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सेंदरा वीरों ने जंगली जानवरों का किया शिकार
पटमदा : दलमा बुरू सेंदरा समिति के अाह्वान पर पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत सोमवार को दलमा में सेंदरा वीरों ने पारंपरिक सेंदरा पर्व मनाया. पारंपरिक हथियार के साथ दलमा में पर्व मनाने पहुंचे कुछ सेंदरा वीरों ने जंगली जानवरों का शिकार किया. वहीं ज्यादातर खाली हाथ लौटे. सेंदरा वीर रविवार की शाम व सोमवार […]
पटमदा : दलमा बुरू सेंदरा समिति के अाह्वान पर पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत सोमवार को दलमा में सेंदरा वीरों ने पारंपरिक सेंदरा पर्व मनाया. पारंपरिक हथियार के साथ दलमा में पर्व मनाने पहुंचे कुछ सेंदरा वीरों ने जंगली जानवरों का शिकार किया. वहीं ज्यादातर खाली हाथ लौटे.
सेंदरा वीर रविवार की शाम व सोमवार की अहले सुबह पारंपरिक हथियारों से लैश होकर सेंदरा पर्व मनाने दल बल के साथ दलमा जंगल में गये थे. दलमा में जंगली जानवरों की संख्या कम होने के कारण सेंदरा वीर देर रात तक जंगल में रहे. ज्यादातर सेंदरा वीर चिपिंगदाड़ी, घुषी झरना, काशजोभी, कोंकादासा, बिजलीघाटी, बड़काबांध, मझलाबांध आदि घना जंगलों में शिकार के लिए जुटे थे. सेंदरा वीरों के साथ सेंदरा को लेकर कई स्थानों पर वन विभाग के कर्मचारियों के साथ झड़प भी हुई. शिकार के वक्त सेंदरा वीरों को जंगली हाथियों का भी सामना करना पड़ा.
कोंकादासा व चिपिंगदाड़ी के बीच लगी आग. सेंदरा पर्व के दौरान कोंकादासा व चिपिंगदाड़ी के बीच दलमा जंगल में सोमवार को आग लग गयी. आग की लपटें धीरे-धीरे बढ़ती गयीं. अग्निकांड में छोटे छोटे पौधे जल कर खाक हो गये. देर शाम तक आग की लपटें बढ़ती गयी..
चिमटी डाहुबेड़ा व कोंकादासा चेकनाका पर नहीं दिखे कर्मचारी. सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण माने जाने वाले कोंकादासा, डाहूबेड़ा व चिमटी चेकनाका पर वन विभाग का कोई अधिकारी व कर्मचारी नहीं दिखा. इसका फायदा सेंदरा वीरों को मिला. चिमटी व डाहुबेड़ा दलमा का मुख्य रास्ता माना जाता है एवं कोकादासा दलमा का महत्वपूर्ण जोन है. हालांकि आस पास के लोगों का कहना है कि दिन के 11 बजे तक वन विभाग के गाड़ियों का काफिला देखा गया.
सेंदरा व स्वशासन व्यवस्था को बचाने का संकल्प लें : दासमात
जमशेदपुर. फदलोगोड़ा के समीप सेंदरा वीरों के गिपितीज टांडी (विश्राम स्थल) में लो बीर दोरबार का आयोजन किया गया. इसमें सेंदरा व आदिवासी पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था की दिशा व दशा पर चिंतन मंथन किया गया. लो बीर दोरबार में जुगसलाई तोरोफ परगना दासमात हांसदा ने कहा कि सेंदरा की परंपरा को जीवित रखना है. सेंदरा महज शिकार खेलने का पर्व नहीं है. इसमें सामाजिक रीति-रिवाज से संबंधित ज्वलंत मुद्दों पर गहन मंथन होता है. उसके बाद दिसुआ लोग उसका समाधान निकालते है. उन्होंने कहा कि आदि काल से आज तक जिस स्वशासन व्यवस्था के बदौलत आदिवासियों का अस्तित्व बचा हुआ है उसमें खामियां ढूंढ़ना उचित नहीं है, बल्कि उसकी अच्छाई को जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत है.
बुढ़े-बुजुर्गों ने अनपढ़ होते हुए भी सामाजिक व्यवस्था को इतना बेहतर बनाया कि उसमें समाज के हर तबके को सामान अधिकार मिला है. महिला व पुरुष में भेदभाव नहीं किया गया है. सभी को जीवन अपने तरह से जीने की आजादी दी गयी है. वर्तमान समय में आदिवासी सामाजिक व्यवस्था, भाषा व सरना धर्म को खत्म करने की साजिश रची जा रही है. इसलिए अब सजग होने की जरूरत है. समाज का अस्तित्व कैसे बचे, इसके लिए सबों को चिंतन मंथन करने की जरूरत है. लो बीर दोरबार में दलमा राजा राकेश हेंब्रम, माझी बाबा दुर्गाचरण मुर्मू, रैना पूति, विनानंद सिरका, रामराय हांसदा, सुखराम किस्कू, धानो मार्डी, मानसिंह सोरेन, लिटा बानसिंह, मिथुन मुर्मू, प्रदीप किस्कू के अलावा सेंदरा वीर, बुद्धिजीवी, शिक्षाविद, समाजसेवी आदि मौजूद थे.
दलमा से उतरे पांच हजार शिकारी प्रशासन का दावा- शिकार नहीं
जमशेदपुर. रविवार रात से ही शिकारियों का जत्था दलमा पहाड़ पर चढ़ाई शुरू कर चुका था. सोमवार दोपहर एक बजे के बाद से शिकारियों के वापस लौटने का सिलसिला शुरू हो गया. अलग-अलग दिशा से लगभग पांच हजार की संख्या में एक-एक कर शिकारी जंगल से नीचे उतर रहे थे. कोई चांडिल की ओर गया, तो कोई फदलूगोड़ा. हर किसी के हाथ में पारंपरिक औजार थे. शिकारियों ने जंगल से पत्ता की स्वनिर्मित टोपी सिर पर लगा रखी थी, जो उन्हें धूप बचा रही थी.
शिकारियों का जमावड़ा धीरे-धीरे फदलुगोड़ा में लगने लगा था. यहां दलमा बुरु सेंदरा समिति का टेंट लगा था. दलमा राजा राकेश हेम्ब्रम खुद टीम के साथ शिकारियों का हौंसला बढ़ा रहे थे. वहां चना-गुड़ से लेकर पानी और हड़िया का इंतजाम था.
पारंपरिक तरीके से हुआ स्वागत. आदिवासी परंपरा के अनुसार शिकारी जब शिकार पर जाते है, तो महिलाएं अपना सिंदूर मिटा देती है. जब वह लोग सोमवार को घर लौटे तो उनका पैर धोकर महिलाओं ने स्वागत किया. महिलाओं ने सिंदूर लगाया और श्रृंगार किया. शिकार से लौटे लोगों के लिए घरों में स्वादिष्ट भोजन बनाये गयेे थे.
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