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वादे कर नक्सलियों को सरेंडर कराया, अब सरकार ने मुंह फेरा, गुड़ाबांदा प्रखंड में कान्हू मुंडा समेत सात नक्सलियों ने 15 फरवरी, 2017 को किया था समर्पण

15 फरवरी, 2017 को नक्सली नेता कान्हू मुंडा समेत सात साथियों को जिला पुलिस ने सरेंडर कराकर गुड़ाबांदा प्रखंड को नक्सलमुक्त कराया था. तब, प्रशासन ने सरेंडर करने वाले नक्सलियों से कई वादे किये, जो आठ साल में भी पूरे नहीं किये गये हैं.

पुलिस-प्रशासन के वादे : वर्तमान स्थिति

1. कान्हू मुंडा पांच साल में जेल से छूट जायेगा : आठ साल से जेल में2. केस लड़ने को पैसे मिलेंगे : कुछ दिन मिलने के बाद बंद किया

3. पुनर्वास को जमीन देंगे : जमीन दी गयी, लेकिन कब्जा नहीं मिला4. प्रखंड का विकास करेंगे : आज भी बुनियादी सुविधाएं नहीं

5. सरकारी योजनाएं मिलेंगी : न घर मिला, न बुजुर्गों को पेंशन मिल रहीमो.परवेज/कुश महतो. 15 फरवरी, 2017 को नक्सली नेता कान्हू मुंडा समेत सात साथियों को जिला पुलिस ने सरेंडर कराकर गुड़ाबांदा प्रखंड को नक्सलमुक्त कराया था. तब, प्रशासन ने सरेंडर करने वाले नक्सलियों से कई वादे किये, जो आठ साल में भी पूरे नहीं किये गये हैं. नक्सली नेता कान्हू मुंडा को पांच साल बाद मुक्त करने का वादा किया, लेकिन आज तक नहीं छोड़ा गया. नक्सलियों के परिजनों से कहा था कि केस लड़ने के लिए राशि मिलेगी, लेकिन नहीं मिलती है. प्रखंड में विकास की गंगा बहाने का दावा किया गया, लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं. कान्हू मुंडा व उसके साथ सरेंडर करने वालों के परिवार परेशानियों में जीने को विवश हैं.

कान्हू मुंडा ओपन जेल हजारीबाग में शिफ्ट

दरअसल, नक्सली नेता कान्हू मुंडा के साथ फोकड़ा मुंडा, चुनू मुंडा, जितेन मुंडा, शंकर मुंडा, भुगलू सिंह मुंडा और काजल मुंडा ने तत्कालीन एसएसपी अनूप टी मैथ्यू के सामने हथियार के साथ सरेंडर किया था. आठवां साल है. अबतक कान्हू मुंडा जेल में हैं. कुछ साल उसे घाटशिला जेल में रखा गया. वहां से जमशेदपुर (घाघीडीह) जेल भेजा गया. हाल में उसे घाघीडीह से ओपन जेल हजारीबाग शिफ्ट कर दिया गया है.

कान्हू पर 47 केस थे, अब पांच बचे हैं : पत्नी

कान्हू मुंडा की पत्नी वैशाखी मुंडा आंगनबाड़ी सेविका हैं. उन्होंने बताया कि कान्हू मुंडा पर कुल 47 केस दर्ज थे. अब पांच केस बचे हैं. एक जमशेदपुर कोर्ट में और चार केस घाटशिला कोर्ट में चल रहा है.

किसी तरह चल रहा परिवार

सरेंडर के समय पुलिस-प्रशासन ने वादा किया था कि केस लड़ने का खर्च मिलेगा. कई बार बिल मांगा गया था. शुरुआत में मदद मिली थी. बाद में बिल देने के बाद भी खर्च भुगतान नहीं किया गया. मैं आंगनबाड़ी सेविका हूं. जो पैसा मिलते हैं उससे और खेती-बारी कर केस लड़ रही हूं. घर खर्च और एक बेटा और दो बेटियों को शिक्षा दिला रही हूं.

बिस्तर पर मां, बोलीं- मरने के बाद घर लौटेगा बेटा?

कान्हू मुंडा की रिहाई की राह देखते-देखते पिता योगेश्वर मुंडा ने दुनिया को अलविदा कह दिया. मां पंचमी मुंडा बीमार है. बिस्तर पर है. वह चल फिर नहीं सकती. पंचमी मुंडा कहती हैं कि पुलिस ने वादा किया था कि बेटा कान्हू मुंडा पांच साल में छूट जायेगा. आठ साल बीत गये. क्या मेरे मरने के बाद बेटा घर लौटेगा?

पुनर्वास नीति का पूरा लाभ नहीं मिला

सरेंडर करने वालों को पुनर्वास नीति का लाभ अबतक नहीं मिला है. पुलिस ने कान्हू मुंडा को मुआवजा स्वरूप 25 लाख रुपये का चेक दिया था. बाकियों को दो-दो लाख देने की घोषणा हुई थी. कान्हू को तुरंत 25 लाख का चेक दिया गया था. अन्य पांच को दो-दो लाख कई साल बाद मिले. पुर्नवास नीति से जमीन, आवास समेत अन्य जरूरी सुविधाएं देने की बात कही गयी थी, जो अब तक नहीं मिले हैं.

चार-चार डिसमिल जमीन दी गयी, लेकिन कब्जा नहीं मिला

दरअसल, सरेंडर करने वालों को चार-चार डिसमिल जमीन गुड़ाबांदा प्रखंड के हाथियापाटा में दी गयी. उसपर आज तक किसी को कब्जा नहीं मिला है. अधिकतर ने वहां जमीन लेने से इनकार किया. उनका कहना था कि यहां रहकर क्या करेंगे. गुड़ाबांदा से बाहर कहीं दिया जाये, ताकि रोजगार कर गुजारा करेंगे. आज भी जमीन परती पड़ी है. सभी के पास जमीन का कागजात हैं, पर कब्जे में नहीं है. कुछ में अन्य के कब्जे की बात सामने आती रही है. चुनू मुंडा, कान्हू मुंडा और भुगलू मुंडा को सरकारी आवास तक नहीं मिला है.

चुनू मुंडा रोजगार को तमिलनाडु गया, माता-पिता को नहीं मिलती पेंशन

सरेंडर के कई साल बाद जेल से छूटने के बाद चूनू मुंडा घर लौटा. यहां कुछ दिनों तक खेती बारी और मजदूरी की. परिवार चलाना मुश्किल हुआ, तो रोजगार के लिए तमिलनाडु पलायन कर गया. वहां मजदूरी कर रहा है. उनके पुत्र सुशांत मुंडा व पत्नी बुधनी मुंडा गांव में हैं. उन्हें आवास का लाभ नहीं मिला है. चुनू मुंडा के पिता टंटू मुंडा व माता लक्ष्मी देवी को पेंशन तक नहीं मिलती है.

बहरागोड़ा में मुंशी का काम कर रहा जितेन मुंडा

जितेन मुंडा सरेंडर के कई साल बाद जेल से छूटा है. गांव में रोजगार का संकट होने से वह बहरागोड़ा में एक ठेका कंपनी के यहां मुंशी का काम कर रहा है. उसका पुत्र सागेन मुंडा मुसाबनी में 11वीं में पढ़ता है. पत्नी गीता मुंडा घर में रहती है. गीता मुंडा ने कहा डेढ़ साल जेल में सजा काटा है. जिस तरह सरकार ने कहा था, वैसी सुविधा नहीं दी गयी.

पोल्ट्री फार्म चलाता है भुगलू सिंह मुंडा

सरेंडर करने वाले भुगलू सिंह मुंडा भी कई साल बाद जेल से छूट गया है. अब गांव में ही रहता है. उस पर एक केस घाटशिला में अभी भी है. भुगलू को मनरेगा योजना से पोल्ट्री फार्म मिला है. उसी से घर चलता है. दो बेटा होस्टल में रह कर पढ़ता है. भुगलू ने बताया कि गुड़ा से जियान होते हुए धालभूमगढ़ जाने वाली सड़क में जमीन अधिग्रहित की गयी. आज तक भू-अर्जन विभाग से मुआवजा नहीं मिला.

पहाड़ी जमीन को समतल कर खेती कर रहा शंकर मुंडा

सरेंडर करने वाले शंकर मुंडा कई साल बाद जेल से छूटा है. वह गांव में रहता है. उन्होंने निजी खर्च से पहाड़ी जमीन को जेसीबी से समतल कर खेती योग्य बनाया. अब उसी जमीन पर खेती कर गुजारा कर रहा है. सब्जी की खेती कर घर परिवार चलता है.

पहले एसपीओ का पैसा मिलता था, अब बंद

सरेंडर के बाद जेल से रिहा होने वाले सभी पूर्व नक्सलियों को एसपीओ का पैसा प्रति माह मिलता था. अब वह भी नहीं मिलता है. सभी ने कहा कि उक्त पैसा मिलता था, तो परिवार चलाने में सुविधा होती थी. बंद होने से परेशानी बढ़ गयी है.

…15 फरवरी, 2017 को सरेंडर करने वाले…

1. कान्हू मुंडा : जेल में

2. फोकड़ा मुंडा : जेल में3. चुनू मुंडा : जेल से छूटे

4. जितेन मुंडा : जेल से छूटे5. शंकर सिंह मुंडा : जेल से छुटे

6. काजल मुंडा : जेल से छुटी (शादी के बाद ससुराल गयी)7. भुगलू मुंडा- जेल से छुटे

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नूतनडीह, बनबेड़ा और जियान में सड़क व पुल तक नहीं, दवाई और पढ़ाई से वंचित

सरकार ने कान्हू मुंडा समेत सात नक्सलियों के सरेंडर के वक्त सपने दिखाये थे, वे आठ साल में पूरे नहीं हुये. गुड़ाबांदा प्रखंड की आठ पंचायतों में विकास नहीं हुआ. सरेंडर करने वाले नक्सलियों के गांव नूतनडीह, बनबेड़ा और जियान स्कूल टोला में सड़क व पुल तक नहीं है. ग्रामीण दवाई और पढ़ाई से वंचित हैं. राजस्व गांव जियान के बनबेड़ा टोला के कान्हू मुंडा है. इसी गांव के शंकर मुंडा, जितेन मुंडा, चुनू मुंडा और भगलू सिंह मुंडा हैं. सभी ने कहा सरकार ने सपने दिखा कर सरेंडर कराया था. आठ साल बाद भी स्थिति जस की तस है. सरकार ने गुड़ाबांदा का विकास का वादा किया था, लेकिन कुछ नहीं हुआ. वर्तमान में इन गांवों तक जाने के लिए बेहतर सड़क तक नहीं है. जर्जर सड़क से लोग आना-जाना करते हैं. इसी सड़क के बीच से नाला बहता है. वहां पुल नहीं बनने से बरसात में लोग कमर और ठेहुना भर पानी में पार होते हैं. काशियाबेड़ा में उप स्वास्थ्य के केंद्र बना है, लेकिन आज तक डॉक्टर नहीं बैठते. गांव के अधिक से अधिक परिवार सरकारी आवास से वंचित हैं. न पीएम मिला, न अबुआ आवास मिला है. आंगनबाड़ी केंद्र 6 किमी दूर है. यहां के छोटे बच्चे और गर्भवती माताएं केंद्र नहीं जा पाती हैं. दवाई और पढ़ाई से बच्चे वंचित हैं.

नक्सल राज खत्म होते ही माफिया सक्रिय

प्रखंड के लोगों का कहना है कि गुड़ाबांदा से नक्सलराज खत्म हुआ. यहां पत्थर, बालू और लकड़ी माफिया का राज कायम हो गया है. स्वास्थ्य सेवा की बड़ी समस्या है. यहां के मरीज पश्चिम बंगाल या ओडिशा इलाज के लिए जाते हैं. अधिकतर गांव में सड़कें बदहाल हैं. कई गांव में सड़क नहीं बनी है. मुख्यधारा से कई गांव कटे हैं. गुड़ाबांदा की चार पंचायत घाटशिला, तो चार पंचायत बहरागोड़ा में हैं. एक प्रखंड में दो-दो विधान सभा क्षेत्र आते हैं. दो विधायक हैं. पर विकास के मामले में गुड़ाबांदा कल जैसा था, आज वैसा ही है. 4 अप्रैल, 2023 को विधायक रामदास सोरेन ने कान्हू मुंडा के गांव में जनता दरबार लगाकर सरेंडर करने के बाद जेल से छुटे पूर्व नक्सलियों और जेल में बंद नक्सलियों के परिजनों की समस्याएं सुनी थीं. उसके बाद कुछ काम गांव में हुए.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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