कुल 100 फीसदी बच्चे पास हुए. वहीं, पिछले साल यानी 2024 में कुल 67 स्कूल ऐसे थे, जहां के शत-प्रतिशत बच्चे पास हुए थे. इन रिजल्ट की समीक्षा करने के बाद इनमें कुल 23 ऐसे स्कूल हैं, जिनके बच्चे 2024 के साथ ही 2025 में भी शत-प्रतिशत पास हो गये.मस्ती की पाठशाला के 47 बच्चों ने पास की मैट्रिक परीक्षा , 100% सफलता दर
टाटा स्टील फाउंडेशन की पहल मस्ती की पाठशाला से जुड़े 47 छात्रों ने झारखंड एकेडमिक काउंसिल की मैट्रिक परीक्षा में 100% सफलता पायी है. 27 मई 2025 को घोषित परिणामों में 22 छात्रों ने प्रथम श्रेणी, 20 ने द्वितीय और 5 छात्रों ने तृतीय श्रेणी से परीक्षा पास की. खास बात यह रही कि 55% छात्राएं हैं, जो सभी पहली पीढ़ी की शिक्षार्थी हैं. 2014 में शुरू हुई इस पहल का उद्देश्य बच्चों को बाल श्रम से निकालकर शिक्षा की मुख्यधारा में लाना है. छात्र अपनी सहमति से शिक्षा के लिए बाल श्रम छोड़ते हैं और फिर उन्हें दो विकल्प दिये जाते हैं, जिसमें आवासीय और गैर आवासीय ब्रिज कोर्स. आवासीय केंद्रों में शिक्षक, परामर्शदाता और संरक्षक मौजूद रहते हैं. इस वर्ष का यह ऐतिहासिक परिणाम मस्ती की पाठशाला के पहले बैच की उपलब्धियों के बाद एक और बड़ी सफलता है. पिछले वर्ष आठ छात्रों ने मैट्रिक पास की थी, जिनमें से कई अब आइटीआइ तमाड़ से पढ़ाई पूरी कर नौकरी पा चुके हैं. शिक्षिका सावित्री मुर्मू ने साझा किया कि बच्चों को शिक्षा के प्रति प्रेरित करना आसान नहीं था. वे कई बार भागने की कोशिश करते, डराने की कोशिश करते, लेकिन अब वही बच्चे सपनों की ऊंची उड़ान भरने को तैयार हैं. एक छात्र पार्थ ने कहा, घर का माहौल बहुत नकारात्मक था, पढ़ाई में मन नहीं लगता था, लेकिन शिक्षकों ने मुझे हिम्मत दी. वहीं, छात्र रवि ने बताया कि पहले उसने हॉस्टल से भागने की कोशिश की, लेकिन फिर वहीं सुरक्षित माहौल में पढ़ाई के महत्व को समझा. मस्ती की पाठशाला न केवल शिक्षा बल्कि आत्मनिर्भरता और नेतृत्व की पाठशाला बन चुकी है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है